कैमरे से घबराने की जगह निर्मल बाबा ने कैमरे को बनाया अपना हथियार. आम तौर पर बाबा लोगों के बीच थोड़ी लोकप्रियता पाने के बाद टेलीविजन पर नजर आते थे लेकिन ‘निर्मल बाबा’ ने पहले टेलीविजन पर आना शुरू किया फिर बुद्धू बक्सा देखने वाले बुद्धुओं के बीच सशरीर उपस्थित होने लगा. आज उस निर्मल बाबा की रोजाना कमाई करोड़ों में आंकी जा रही है. तर्क तो पक्ष और विपक्ष दोनों के पास होते हैं लेकिन सत्य एक ही होता है. सच तो यही है कि एक आम मनुष्य भगवान कभी नहीं बन सकता है.
इन तथाकथित बाबाओं को लेकर पूर्व के अनुभव तो यही कहते हैं कि हमारी अंधश्रद्धा का फायदा उठाकर बाबाओं का कद इतना बड़ा होता गया है कि देश चलाने और देश को बर्बाद करने के कई फैसले अतीत में इन्ही बाबाओं के इशारे पर हुए हैं. अपने देश में व्यक्ति पूजा की मानसिक गुलामी आज भी मौजूद है जो धीरे-धीरे एक इंसान को मनुष्य से भगवान का दर्जा दे देता है और उस ढोंगी के ऊपर ऊँगली उठाने वाला सच्चा मार्गदर्शक भी लोगों को झूठानजर आता है. और तो और निर्मल बाबा के मामले में समाज की आँख कही जाने वाली पत्रकार बिरादरी अपने फर्ज को बेच कर लोगों को गुमराह होने के लिए अंधविश्वास के भंवर में छोड़ आया है. मीडिया को नसीहतें देने वाले जस्टिस काटजू से लेकर मीडिया की वकालत करने वाले आशुतोष और एन. के सिंह जैसे वरिष्ठ संपादक भी खामोश हैं.
हर तरफ छाई इस ख़ामोशी के बीच कुछ तूतियों की आवाज नकारखाने से निकल कर सबके कानों तक पहुंचने लगी है. बाबा परेशान होकर मुकदमा करने लगा है. कोर्ट भी ऑर्डर देते हुए बाबा के साथ क़ानूनी रूप से खड़ा है. लेकिन सवाल कानून की व्याख्या का नहीं है बल्कि यहाँ गुमराह लोगों की कटती जेब का सवाल है जिसे खुद उन्होंने अपने मन से कटवाया है.
बाबाओं के इस खेल पर टिप्पणी करते हुए अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाली श्रीमति रचना दुबलिश कहती हैं “ आज भारत मे कितने बाबा हैं कितने मठ मंदिर आश्रम मस्जिद चर्च गुरूद्वारे हैं शायद यह आंकड़ा किसी भी कार्यालय में न हो? अधिकाँश पुरुषबाबा अपने इर्द गिर्द कुंवारी कन्याओं को अपनी सेवा मे रखते हैं, पुरुषों को अपनी सेवा मे रखने से उनको इतना परहेज क्यों? एक बात और कि सभी तथाकथित समाज सेवा भी करते हैं ,भौतिक सेवा भी करते हैं, कहाँ से लाकर ? यह भी बताओ? आखिर ये सन्यासी जो मोह ममता अर्थ काम क्रोध से ऊपर उठ चुके हैं, उनको संसार की इतनी चिंता क्यों? लाल पीले कपड़े पहनने वाले इन बाबाओं का पूरा परिवार पांच सितारा आलिशान जिंदगी गुजार देता है जबकि इनको दान देने वाला ठीक वैसे ही ठगा जाता है जैसे नेताओं द्वारा मतदाता. भ्रष्टाचार का एक बहुत बड़ा सबूत तो इन बाबाओं के यहाँ भी मिलेगा क्योंकि जो पैसा दान मे आया दिखाया जाता है उस पर दानदाता को आयकर मे छूट का प्रावधान है. इन बाबाओं के आलिशान भव्य आधुनिक सुसज्जित महलनुमा आश्रम हैं, और सारे के सारे जगदगुरु भी हैं, आखिर इनमे और एक व्यावसायिक उद्योगपति मे अंतर क्या है? इनकी उपाधियों, इनकी शैक्षिक योग्यताओं, इनकी उपलब्धियों, इनकी व्यावसायिक गतिविधियों, इनके निवास स्थान की सत्यता और इनके परिवार के सदस्यों की ठीक ठीक सटीक जानकारी जिला मुख्यालय मे दर्ज होनी ही चाहिए ताकि कोई भी बाबा किसी भी प्रकार के अपराधिक गतिविधियों मे लिप्त पाया जाय तो उसपर समय रहते उचित कार्यवाही की जा सके. आखिरकार सभी धर्मों के ठेकेदारों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होना ही चाहिए क्योंकि ये सभी भगवान् के अवतार हैं,परन्तु ये जब तक संसार मे हैं इनको संसारी कानून के अंतर्गत ही रहना पड़ेगा.”
आध्यात्मिक चैनल से जुड़े आर्य मनु अपने ब्लॉग पर लिखते हैं “एक आध्यात्मिक चैनल के साथ काम करते करते लगभग हर प्रमुख संत के साथ कार्यक्रम संचालन का मौका मिला. यकीन मानिये, सभी तथाकथित गुरुओं का “परदे के पीछे” अन्य रूप था. केवल और केवल मोरारी बापू को मैंने अभी तक बेदाग़ पाया. आज इस लेख में निर्मल बाबा की बात करते है. मैं उनके बारे में कुछ उल्टा पुल्टा न लिखते हुए बस कुछ प्रश्न आपके सामने रखना चाहूँगा :
१. फिलहाल बाबा के भारत के १६ राष्ट्रीय चैनलों, और ३ विदेशी चैनलों पर विदेशों में कार्यक्रम चल रहे है. केवल आस्था पर बीस मिनट का मासिक व्यय सवा चार लाख+टेक्स है, तो अन्य राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर कितना लगता होगा ?
२. अगर बाबा के आशीर्वाद से सब कुछ हो सकता है तो इतने चैनल्स पर आने की क्या ज़रूरत?
३. समाचार चैनल्स को विज्ञापन रूपी कार्यक्रम (पेड प्रोग्राम) के रूप मिलने से वे अपने “क्लाइंट” नहीं खोना चाहते, इस से निर्मल बाबा के खिलाफ कोई खबर नहीं चलती…. क्या ये सच है? (बताते चलें, बाबा का हर प्रमुख न्यूज़ चैनल पर सुबह प्रोग्राम आता है)
४. अपने आरंभिक दिनों में नॉएडा के फिल्मसिटी में स्थित एक स्टूडियो में शूटिंग करते वक़्त बाबा के सामने जो लोग अपनी समस्या के हल होने का दावा करते थे, वे असली लोग न होकर “जुनियर आर्टिस्ट” हुआ करते थे ?
५. आज भी ये “आर्टिस्ट” बदस्तूर जारी है..??
६. बाबा के समाधान का एक उदहारण देखिये : आपके घर में गणेश जी की मूर्ती है ? अकेली है? नहीं..तो अकेली लगाओ.. हाँ तो लक्ष्मी जी के साथ लगाओ, इस से समृद्धि आएगी… दक्षिण में है तो उत्तर में लगाओ, उत्तर में है तो दक्षिण में लगाओ… खड़े है तो बैठे हुए गणेशजी लगाओ… बैठे है तो खड़े गणेश जी लाओ… क्या आपने इस स्थिति को महसूस नहीं किया ?
माने आपकी हर बात का कोई न कोई जवाब… और फिर हर जगह लक्ज़री की बात !!!
७. बाबा के किसी शहर में जाने से पूर्व वह एक टीम पहले जाकर “मार्केटिंग” का काम संभालती है. और मार्केटिंग भी ऐसी वैसी नहीं… भरी वाली ? क्यों,जबकि बाबा तो अंतर्यामी है..आपके घर की हर चीज़ आँखे बंद करके देख सकते है ??
८. युवराज के घरवालों के आरोप तो आपको पता होंगे ??
अपनी वेबसाइट में निर्मल बाबा खुद के पास ‘तीसरी आंख' और छठी इन्द्रियां होने का दावा करता है जबकि हाल ही में जालंधर में किसी ने इसके खाते से करोड़ों रुपए फर्जी तरीके से निकाल लिए, और बाबा को पता ही नही चला. शायद आंखें बंद होंगी. जो लोग निर्मल बाबा की अंध भक्ति में लीन अपने मेहनत की कमाई लुटा रहे हैं वे क्या बता सकते हैं कि निर्मल बाबा के खाते से किसी ने फर्जी तरीके से रुपये निकाले तब बाबा की कृपा और उनका तीसरा नेत्र क्या कर रहा था? निर्मल बाबा में दैवीय शक्तियां है तो कृपा सिर्फ समागम में जाने वालों पर ही क्यों ? क्या पैसे जमा करवा कर कृपा बांटने वाले को संत /बाबा /साधू कहा जाना चाहिए ? बहरहाल इन प्रश्नों पर गौर करते हुए अपने आस-पास के लोगों को आगाह कीजिये कि ऐसे ठगों की चंगुल में ना फंसे. अंत में अब तक ज्ञात सूचनाओं के मुताबिक जानिये कौन है निर्मल बाबा?
इस ढोंगी बाबा का ससुराल झारखंड में है और ये दस वर्ष से अधिक समय तक वहाँ गुजार चुका हैं। निर्मलजीत उर्फ निर्मल बाबा झारखंड के सांसद इंदर सिंह नामधारी का साला हैं. ढोंगी बाबा विवाह के बाद करीब 1974-75 के दौरान झारखंड में आया था और लाईम स्टोन का व्यवसाय शुरू किया. मगर उसमें सफल नहीं हुआ. इसके बाद गढ़वा में कपड़े का व्यवसाय शुरू किया, लेकिन वहां भी सफल नहीं हो सका. एक वक्त ऐसा भी था कि ये निर्मल बाबा काफी परेशानियों से जूझ रहा था. तब बिहार में मंत्री रहे “इंदर सिंह नामधारी” ने माइनिंग का एक बड़ा काम इसे दिलवाया था. तब यह ठेकेदारी का काम करता था. उसी कार्य के दौरान इस पाखंडी बाबा को ज्ञान की प्राप्ति हुई, ऐसा इसके रिश्तेदारों ने अफवाह फैलाई. 1984 के दंगे के दौराज जब ये रांची में था, तो किसी तरह से ये अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा था. गोमो में निर्मल नरूला का साढ़ू भाई सरदार नरेन्द्र सिंह नारंग हैं. इनका विवाह भी दिलीप सिंह बग्गा की बड़ी बेटी के साथ हुआ था.
आशीष कुमार अंशु की रिपोर्ट. जनोक्ति डाट काम में प्रकाशित. फेसबुक के 727 सदस्यों वाले Kya Aap Jante Hai? ग्रुप में भी प्रकाशित.
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