Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा। गाली गलौच तो दूर सीधे-सीधे मुझे देख लेने की धमकी भी दी गई। कुछ ने तो मुझे हिंदू या भारतीय अथवा ब्राह्मण तक मानने से मना कर दिया। यह सब स्वीकार किया जा सकता है लेकिन फालतू में हुंगामा खड़ा करना व्यर्थ है इसीलिए वह पोस्ट मैंने यहां से हटा ली हालांकि वीर बांकुरे श्री यशवंत सिंह के bhadas4media में वह पोस्ट यथावत सारी धमकी भरी टिप्पणियों के साथ पड़ी हुई है। जिसे देखना हो वह bhadas4media.com जाकर उसे देख सकता है। लेकिन इस संदर्भ में मेरा यह भी कहना है-
प्रिय यशवंतजी,
महाराणा प्रताप की वीरता और उनके त्याग को मैं कम करके नहीं आंक रहा हूं। महाराणा यकीनन राजपूताने की शान थे। लेकिन मेरा मानना है कि राणा के समय में भारत का अस्तित्व नहीं था। वे अपनी मेवाड़ की स्वतंत्रता बचाने के लिए लड़े थे। इस आधार पर उन्हें वीर तो कहा जा सकता है लेकिन भारत का वीरपुत्र नहीं। शायद वे अकबर की दूरदर्शिता और रणनीति को समझ नहीं पाए थे। वीरता और दूरदर्शिता दोनों अलग-अलग गुण हैं। अकबर कोई विदेशी नहीं था वह सौ प्रतिशत स्वदेशी था और भारत की सीमाएं मजबूत करने के लिए पूरे देश के रजवाड़ों और रियासतों को एक दिल्ली नरेश के अधीन करने का उसका मकसद एक मजबूत देश की नींव रखना था।
कहना चाहिए कि १६वीं सदी में अकबर योरोप की तरह ही राष्ट्र की नींव रख रहा था। महाराणा प्रताप के पूर्वजों का जो जिक्र मैंने किया है वह सिर्फ संदर्भ के लिए है। राणा सांगा खुद बहादुर थे और इब्राहीम लोदी की नीतियों से दुखी भी रहते थे। इसीलिए उन्होंने बाबर को न्यौता भेजा था। बाद में खानवां के मैदान में खुद राणा सांगा की फौजें अकबर से भिड़ी थीं। राणा के चारणों ने उनकी बहादुरी के बारे में लिखा है- अस्सी घाव लगे थे तन में फिर भी व्यथा नहीं थी मन में। पर बाबर समरकंद वापस जाना ही नहीं चाहता था। मेहमान गले पड़ गया था। पर मुगल अंग्रेजों की तरह भारत की संपदा से लंदन को नहीं समृद्ध कर रहे थे। और यह तो पता ही है कि जोधपुर रियासत ने बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जाने का मंतव्य प्रकट किया था। लेकिन सरदार पटेल ने उनकी एक नहीं चलने दी।
सादर,
शंभूनाथ शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के एफबी वॉल से साभार.
मूल खबर के बारे में जानने के लिए क्लिक करें – महाराणा प्रताप को भारत के बारे में पता भी था या नहीं?