शहीद भगत सिंह और उनके साथियों तथा पंजाबी के क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह पाश के शहादत दिवस की पूर्व संध्या पर 22 मार्च 2014 को जन संस्कृति मंच, लखनऊ की ओर से लेनिन पुस्तक केन्द्र, लालकुंआ, लखनऊ में ‘खतरनाक होता है सपनों का मर जाना’ कार्यक्रम हुआ। इसके अन्तर्गत पाश की तीन कविताएं ‘हम लड़ेंगे साथी’, ‘मेहनत की लूट’ तथा ‘हर किसी को सपने नहीं आते’ प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर वक्ताओं ने भगत सिंह के विचारों, पाश की कविताओं तथा आज के राजनीतिक संकट के दौर में इन क्रान्तिकारियों के महत्व पर अपने विचार रखे।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने कहा कि समकालीन पंजाबी कविता में 1970 और 1980 के दशक पाश के नाम है। उनसे ही सही मायने में पंजाबी कविता में समकालीनता की शुरुआत होती है। पाश अपने काव्य लेखन के आरंभ से ही नक्सल आंदोलन से जुड़ गये थे। उनकी कविताएं पंजाबी कविता के भीतर छाये अभिजात्य को पहली बार चुनौती देती है। वे पंजाबी संस्कृति के अन्दर किसानी संस्कृति और संवेदना को उभारने वाले पहले बड़े कवि हैं।
चन्द्रेश्वर का आगे कहना था कि वे पंजाबी की समकालीन कविता के दायरे को तोड़कर पूरे देश में अपनी खास पहचान बनाते हैं। वे पहली बार भारत माता, देशभक्ति और राष्ट्रवाद के प्रति नए नजरिए को व्यक्त करते हैं। वे उस दौर की युवा पीढ़ी की बेचैनियों, आक्रोश और गुस्से का प्रतीक बन गये थे। पाश ने पंजाबी कविता को आधुनिक रोमानियत से अलग किया और उसे गरीब, छोटे किसान और मजदूर जीवन के खुरदरे जीवन यथार्थ से जोड़ा। पाश सच्चे अर्थों में का्रन्तिकारी कवि हैं जिन्होंने शहीद भगत सिंह की परंपरा को आगे बढ़ाया।
आयोजन के मुख्य अतिथि ‘समकालीन जनमत’ के प्रधान संपादक रामजी राय थे। उन्होंने कहा कि भले ही नक्सलबाड़ी का किसान विद्रोह बंगाल में हुआ हो लेकिन उसे अपना कवि पंजाब में मिला। रामजी राय ने जनता के इतिहास बोध की चर्चा करते हुए कहा कि जनता ने जहां भगत सिंह को शहीदे आजम बनाया वहीं गांधी को लकर उसके बीच ‘मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’ लोकप्रिय हुआ। जनता अपनी समझ के आधार पर इसी तरह अपना इतिहास बोध विकसित करती है। भगत सिंह कहते हैं कि क्रान्ति की तलवार की धार विचारों के शान पर तेज होती है। अपने विचारों की वजह से भगत सिंह अन्य क्रान्तिकारियों से अलग है। वे ऐसी व्यवस्था के पक्षधर थे जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य का, राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र का शोषण न हो। आजादी को लेकर भगत सिंह ने जिस तरह के विचार व्यक्त कियें, वैसे ही विचार हमें प्रेमचंद और निराला के साहित्य में भी मिलते हैं।
अनुवादक व राजीतिक कार्यकर्ता अवधेश सिंह का कहना था कि आज जिस तरह का मौहाल बना है, अंधकार के हालात हैं, वैसे में निराशा का फैलना स्वाभाविक है। ऐसे में भगत सिंह के विचार राह दिखाते हैं। यह जरूरी है कि नौजवान पीढ़ी के अन्दर परिवर्तन की आग पैदा की जाय। इसमें शहीद भगतसिंह के विचार कारगर हो सकते हैं। एपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा सहन ने कहा कि आज देश एक नई गुलामी से गुजर रहा है। 1990 से जिस नवउदारवाद व फासीवाद के गंठजोड़ का आरंभ हुआ, हमने देखा कि वह आमजनता के लिए तबाही का कारण बन गया है। जिन शक्तियों ने बाबरी मस्जिद ध्वस्त किया, गुजरात रचा, आज काफरपोरेट पूंजी और मीडिया उन्हें सत्ता तक पहुचाने में लगा है। ये वे ताकते हैं जो लोकतंत्र तक को नहीं मानती। लोकतंत्र को बचाने के लिए इन्हें सत्ता में आने से रोकना पड़ेगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि भगवान स्वरूप कटियार ने की। उनका कहना था कि भगत सिंह और पाश की विरासत बदलाव के लिए संघर्ष और बलिदान की विरासत है। भगत सिंह ने नौजवानों का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें मक्कार व बेईमान व्यवस्था के हाथों नहीं खेलना चाहिए बल्कि अन्याय पर आधारित व्यवस्था के बदलाव के लिए संगठित होकर आगे आना चाहिए।उनकी क्रान्ति का यही मकसद था। भगत सिंह की यह विरासत नकलबाड़ी से होते हुए आज जल, जंगल व जमीन की लूट के विरू़द्धजन प्रतिरोध के रूप में हमारे सामने है।
अपने संयोजकीय वक्तव्य में कवि व जसम के संयोजक कौशल किशोर ने कहा कि यह ऐतिहासिक संयोग कि पंजाब की धरती से पैदा हुए क्रांतिकारी भगत सिंह के शहीदी दिवस के दिन ही पाश भी शहीद होते हैं। लेकिन इन दोनों क्रांतिकारियों के उददेश्य व विचारों की एकता कोई संयोग नहीं है। यह वास्तव में भारतीय जनता की सच्ची आजादी के संघर्ष की परंपरा का न सिर्फ सबसे बेहतरीन विकास है बल्कि राजनीति और संस्कृति की एकता का सबसे अनूठा उदाहरण भी है। ये दोनों क्रांतिकारी योद्धा हमारे अन्दर सच्ची आजादी के सपने को जिलाये रखते हैं। पाश के शब्दों में कहें ‘सबसे खतरनाक होता है सपनो का मर जाना’, पर यह दौर तो इस तरह का है कि सपनों का पालन खतरनाक हो गया है। क्योंकि यह सपना सच्ची आजादी का सपना है। भगत सिंह और पाश के सपनों को पालने वालों के लिए आज दमन व उत्पीड़न है, उनके लिए जेल की काल कोठरी है।
कार्यक्रम को कवि बीएन गौड़, कल्पना पांडेय, कवि कथाकार देवनाथ द्विवेदी, केपी यादव आदि ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में उर्दू शायर तश्ना आलमी, श्याम अंकुरम, विमला किशोर, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, रामायण प्रकाश, मधुसूदन मगन, इंदू पांडेय, केके शुक्ल, सूाज प्रसाद, राजू आदि उपस्थित थे।
कौशल किशोर, संयोजक, जन संस्कृति मंच, लखनउ। मो – 9807519227