खालिस्तानी आतंकवादी देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर की फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दी है। अदालत ने फांसी के अमल में हुई देरी और खराब सेहत के आधार पर भुल्लर को यह राहत दी है। सितंबर 1993 में नई दिल्ली में यूथ कांग्रेस के दफ्तर के बाहर भुल्लर और उसके साथियों ने भयानक आतंकी विस्फोट किए थे। इसमें 9 लोग मारे गए थे। मारे गए लोगों में युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता और सुरक्षाकर्मी भी थे। दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए थे। घायलों में युवा कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष एम एस बिट्टा भी थे। आतंकियों के खास निशाने पर बिट्टा ही थे। लेकिन, उनकी जान बाल-बाल बच गई थी। इस हादसे के बाद बिट्टा ने आतंकविरोधी संगठन बनाकर अपनी सक्रियता बढ़ाई। भुल्लर को मिली राहत के बाद वे कांग्रेस नेतृत्व पर जमकर बरसने लगे हैं। उन्हें लगता है कि कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के सलाहकार ठीक नहीं हैं। ऐसे में, वे आतंकवादियों के मामले में भी नरम पड़ गई हैं। इसी का फायदा भुल्लर जैसे आतंकियों को हो रहा है। इस चुनावी मौसम में भाजपा के रणनीतिकार कांग्रेसी बिट्टा के विलाप को राजनीतिक रूप से भुनाने के लिए तैयार हो गए हैं।
भाजपा के ‘पीएम इन वेटिंग’ नरेंद्र मोदी ने बैगर भुल्लर का नाम लिए कांग्रेस पर तीखे कटाक्ष शुरू कर दिए हैं। उन्होंने सोमवार को एक चुनावी रैली में कह दिया कि आतंकवाद से निपटने के लिए कांग्रेस नेताओं की राजनीतिक इच्छाशक्ति को ही लकवा मार गया है। इसी का लाभ आतंकी दरिंदों को मिल रहा है। अब तो यह बात कांग्रेस के बिट्टा जैसे नेता भी खुलकर कह रहे हैं। इसी से समझा जा सकता है कि आतंकवाद के मोर्चे पर यूपीए सरकार क्यों फेल हुई है? इसकी कमजोर इच्छाशक्ति के चलते ही आतंकी ताकतों ने अपना राष्ट्रव्यापी जाल फैला लिया है। इस सरकार में दम ही नहीं है कि वह आतंकी ताकतों से कारगर मुकाबला करे। जबकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने ही भुल्लर की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है। ऐसे में, किसी भी जिम्मेदार आदमी को अदालत के फैसले पर सवाल नहीं खड़ा करना चाहिए। क्योंकि, यह न्यायालय की गरिमा के अनुरूप नहीं है।
अदालत से सोमवार को भुल्लर का फैसला आने के बाद बिट्टा एकदम भड़क गए। उन्होंने मीडिया से कहा है कि यूपीए सरकार कायराना रवैए के चलते ही भुल्लर जैसे आतंकी को राहत मिल गई है। इससे आतंकवादियों के हौसले और बढ़ जाएंगे। उन्हें इस बात की खास नाराजगी है कि सरकार के वकील ने दो महीने पहले ही कह दिया था कि यदि अदालत भुल्लर की सजा उम्रकैद में बदलना चाहे, तो सरकार को आपत्ति नहीं है। इसके बाद ही तय हो गया था कि इस आतंकी को राहत मिल जाएगी, वही हुआ भी। आतंकी विस्फोट करने के बाद भुल्लर ने 1994 में जर्मनी में राजनीतिक शरण ली थी। काफी मुश्किल से इसे कानूनी शिकंजे में लिया गया था। 2001 में जिला अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। 2002 में हाईकोर्ट ने इस सजा की पुष्टि कर दी थी। इसके अगले साल सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखने का फरमान दिया था।
जब सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखी, तो भुल्लर की पत्नी ने राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दाखिल की थी। जिसका निस्तारण मई 2011 में हुआ। राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर दी थी। इस तरह से भुल्लर पर फांसी का फंदा कसना तय हो गया था। लेकिन, इसके खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर हुई। याचिका में कहा गया कि फांसी की सजा देने में लंबा समय लगाया गया है। इस बीच मेडिकल रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि भुल्लर की मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसका इलाज चल रहा है। नियमानुसार, किसी मानसिक रोगी को कानूनी तौर पर फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। इसका भी हवाला याचिका में दिया गया। अदालत ने एक प्रतिष्ठित सरकारी अस्पताल से भुल्लर की मानसिक स्थिति की दोबारा जांच कराई, तो मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया कि लंबे समय तक फांसीघर में रहने के कारण भुल्लर की मानसिक स्थिति खराब है। इसी का फायदा भुल्लर को मिला।
जबकि, बिट्टा ने एक खास बातचीत में कहा कि आतंकवाद के खिलाफ कांग्रेस नेतृत्व की राजनीतिक इच्छाशक्ति ही लचर है। इसी के चलते पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को भी लाभ मिला। तीन हत्यारों की फांसी की सजा ऐसे ही तर्कों के आधार पर उम्रकैद में बदली गई। बिट्टा, ‘ऑल इंडिया एंटी टेररिस्ट फ्रंट’ के प्रमुख हैं। वे दशकों से अपने इस संगठन के जरिए आतंकवादी ताकतों के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करते रहे हैं। कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेताओं की कार्यशैली से उनकी नाराजगी जरूर है, लेकिन उन्होंने कांग्रेस कभी नहीं छोड़ी, कहते हैं कि कांग्रेस तो उनकी मां है। वह भला अपनी मां को कैसे छोड़ सकते हैं? लेकिन, उन्हें अफसोस है कि सोनिया गांधी भी आतंकवाद के मुद्दे पर कारगर निर्णय नहीं ले पातीं। क्योंकि, उनके सलाहकार उन्हें सही फैसला नहीं लेने देते। भुल्लर प्रकरण से बिट्टा काफी भावुक हो गए हैं। उन्होंने यह सवाल उठाया है कि सितंबर 1993 में आतंकी विस्फोट के कुछ दिन पहले ही उनकी सुरक्षा हटा ली गई थी। उन्हें आशंका है कि इसके पीछे भी कोई बड़ी साजिश हो सकती है। वे अदालत में इस मामले की जांच के लिए एक याचिका दायर करने की सोच रहे हैं।
बिट्टा कहते हैं कि वे कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर उनसे आत्मदाह करने की इजाजत मांगेंगे। क्योंकि, भुल्लर के मामले में आतंकवाद की लड़ाई में बड़ी हार हुई है। ऐसे में, वे अब जीना नहीं चाहते। शायद, उनकी ‘शहादत’ से ही राजनीतिक हुक्मरानों को कोई सबक मिल जाए? कांग्रेस के एक राष्ट्रीय सचिव ने अनौपचारिक बातचीत में कहा है कि बिट्टा को अदालत के फैसले पर राजनीतिक प्रलाप से बाज आना चाहिए। क्योंकि, ऐसा करना ठीक नहीं है। कांग्रेस नेता ने कहा कि भाजपा नेताओं को बिट्टा के मामले में यूपीए सरकार पर कटाक्ष करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। क्योंकि, 2004 तक सत्ता में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार ही थी। जबकि, 2003 में भुल्लर की दया याचिका राष्ट्रपति भवन पहुंच गई थी। लेकिन, तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी मामले के निस्तारण की परवाह नहीं की थी। ऐसे में, अब किस मुंह से मोदी जैसे नेता इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं? सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे के बहाने मोदी सहित भाजपा के कई और बड़े नेता कांग्रेस पर निशाना साधने के फेर में हैं। इस काम में बिट्टा का राजनीतिक ‘विलाप’ उनके बड़े काम का साबित हो सकता है।
लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।