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जांच के दौरान उचित विश्राम व समय पर भोजन भी मानवाधिकार हैं

आवेदक राजेंद्र सिंह ने दिनांक 08/09/2010 से 10/09/2010 के बीच अपने आवासीय परिसर में आयकर विभाग के अधिकारियों द्वारा की गयी खोज और जब्ती की कार्यवाही के दौरान अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायत को लेकर बिहार मानवाधिकार आयोग से निवेदन किया था| आवेदक की शिकायत थी कि वह अल्पसंख्यक सिख समुदाय से संबंध रखता है| उसने कहा कि पटना शहर में मीठापुर में आरा मिल व लकड़ी का व्यापार कर वह अपनी आजीविका अर्जित करता था| दिनांक 08/09/2010 को श्री सौरभ कुमार, श्री सुमन झा, श्री कनकजी और श्री अचुतन नामक आयकर विभाग के अधिकारीगण छह अन्य सहयोगियों के साथ उसके घर आये और मुख्य गेट बंद कर दिया जो कि प्रवेश और निकास का एक मात्र रास्ता था| उन्होंने आवेदक और उपस्थित दूसरे लोगों के मोबाइल फोन ले लिये और छापे के दौरान उन्हें बाहर के किसी भी व्यक्ति से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी| यहाँ तक कि उन्हें खाना पकाने के लिए भी अनुमति नहीं दी गयी| उन्होंने महिलाओं सहित परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया| उन्होंने निर्भय होकर वहां धूम्रपान किया है, शिकायतकर्ता की  धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई है, तथा सिख गुरुओं और स्वर्ण मंदिर की तस्वीरों पर सिगरेट के टुकड़े और सिगरेट के खाली पैकेट फेंक दिये| उन्हें शौचालय जाने की अनुमति भी नहीं दी गयी| आवेदक ने अपने वकील को बुलवाया किन्तु उसे वह जगह छोड़ने के लिए विवश किया गया| उन्होंने छापे के दौरान अन्य दंडात्मक कार्रवाई की धमकियां भी दीं|

आवेदक राजेंद्र सिंह ने दिनांक 08/09/2010 से 10/09/2010 के बीच अपने आवासीय परिसर में आयकर विभाग के अधिकारियों द्वारा की गयी खोज और जब्ती की कार्यवाही के दौरान अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायत को लेकर बिहार मानवाधिकार आयोग से निवेदन किया था| आवेदक की शिकायत थी कि वह अल्पसंख्यक सिख समुदाय से संबंध रखता है| उसने कहा कि पटना शहर में मीठापुर में आरा मिल व लकड़ी का व्यापार कर वह अपनी आजीविका अर्जित करता था| दिनांक 08/09/2010 को श्री सौरभ कुमार, श्री सुमन झा, श्री कनकजी और श्री अचुतन नामक आयकर विभाग के अधिकारीगण छह अन्य सहयोगियों के साथ उसके घर आये और मुख्य गेट बंद कर दिया जो कि प्रवेश और निकास का एक मात्र रास्ता था| उन्होंने आवेदक और उपस्थित दूसरे लोगों के मोबाइल फोन ले लिये और छापे के दौरान उन्हें बाहर के किसी भी व्यक्ति से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी| यहाँ तक कि उन्हें खाना पकाने के लिए भी अनुमति नहीं दी गयी| उन्होंने महिलाओं सहित परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया| उन्होंने निर्भय होकर वहां धूम्रपान किया है, शिकायतकर्ता की  धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई है, तथा सिख गुरुओं और स्वर्ण मंदिर की तस्वीरों पर सिगरेट के टुकड़े और सिगरेट के खाली पैकेट फेंक दिये| उन्हें शौचालय जाने की अनुमति भी नहीं दी गयी| आवेदक ने अपने वकील को बुलवाया किन्तु उसे वह जगह छोड़ने के लिए विवश किया गया| उन्होंने छापे के दौरान अन्य दंडात्मक कार्रवाई की धमकियां भी दीं|

उक्त के आलोक में आयोग द्वारा मुख्य आयकर आयुक्त बिहार को नोटिस जारी किया गया, जो आगे आयकर महानिदेशक(अनुसंधान) को भेज दिया गया| अंततः विभाग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में आवेदक द्वारा किए गए आरोपों का खंडन किया गया| कई बार स्थगन के बाद अंत में आवेदक अपने वकील के साथ उपस्थित हुए और श्री विजय कुमार, अपर आयकर आयुक्त की उपस्थिति में प्रकरण दिनांक को 18/04/2011 को सुना गया|  

आयोग के समक्ष कार्यवाही में आवेदक ने शिकायत में वर्णित आरोपों को दोहराया| उसने खोज और जब्ती की कार्यवाही की वैधता और औचित्य पर सवाल उठाया| शिकायतकर्ता ने कहा कि उक्त सम्पूर्ण कार्यवाही मात्र आवेदक को परेशान करने के लिए की गयी है और अधिकारियों के इस  वैमनस्यपूर्ण कार्यवाही से भी संतुष्ट नहीं होने पर यह खोज और जब्ती की कार्यवाही आज तक जारी है| शिकायतकर्ता द्वारा यह जानकारी भी दी गयी कि विभाग ने आवेदक के खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्य सरकार के वन विभाग और पंजीकरण विभाग से भी संपर्क किया है| श्री विजय कुमार, विभागीय प्रतिनिधि ने आवेदक के आरोपों का खंडन किया|

दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार के बाद आयोग ने महिला सदस्यों सहित अपीलार्थी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने व परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार के संबंध में आरोप के तथ्यों के निर्धारण हेतु विचारण उचित समझा|   

सुनवाई के अनुक्रम में आयोग ने यह कहा कि खोज और जब्ती की कार्यवाही की वैधता की जांच का मामला आयकर अधिनियम के सुसंगत प्रावधानों के तहत उचित मंच पर उठाया जा सकता है| आयोग ने माना कि आवेदक के यहाँ 8 से 10 सितंबर 2010 तक जिस ढंग से खोज और जब्ती की कार्रवाई की गयी उसका मूल्यांकन करने में आयोग सक्षम नहीं है| विभाग के प्रतिनिधियों ने कहा कि खोज और जब्ती की कार्यवाही तो इस प्रकरण में लगे समय से भी ज्यादा समय के लिए भी जारी रह सकती है| आयोग मोटे तौर पर इससे सहमत है कि खोज और जब्ती की कार्यवाही के लिए अवधि के रूप में कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती लेकिन आयोग की राय में खोज और जब्ती की कार्यवाही संबंधित व्यक्ति के मानवाधिकारों के अनुरूप होनी चाहिए|

आयोग ने माना कि यह स्वीकृत तथ्य है कि खोज और जब्ती की कार्यवाही दिनांक 08/09/2010 को प्रात: 9:30 बजे शुरू और दिनांक 10/09/2010 को रात्रि 9.20 बजे संपन्न हुई है| आवेदक की शिकायत थी कि इस अवधि के दौरान उससे लगातार 30 घंटे के लिए पूछताछ की गयी| आयकर विभाग द्वारा धारा 132 के तहत शपथ पर दर्ज आवेदक के बयान के प्रश्न संख्या 15 में अधिकारी श्री सौरभ कुमार ने दर्ज किया है कि उससे खाताबहियाँ आदि पेश करने के लिए कहा जा रहा था लेकिन 36 से अधिक घंटे बीतने के बावजूद आवेदक ने एक भी प्रस्तुत नहीं की है| इससे कार्यवाही में लगे समय का अनुमान लगाया जा सकता है|  

विभागीय प्रतिनिधि द्वारा यह बताया गया कि दिनांक 09.09.2010 को रात्रि 10 बजे तक मात्र 15 प्रश्न पूछे गए थे जिससे यह स्पष्ट है कि पूछताछ में लिया गया समय किसी भी प्रकार से उचित नहीं था| आयोग का विचार है कि छापामार दल के सदस्यों को खोज और जब्ती कार्यवाही संपन्न करने में समय लग सकता है लेकिन इस तरह की कार्यवाहियों में व्यक्ति के बुनियादी मानवाधिकारों को ध्यान में रखा जाना चाहिए| उन्हें कार्यवाही करने के लिए शारीरिक और मानसिक यातना देने का कोई अधिकार नहीं है| प्रभारी अधिकारी यदि पूछताछ/बयान की रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया जारी रखना चाहता है तो वह दिन के उचित समय पर ही बंद कर दी जानी चाहिए और अगली सुबह फिर से शुरू की जानी चाहिए थी| लेकिन हस्तगत प्रकरण में किसी भी विश्राम या अंतराल के बिना प्रात: 03:30 बजे तक प्रक्रिया जारी रही है जबकि यह शयन का समय है और आवेदक तथा/ या उनके परिवार के सदस्यों को ऐसे अनुचित समय तक जागते रहने के लिए के लिए मजबूर करना एक सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता| यह व्यक्ति की गरिमा से संबंधित अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इसलिए मानवाधिकारों का उल्लंघन था| यहां तक ​​कि दुर्दांत अपराधियों को भी मानवाधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता| आवेदक की स्थिति तो इससे बदतर नहीं थी| आयोग की राय में आयकर विभाग को भविष्य में बड़े पैमाने पर खोज और जब्ती कार्यवाही में सुनिश्चित करना चाहिए कि बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो| आयोग ने आगे कहा कि वह प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि खोज और जब्ती कार्यवाही जारी रखते हुए आयकर विभाग के संबंधित अधिकारियों द्वारा आवेदक के मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है जिसके लिए वह आर्थिक मुआवजा पाने का अधिकारी है|

लेखक का मत है कि किसी भी व्यक्ति से उसकी परिस्थितियों के विपरीत व्यवहार भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है| यथा कश्मीर जैसे शीत प्रदेश के निवासी को भीषण गर्मी वाले मरुस्थल में या इसके विपरीत रखना या रहने के विवश करना मानवाधिकारों का हनन है| ठीक इसी प्रकार अशक्त या अस्वस्थ व्यक्ति को उसकी परिस्थति के अनुसार भोजन न उपलब्ध करवाना भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है| पंजाब राज्य मानावाधिकार आयोग ने तो सेवा, न्याय आदि से सम्बंधित मामलों को भी मानवाधिकार हनन माना है| भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, “किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं|”

हाल ही में सांसद धनञ्जय सिंह को एक अभियोग में पुलिस हिरासत में लिया गया था और हिरासत अवधि के दौरान उन्होंने अपने घर पर बने भोजन के लिए पुलिस से अपेक्षा की किन्तु पुलिस ने कहा कि न्यायालय की अनुमति के बाद ही ऐसा किया जा सकता है| जबकि कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है कि एक परीक्षण के अधीन हिरासत में व्यक्ति को घर के भोजन से वंचित किया जाएगा अथवा इसके लिए कोई अनुमति की आवश्यकता है| लेखक ने स्वयं यह प्रकरण राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाया और आयोग ने इस प्रकरण में गृह मंत्रालय को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश जारी किये हैं| ठीक इसी प्रकार तरुण तेजपाल के मामले में भी हाल ही में तहलका की एक संपादिका को गोवा पुलिस ने गवाही हेतु पूछताछ के लिए उसके निवास से भिन्न स्थान पर बुलाया और रात्रि 2 बजे तक उससे पूछताछ की गयी| जबकि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के अनुसार एक महिला और 15 वर्ष तक के बालक गवाह से मात्र उसके निवास पर ही पूछताछ की जा सकती है| लेखक द्वारा यह मामला भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाये जाने पर गोवा पुलिस को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश जारी किये गए हैं| अत: जागरूक पाठकों से आग्रह है कि जहां भी वे मानवाधिकार उल्लंघन का कोई मामला देखें उसकी रिपोर्ट मानवाधिकार आयोग को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजें ताकि मानव गरिमा का रक्षा हो सके|

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लेखक मनीराम शर्मा विधि विशेषज्ञ हैं।

 

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