तुमको तो दिल्ली आना था, कहां चले गए देवेंद्र? मैं तो इंतजार कर रही थी कि कब तुम दिल्ली आओ कब तुमसे ढेर सारे गाने सुनूं। कहीं साथ बैठकर खाना खाएं और ढेर सारी गपशप हो। पर रायपुर छोड़ने के बाद से यह सपना ही रह गया। तुम जब भी आए कितनी हडबडी में आए। कोई ऐसा करता है क्या? मुझे याद आ रहा है कटोरा तालाब में नए साल का जश्न। कितनी अच्छी महफिल जमाई थी न अपन ने, मेरी छत पर। रीतेश, अमित कुमार, तुम ,डाक्टर इंगले और मेरा परिवार। रात भर हारमोनियम बजा-बजाकर हर कोई सुरा -बेसुरा गाता रहा। मैं तुम्हे बेसुरा नहीं कह सकती। कितना अच्छा गाते हो तुम पर… उस दिन पत्नी से मासांहारी भोजन बनवाकर लाए थे तुम। जानते थे न कि दीदी न नॉनवेज बनाती है न खाती हैं।
और उस दिन रमन सिंह जब तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे तो कैसे गर्मजोशी से मेरी तरफ आए थे तुम। अभी रूकिए जाना नहीं और उस दिन भी कहा था आऊंगा न दीदी जल्दी आऊंगा। बस जरा थोड़े काम निपटा लूं और भी कितनी बातें मित्तल जी और ईशान से लेकर दुनिया जहान तक। देवेंद्र मैं तो ताउम्र उन दिनों को भूल नहीं पाऊंगी जब हिंदुस्तान ने मुझे रायपुर भेजा 2003 के चुनाव में। फिर रीतेश और तुमसे मेरी अंतरंगता बनी। पर तुमने ठीक नहीं किया। ऐसी क्या हड़बड़ी थी जाने की। ठीक से रहना हम तुम्हे हमेशा याद रखेंगे देवेंद्र कार(मैं तो तुम्हें जीप और ट्रक कहती थी ना) तुम्हारे जैसे हंसोड़ और मददगार लोग होते ही कितने हैं?
इरा झा। संपर्कः [email protected]