सूचना का अधिकार कानून के इतिहास में सम्भवतः यह पहली घटना होगी जब सूचना आयुक्त ने आरटीआई कार्यकर्ता को अपने कक्ष से धक्के मार कर न केवल बाहर निकलवा दिया बल्कि पुलिस द्वारा पिटवाया और रिपोर्ट दर्ज करा कर रात के 10 बजे घर से गिरफ्तार भी करवा दिया।
दिनाकं 25 अप्रैल को सूचना आयोग में माननीय अरविन्द बिष्ट (टाइम्स आफ इंडिया के संपादक, मान्यता प्राप्त पत्रकार) के कक्ष में अशोक कुमार गोयल की अपील पर सुनवाई की तारिख थी जिसमें अशोक कुमार गोयल स्वयं उपस्थित हुए। मामले में पुनः तारिख दिये जाने का विरोध श्री गोयल ने यह कहते हुए किया कि मामला सन् 2011 से लम्बित चल रहा है और सम्बन्धित विभाग लगातार टालमटाले कर रहे हैं। अतः सम्बन्धित जन सूचना अधिकारी के खिलाफ अधिनियम में प्रदत्त प्रावधानों के मुताबिक दण्डात्मक आदेश पारित किया जाए। लेकिन माननीय आयुक्त महोदय केवल तारिख देकर मामले को टरकाना चाहते थे। जिसका श्री गोयल ने विरोध किया।
श्री गोयल की यही हरकत माननीय विष्ट साहब को बुरी लग गर्इ और उन्होने बाहर बैठे एसआई कमला कांत त्रिपाठी को बुला कर श्री गोयल को धक्के मार कर बाहर निकालने का आदेश दिया। साहब का आदेश पाते ही एसआई कमला कांत त्रिपाठी अपने पुलिसिया रौद्र रूप में आ गये और ब्लड प्रेशर, शुगर के मरीज 60 वर्षीय अशाके कुमार गोयल को घसीटते हुए चेम्बर से बाहर ले गये और जमकर ठोंक पीट डाला तथा तलाशी के नाम पर जेब में रखे हजारों रूपयों को कब्जे में ले लिए। मार खाकर श्री गोयल घर आ गये और जरिए ईमले शासन-प्रशासन को अपनी शिकायत भेजते हुए रपट दर्ज कर कार्यवाही करने की गुहार लगाई।
खबर है कि इसकी भनक लगते ही रात में ही माननीय विष्ट साहब ने पुलिस को खटखटा दिया और रात 10.00 बजे हजरतगंज की पुलिस श्री गोयल के चिनहट के गणेशपुर-रहमानपुर स्थित घर पर धमक गई। बताते हैं कि लगभग आधा दजर्न पुलिस ने घर में घुस कर न केवल उनकी पत्नि से अभद्रता की बल्कि श्री गोयल को उनके लड़के सहित हजरतगजं कोतवाली लाकर लॉकअप में डाल दिया। सबेरे श्री गोयल की तबीयत खराब होने पर पुलिस उन्हें पास के अस्पताल ले गई जहां डॉक्टरों ने आईसीसीयू में ले जाकर एक्सपर्ट डाक्टर को दिखाने को कहा लेकिन पुलिस ने उन्हें एक्सपर्ट डाक्टरों को दिखाने के बजाय पनु: लॉकअप में डाल दिया।
माननीय चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रटे की अदालत में पुलिस द्वारा पेश किये जाने पर श्री गोयल के अधिवक्ता ने उनके स्वास्थ्य, उम्र आदि का हवाला देकर जमानत पर रिहा करने का अनुरोध किया। लेकिन माननीय न्यायाधीश महोदय ने श्री गोयल शनिवार को पेश करने कर आदेश देते हुए जेल भेज दिया। बताया जा रहा है कि जहां माननीय श्री अरविन्द विष्ट साहब प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी के मुखिया माननीय मुलायम सिहं यादव के समधि हैं तो वहीं पूरी पुलिसिया कार्यवाही को अंजाम देने वाले हजरतगंज कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार वर्मा जी माननीय युवा मुख्यमंत्री अखिलेश जी के करीबी दोस्त हैं। सम्भवतः इसी कारण देर रात तक एसएसपी साहब को इस वारदात की कोई जानकारी नहीं होने पाई। वाकई में इस प्रकरण में पुलिस की तत्परता को देख कर आश्चर्य होता है कि आखिर इतनी काबिल पुलिस के रहते प्रदेश में क्यों लगातार काननू -व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है? शायद इसका जबाव यही होगा कि हल्लाबोल राज में पुलिस का नहीं गुंडे बदमाशों का शासन चलता हैं जिसकी रखवाली पुलिस करती है।
महेन्द्र अग्रवाल। संपर्कः [email protected]