: प्रभात किरण की रिर्पोटिंग पर गहरा एतराज : इंदौर। इंदौर प्रेस क्लब द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘प्रेस क्लब टाइम्स’ के विमोचन समारोह की इंदौर से प्रकाशित सांध्य दैनिक प्रभात किरण में प्रकाशित ‘विचित्र’ रिर्पोटिंग पर इंदौर प्रेस क्लब ने गहरा एतराज उठाया है। इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल व पत्रिका के संपादक कमल कस्तूरी ने इस संदर्भ में प्रभात किरण के प्रबंधक प्रभाष सोजतिया, सुनील सोजतिया, संपादक प्रकाश पुरोहित और प्रभात किरण के भागीदार दैनिक भास्कर के प्रबंध निदेशक रमेशचंद्र अग्रवाल और निदेशक सुधीर अग्रवाल को पत्र भेजकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। नीचे संपादक को लिखा गया पत्र…
इंदौर
22 अप्रैल 2013
श्रीमान संपादक
प्रभात किरण, इंदौर
मान्यवर,
एक बेहद महान विचारक हुए हैं-वाल्टेयर। उनका कहना है-हो सकता है, मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं, फिर भी मैं विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करुंगा। पता नहीं, आप इनके विचारों से कहां तक सहमत हैं, लेकिन इंदौर प्रेस क्लब और हाल ही में प्रकाशित मासिक पत्रिका प्रेस क्लब टाइम्स के हम तमाम सहयोगी इस भावना का सम्मान करते हैं और उसी नाते आपसे असहमत होकर भी आपके साथ संवाद बनाना चाहते हैं।
दरअसल आपके अखबार में 21 अप्रैल 2013 के अंक में पेज-2 पर एक खबर छपी है, जिसका शीर्षक है- इस सवाल के कई जवाब..। अव्वल तो शुक्रिया कि आपने पत्रिका के विमोचन समारोह की खबर प्रकाशित की, लेकिन यहीं से हमारी नाइत्तिफाकी शुरू होती है। क्या संपादक के नाते आपने यह खबर पढ़ी है? दरअसल यह खबर नहीं बल्कि कार्यक्रम पर बेहद आपत्तिजनक ढंग से लिखी गई टिप्पणी है। यह विचारों से असहमत होने का तरीका, रिपोर्टिंग का सलीका, पत्रकारिता का तकाजा नहीं बल्कि आत्म मुग्धता, कुण्ठा और कमतरी के अहसास से लबरेज ऐसा बेहूदा लेखन है, जो पत्रकारिता के मानदंडों को ठेंगा दिखाता है। साथ ही प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू के उस विचार पर मुहर भी लगाता है जिसमें वे कहते हैं कि पत्रकारों की भी कोई योग्यता होनी चाहिए।
आपने खबर की शुरुआत इस वाक्य से की है- सवाल यह कि जब सभी पत्रकार (?) हैं और मीडिया से जुड़े हैं तो कौन सी कस्तूरी ढूंढने के लिए पत्रिका निकाल दी, क्योंकि प्रेस क्लब टाइम्स में पत्रकारों की बात नहीं है। तो जनाब, हम कस्तूरी ढूंढे या कीचड़, आप कौन हो यह सवाल पूछने वाले? क्या इस शहर में जो भी काम हो, वे सब आपसे पूछ कर या आपके बताए अनुसार किए जाएं, तभी वे होंगे या अच्छे होंगे? फिर, आपके कान में आकर यह कौन कह गया कि इंदौर प्रेस क्लब ने यह पत्रिका केवल पत्रकारों और प्रेस विषयक बातों के लिए ही निकाली है? यह एक व्यावसायिक प्रकाशन है। फिर आप पत्रकार पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं तो क्या आपके संस्थान में सब खालिस पत्रकार हैं? स्कूल मास्टर, प्रापर्टी की दलाली करने वाले से लेकर तमाम लोग हैं जिनका पत्रकारिता से संबंध नहीं हैं। या आपके संचालक कौन से मीडिया संस्थान ही चलाते हैं? क्या उनके दस धंधे नहीं हैं?
आगे आपका रिपोर्टर सवाल करता है कि अगर प्रेस क्लब पत्रिका निकाल रहा है तो उसमें पत्रकारिता की तरक्की की बात होना चाहिए, उसमें सुधार की बात होना चाहिए, समाज की बात होना चाहिए। आपकी अपेक्षा ठीक है, लेकिन यह बताइये कि आप तो 22 बरस से अखबार निकाल रहे हैं, आपने कितना समाज सुधार कर लिया, कितनी पत्रकारों की आवाज बुलंद कर ली। कितने पत्रकारों को स्थायी नियुक्ति पत्र दे रखा है? कितनों की भविष्य निधि जमा करते हैं? कितनों को पहले पालेकर अवार्ड फिर अब मणिसाना बोर्ड अवार्ड देते हैं? कितनों को सालाना तरक्की देते हैं, कितनों के नाम कर्मचारी राज्य बीमा योजना में शरीक करवाए हैं? साल का कितना सवैतनिक अवकाश देते हैं, कितना ओवर टाइम देते हैं? कर्मचारी कल्याण की कौन-सी योजना लागू कर रखी है?
आप तो पत्रकारिता के मसीहा हैं तो बताइये जरा अपने अखबार में ही छाप कर बता दें। जिसने अखबार को अपने परिवार की जागीर बना रखा हो, उसे शोभा नहीं देता कि वह औरों को पत्रकारिता की नैतिकता और मूल्यों का हवाला दे। संपादक प्रकाश पुरोहित, एक बेटा सुधांशु मिश्रा स्पेशल रिपोर्टर, जो कि मूलत: ग्राफिक्स डिजाइनर है। जब कभी कहीं पर्यटन की, सौजन्य यात्रा की बात आती है तो अपने बेटे को रवाना कर देते हैं जो कि वहां नौकरी भी नहीं करता और बरसोबरस से कलम घिसाई कर रहे पत्रकार मन मार कर रह जाते हैं। सुधांशु के साथ उनकी पत्नी भी पर्यटन पर जाती हैं और कवरेज के फोटो उसके नाम से छाप दिए जाते हैं। और तो और खुद संपादकजी क्रिकेट विश्व कप, टी-20, लंदन ओलिंपिक की रिपोर्टिंग के लिए दुनिया में घूमते रहते हैं, लेकिन उन्हें अपने अखबार में एक भी पत्रकार ऐसा नजर नहीं आया, जो रिपोर्टिंग के लिए कहीं विदेश जा सके। बड़ा बेटा सुदीप मिश्रा नईदुनिया में मुलाजिम होकर प्रभात किरण में हर शनिवार फिल्म समीक्षा लिखता है सूर्यासन के छद्म नाम से। सूर्या यानी संपादकजी की दिवंगत पत्नी तो सूर्यासन याने उनके बेटे। एक नजदीकी रिश्तेदार प्रज्ञा मिश्रा कभी लंदन तो कभी जर्मनी से रिपोर्टिंग करती हैं। तो एक अखबार में समाज की, राजनीति की, देश की बात होना चाहिए, लेकिन आप तो अपने परिवार को ही आगे बढ़ाने में लगे हैं और गांधी-नेहरू परिवार समेत दूसरे राजनीतिक घरानों के परिवारवाद पर अंगुली उठाते हैं।
आपके रिपोर्टर ने कार्यक्रम के हवाले से एक सवाल उठाया है- एक लंबा वक्त गुजर गया, एक चोटी का पत्रकार क्यूं नहीं निकला यहां से.. निकली तो एक पत्रिका। क्या करें संपादकजी..। जब आपका अखबार ही 22 बरसों में एक भी कायदे का पत्रकार नहीं दे पाया तो हमने अभी केवल एक अंक ही निकाला है, थोड़ा तो समय हमें भी दीजिए। हम गारंटी नहीं देते कि कोई जांबाज पत्रकार समाज को देंगे ही, लेकिन इतना तो भरोसा दिला सकते हैं कि किसी पर बेजा अंगुली नहीं उठाएंगे।
आखिर में आपका रिपोर्टर लिखता है..क्या कोई पत्रकार नहीं मिला था, मुखिया बनाने के लिए। जवाब भी उसी ने दे दिया कि जिस मकसद से पत्रिका निकाली है, उसके लिए वह जरूरी था। कितने अंतर्यामी हैं आप और आपका रिपोर्टर। अपने रिपोर्टर को किसी फुटपॉथ पर तोता लेकर बैठा दीजिए, काफी कमाई हो जाएगी और वहां बैठे-बैठे पूरे जग की खबरें भी मिल जाया करेंगी।
संपादकजी, अब एक बात हम कहते हैं आपको आपकी खबर से हटकर। आपने जो अपने अखबार में आईने में आईना स्तंभ चला रखा है, जिसमें आप इंदौर के अखबारों में क्या, क्यों, और कितना बेहूदा छपा है, इसकी समीक्षा करने की बजाए इतना स्थान पत्रकारिता की गरिमा के अनुरुप वाजिब बातों को उठाने के लिए देंगे तो अपने आप पर काफी मेहरबानी करेंगे। मुश्किल यह है कि आपके और आपके कुछ रिपोर्टरों के पास कोई दृष्टि नहीं है और मेहनत के जरिए, किसी मुद्दे के साथ बात कहने की काबिलियत नहीं है, इसलिए किसी भी कार्यक्रम की केवल मीन-मेख निकालने को ही पत्रकारिता मान लिया है। आपको यह अधिकार कतई नहीं है कि आप किसी कार्यक्रम पर टिप्पणी करें। आपका जो आईने में आईना है, पहले उसमें खुद एकाध बार झांक लें तो पता चल जाएगा। इस शहर की पत्रकारिता का जो मान है, जो परंपरा है, उस पर मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग के नाम पर कलंकित न करें तो इस पेशे पर कृपा होगी।
प्रवीण कुमार खारीवाल कमल कस्तूरी
अध्यक्ष-इंदौर प्रेस क्लब संपादक-प्रेस क्लब टाइम्स