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सुख-दुख...

2002 में जशोदाबेन को खोजने वाले पत्रकार दर्शन देसाई को मोदी ने फोन पर धमकाया था!

Om Thanvi : जशोदाबेन के मुताबिक शादी के सारे फोटो मोदी ने फाड़ डाले थे, "क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि एक भी फोटो मेरे पास बचा रह जाय"। अर्थात मोदी ने शादी का कोई सबूत नहीं छोड़ा। सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी पत्नी या शादी का जिक्र नहीं किया; विधानसभा के नामांकन पत्रों में चार बार वैवाहिक स्थिति का जवाब टाल गए। मोदी के जीवनीकार नीलांजन मुखोपाध्याय इसकी वजह यह मानते हैं कि मोदी आरएसएस के प्रचारक होकर देश के भ्रमण पर निकलना चाहते थे, लेकिन तब उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी प्रदेशों में प्रचारक बनने की यह अहम शर्त थी कि वे अविवाहित हों।

Om Thanvi : जशोदाबेन के मुताबिक शादी के सारे फोटो मोदी ने फाड़ डाले थे, "क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि एक भी फोटो मेरे पास बचा रह जाय"। अर्थात मोदी ने शादी का कोई सबूत नहीं छोड़ा। सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी पत्नी या शादी का जिक्र नहीं किया; विधानसभा के नामांकन पत्रों में चार बार वैवाहिक स्थिति का जवाब टाल गए। मोदी के जीवनीकार नीलांजन मुखोपाध्याय इसकी वजह यह मानते हैं कि मोदी आरएसएस के प्रचारक होकर देश के भ्रमण पर निकलना चाहते थे, लेकिन तब उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी प्रदेशों में प्रचारक बनने की यह अहम शर्त थी कि वे अविवाहित हों।

मोदी ने संघ से एक बड़ा सच छुपाया, दूसरों शब्दों में पत्नी ही नहीं संघ को भी धोखे में रखा। माना जाता है कि कई साल बाद जब विवाह का भांडा फूट गया तब विवाहित प्रचारक होने की अप्रिय चर्चा से संघ को बचाने की गरज से मोदी को भाजपा में भेज दिया गया। शादी का भांडा फोड़ने वाले पत्रकार दर्शन देसाई (तब इंडियन एक्सप्रेस में) ने 2002 में जब जशोदाबेन को ढूंढ़ निकाला, वे रजोसाणा गांव में पढ़ा रही थीं। वे सौ रुपए महीने के किराए पर एक बगैर शौचालय वाले घर में बसर करती थीं।

पति के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने बड़े उत्साह से अपनी बदली अपने गांव में करवाने की अर्जी लगाई। मोदी की भरोसेमंद आनंदीबेन पटेल राज्य की शिक्षा मंत्री थीं। उन्होंने अर्जी खारिज कर दी। यह सब जानकारियां लेकर दर्शन देसाई जब गांधीनगर लौटे तो खुद मोदी ने उन्हें फोन कर कहा — "तुम मेरे खिलाफ लिख रहे हो। तुम्हारे अखबार ने 'मोदी मीटर' (गुजरात दंगों पर स्तंभ) चला रखा है। मुझे पता है कि आज तुमने क्या किया। तुमने जो किया, उससे बात बहुत आगे खिंच गई है। इसलिए मुझे बताओ कि तुम्हारा एजेंडा (मकसद) क्या है?" देसाई के मुताबिक वे डरे तो नहीं, लेकिन कुछ नर्वस जरूर हो गए। उन्होंने जवाब दिया — "मेरा कोई एजेंडा नहीं है। आप मेरे संपादक से बात कर सकते हैं।" तब मोदी ने फोन काटने से पहले यह कहा– "ठीक है, सोच लेना।"

क्या मोदी का यह बर्ताव विवाह को लेकर उनकी छुपमछुपाई का अपराधबोध प्रकट नहीं करता?

जनसत्ता अखबार के संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.

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