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लखनऊ

सावधान रैली: अब पिछड़ों-मुसलमानों पर फोकस करेगी बसपा

उत्तर प्रदेश में खोया जनाधार वापस हासिल करने के लिये बहुजन समाज पार्टी(बसपा) सुप्रीमों मायावती समाजवादी पार्टी को निशाने पर रखेंगी। हालांकि लड़ाई दिल्ली की हो रही है, लेकिन बसपा यूपी के मुद्दों को ही हावा देंगी, जिस तरह से 2012 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने माया के भ्रष्टाचार और तानाशाही रवैये को हवा देकर बसपा को सत्ता से बेदखल किया था ठीक उसी तरह से बसपा लोकसभा चुनाव में प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था, मुसलमानों की सरकार से नाराजगी, सपाईयों की गुंडागर्दी को हथियार बनायेगी ताकि केन्द्र की राजनीति में सपा का दखल कम हो सके। इस बात का अहसास बसपा की सुप्रीमों मायावती ने आम चुनाव के लिये खास अंदाज में चुनावी शंखनाद करके दे दिया है। लखनऊ में उन्होंने अपनी ताकत का इजहार किया तो दिल्ली तक में इसकी गूंज सुनाई दी।

उत्तर प्रदेश में खोया जनाधार वापस हासिल करने के लिये बहुजन समाज पार्टी(बसपा) सुप्रीमों मायावती समाजवादी पार्टी को निशाने पर रखेंगी। हालांकि लड़ाई दिल्ली की हो रही है, लेकिन बसपा यूपी के मुद्दों को ही हावा देंगी, जिस तरह से 2012 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने माया के भ्रष्टाचार और तानाशाही रवैये को हवा देकर बसपा को सत्ता से बेदखल किया था ठीक उसी तरह से बसपा लोकसभा चुनाव में प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था, मुसलमानों की सरकार से नाराजगी, सपाईयों की गुंडागर्दी को हथियार बनायेगी ताकि केन्द्र की राजनीति में सपा का दखल कम हो सके। इस बात का अहसास बसपा की सुप्रीमों मायावती ने आम चुनाव के लिये खास अंदाज में चुनावी शंखनाद करके दे दिया है। लखनऊ में उन्होंने अपनी ताकत का इजहार किया तो दिल्ली तक में इसकी गूंज सुनाई दी।

यूपी की सत्ता गंवाने के बाद मायावती पहली बार इतने बड़े मंच पर अपने लाखों चाहनें वालों के सामने नजर आईं थी। पूरी तैयारी के साथ वह ‘सावधान रैली’ में गरजीं। शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा जिसे उन्होंने न छुआ हो। ठंड पूरे शबाब पर थी, तो मायावती का पारा विरोधियों पर चढ़ा था। करीब दो घंटे के भाषण में उन्होंने किसी को नहीं छोड़ा। मंच से सिर्फ मायावती का भाषण हुआ। कोई ज्यादा तो कोई कम निशाने पर रहा। उन्होंने अपने वोटरों से बसपा के हाथ में शक्ति संतुलन की चाबी सौंपने को कहा तो उन लोगों को निराश भी किया जो यह भविष्यवाणी कर रहे थे कि मायावती इस रैली में यूपीए से अपना गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर सकती हैं। माया ने अपने समर्थकों के सामने पार्टी का नजरिया रखा। उन्हें संभावित राजनैतिक खतरे का अहसास कराया। दलित शक्ति के खिलाफ विपक्षी गठजोड़ को तोड़ने की अपील करके वह दलितों की रहनुमा बनने की ख्वाहिश को और अधिक परवान चढ़ाती दिखीं। बसपा नेत्री ने भाजपा को साम्प्रदायिक करार दिया तो कांग्रेस का भविष्य अंधकारमय बताया। समाजवादी पार्टी को गुंडो की पार्टी बता कर बसपा सुप्रीमों ने अखिलेश शासन को यूपी को क्राइम प्रदेश बनाने का श्रेय दिया। वहीं आम आदमी पार्टी(आप) को नाटकबाज का खिताब दिया गया। यह और बात थी कि मंच से बिजली-पानी के बहाने जनता को लुभाने के फेर में वह ‘आप’ पार्टी के पद चिन्हों पर चलती दिखीं। सर्वसमाज का नारा देने वाली मायावती अबकी दलितों के अलावा पिछड़ों-मुसलमानों के मोहपाश में फंसी दिखीं। उन्होंने आरक्षण पर सपा की सोच पर सवाल खड़ा किया तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की जरूरत वाली बात को पुनः दोहराया।
    
माया विभिन्न राजनैतिक दलों के खिलाफ तो उग्र रहीं, कई नेताओं पर उन्होंने व्यक्तिगत हमले भी किये। खासकर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव उनके निशाने पर रहे। उन्होंने मोदी के वादों की विश्वसनीयता व नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किये तो 'जो गरजते हैं, वह बरसते नहीं का मुहावरा दोहरा कर उनकी ताकत कम करने की कोशिश की। मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के बेतुके बयान पर उनको आड़े हाथों लिया। केजरीवाल के संबंध में उनका कहना था कि वह दलितों का भला नहीं कर सकते। माया का यह दावा बता रहा था कि बसपा में भी आप को लेकर सुगबुगाहट है। कांग्रेस के युवराज और संभावित कांग्रेसी प्रधानमंत्री राहुल गांधी के खिलाफ जरूर उनके तेवर लचर रहे। इसे बसपा की दूरगामी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
    
माया की सावधान रैली खत्म हो गई। पूरे देशभर से आये उनके लाखों प्रशंसक अपने घरों को चले गये, लेकिन माया की बातों का पोस्टमार्टम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।सावधान रैली करके बसपा ने क्या खोया, क्या पाया यह बहस बुद्धिजीवियों को साथ राजनीति के गलियारे में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। पिछले दो वर्षो में यूपी की सियासत में आये बढ़े बदलाव से माया के पंख निकल आये है। सपा राज के दंगों और मोदी के उभार ने बसपा को नई ताकत प्रदान की है। माना जा रहा था कि माया लोकसभा चुनाव भी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर लड़ेंगी, लेकिन सावधान रैली में एक घंटा और 48 मिनट के भाषण के दौरान चालीस मिनट तक दलित एजेंडे पर उनके केन्द्रित रहने से साफ हो गया कि दलित वोट बैंक को लेकर पार्टी पूरी तरह से गंभीर है। पूरे संबोधन में मयावती ने तीन बार खुद को दलित समाज की बेटी कहकर दलित शक्ति की ताकत की याद दिलाने की कोशिश की। हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रहमा, विष्णु, महेश है, जैसे नारे दूर-दूर तक नजर नहीं आये। दलितों के बाद उनका फोकस मुसलमानों पर रहा। वह मौके का फायदा उठाकर सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने को आतुर दिखीं। माया ने आरोप लगाया कि सपा सरकार दलित महापुरूषों के नाम पर बने विश्वविद्यालयों और स्मारकों का नाम बदल कर उन्हें मुस्लिम समाज के महापुरूषों के नाम पर रखकर दलित-मुस्लिमों का लड़ाने की साजिश कर रहा है। मुस्लिमों की हमदर्दी हासिल करने के लिये माया ने गुजरात दंगों और गोधरा कांड का भी सहारा लिया। देखना यह है कि माया के तीर कितने निशाने पर बैठते हैं। बसपा सुप्रीमों लगातार अपने संबोधन से सपा, भाजपा और कांग्रेस की इमेज थ्री-इडियट जैसी बनाने में लगी रहीं।
    
बहरहाल, भाजपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को माया का ‘रौद्र’ रूप रास नहीं आ रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने आरोप लगाया कि बसपा की रैली विफल रही। माया के भाजपा नेताओं पर लगाये गये आरोप बेबुनियाद हैं। माया को आरोप लगाने से पहले सौ बार सोचना चाहिए था। वह मौजूदा समय में जो भी हैं भाजपा की वजह से है। उन्हें भाजपा के खिलाफ बोलने का नैतिक अधिकार भी नहीं है। भाजपा इसका जबाव 02 मार्च को लखनऊ में होने वाली मोदी की रैली में देगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने माया के बारे में संधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कांग्रेस का भविष्य अंधकारमय नहीं है। कांग्रेस का भविष्य अधंकारमय बताने वाले खुद गर्दिश में चले जाते हैं। यह बात 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद साफ हो जायेगी। बसपा पर उसकी प्रबल प्रतिद्वंदी समाजवदी पार्टी ने तीखा हमला किया। बसपा की रैली खत्म होने के मात्र दो घंटे के भीतर सपा के महासचिव और कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने मीडिया को बुलाकर भड़ास निकली। उन्होंने कहा अजीब बात है कि मुजफ्फरनगर के पीडि़तों के आंसू पोंछने तो बसपा अध्यक्ष कभी उनके बीच गई नहीं लेकिन धड़ियाली आंसू बहाने में वे सबको पीछे छोड़ दिया हैं। समाजवादी पार्टी की सामाजिक न्याय यात्रा से भी उन्हें खतरा लगता हैं क्योंकि 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का लाभ मिलने पर उन्होने जिस तरह बंदिश लगाई थी, उसका भांडा फूट चुका है। शिवपाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश को क्राइम प्रदेश कहना प्रदेश की जनता को अपमानित एवं बदनाम करना हैं। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था सबसे ज्यादा बदहाल उनके समय रही। हत्या, बलात्कार लूट में उनके समय ही आधा दर्जन मंत्री विधायक अदालती आदेश पर जेल गए थे। खुद पूर्व मुख्यमंत्री ने माना था कि उनकी पार्टी और सरकार में 500 अपराधी है। वे समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के दिन से ही राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहीं हैं।

लेखक अजय कुमार लखनऊ में पदस्थ हैं. वे यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं. अजय कुमार वर्तमान में ‘चौथी दुनिया’ और ‘प्रभा साक्षी’ से संबद्ध हैं.

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