आमतौर पर माना जाता है कि जब वोट ज्यादा पड़ते हैं तो सत्ता में बदलाव निश्चित है लेकिन कल मध्यप्रदेश में मतदान प्रतिशत ने नक्सली समस्या से ग्रस्त पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का सिर ऊंचा कर दिया है क्योंकि छत्तीसगढ़ में 66% व मप्र में 55% वोटिंग हुई। ट्विटर, फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर दिन-दुगने रात-चौगुने नमो-नमो का जाप करने वाले तथाकथित विकास के चहेते भी लगता है वोटिंग के दिन भी अपना एडमिन धर्म नहीं छोड़ पाए, मतदान के दिन भी ट्विट करने में व्यस्त रहे। रही बात विपक्षी कांग्रेस की तो वहां 2-4 सीटों पर प्रत्याशिेयों की दमखम रही वहीं, शेष सीटों पर पार्टी ने पहले से ही हार मान ली और कार्यकर्ता भी निराश है एवं उसका परंपरागत वोटर भी इस बार कुछ सोच नहीं पाया।
कम वोटिंग से दो अंदाज़े लगाए जा सकते हैं- पहला यह कि मप्र में हुए लोकसभा के दूसरे चरण में 10 सीटों पर 54 फीसदी मतदान में केवल बदलाव चाहने वालों ने वोट दिया है यानि विपक्षी पार्टियों को मत देने वाले समझ गए कि वोट हम जिस पार्टी को देंगे, वो व्यर्थ जाएगा। दूसरा यह अंदाज़ा यह है कि चुनाव आयोग के करोड़ो रुपए मतदाताओं को जागरुक करने पर खर्चने के बाद भी तमाम कोशिशें विफल रहीं क्योंकि 'कोई भी बन जाए, सब नेता बदमाश हैं' सोच कर कईयों ने बैलेट बटन दबाने के लिए उंगली नहीं उठाई॥
नीरज चौधरी
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