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लखनऊ

मीडिया पर क्यों भड़के अखिलेश…

उत्तर प्रदेश के सुल्तान अखिलेश यादव को गुस्सा आ ही गया। सैफई महोत्सव की मीडिया कवरेज को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिस तरह मीडिया पर भड़के उसने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों बल्कि मीडिया हाउस में भी खलबली मचा दी। कुछ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री के इन तेवरों की आलोचना की तो कुछ ने कहा कि जब पत्रकार अपना मूल पेशा छोड़कर अगर मुख्यमंत्री की चरण वंदना करेंगे और उनसे लाभ उठायेंगे तो एक न एक दिन यह तो होना ही था। बहरहाल अब चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि मुख्यमंत्री के इस फैसले से उन्हें फायदा होगा या नुकसान।

उत्तर प्रदेश के सुल्तान अखिलेश यादव को गुस्सा आ ही गया। सैफई महोत्सव की मीडिया कवरेज को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिस तरह मीडिया पर भड़के उसने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों बल्कि मीडिया हाउस में भी खलबली मचा दी। कुछ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री के इन तेवरों की आलोचना की तो कुछ ने कहा कि जब पत्रकार अपना मूल पेशा छोड़कर अगर मुख्यमंत्री की चरण वंदना करेंगे और उनसे लाभ उठायेंगे तो एक न एक दिन यह तो होना ही था। बहरहाल अब चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि मुख्यमंत्री के इस फैसले से उन्हें फायदा होगा या नुकसान।

सैफई महोत्सव के आखरी दिन सैफई में फिल्मी सितारों का जमावड़ा लगा हुआ था। आधा दर्जन से ज्यादा हवाई जहाज जब सैफई में फिल्मी कलाकारों को लेकर उतरे तो नजारा देखने लायक था। सलमान खान से लेकर माधुरी दीक्षित और आलिया भट्ट से लेकर कपिल शर्मा तक सबको देखने के लिए जनता का हुजूम उमड़ पड़ा। मगर इलेक्ट्रानिक मीडिया ने मुख्यमंत्री के सारे सपनों पर पानी फेर दिया। देश के लगभग सभी चैनलों ने इस कार्यक्रम की तीखी आलोचना की। न सिर्फ आलोचना बल्कि इसकी भर्त्सना भी की। सब ने इस कार्यक्रम को मुजफ्फरनगर के राहत शिविर से जोड़ कर दिखाया। सब चैनलों पर चलने लगा कि एक तरफ जहां राहत शिविर में लोग ठंड से कंपकंपा रहे हैं। ठंड के कारण वहां बच्चे मर रहे हैं मगर मुख्यमंत्री इनकी चिंता की जगह सैफई में नाच-गाना कर रहे हैं। चैनल यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने फिल्मी सितारों की भी तीखी आलोचना करते हुये कहा कि उन्हें इस कार्यक्रम में नहीं आना चाहिए था। कुछ चैनल तो इससे भी आगे बढ़ गये और उन्होंने सीधे फिल्मी कलाकारों को ही फोन करके उनसे कहना शुरु किया कि उन्हें इस कार्यक्रम में नहीं आना चाहिए था। फिल्मी सितारों को भी लगा कि अगर टीवी चैनलों पर इस तरह की खबरे चलीं तो यह उनके भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। आलिया भट्ट के पिता महेश भट्ट ने तो अपनी बेटी के इस कार्यक्रम में जाने के लिए बाकायदा माफी भी मांगी।

कार्यक्रम के अगले दिन माधुरी दीक्षित की फिल्म डेढ़ इश्किया का प्रीमियर था। मुख्यमंत्री को उनके साथ फिल्म देखना था मगर इतने हंगामे के बाद मुख्यमंत्री ने भी इस फिल्म को देखने का इरादा छोड़ दिया। यही नहीं जिस फिल्म बुलेट राजा को सरकार ने एक करोड़ रुपये की धनराशि दी थी उन्होंने भी इस धनराशि को यह कहते हुये मना कर दिया कि मुजफ्फरनगर दंगों के पीडि़त लोगों की हालत को देखते हुये वह यह धनराशि स्वीकार कर पाने में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। जाहिर हैं यह सारी बातें मुख्यमंत्री को अपमानित करने सरीखी थीं। लिहाजा मुख्यमंत्री ने सैफई से लौट कर अपने घर पर प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। किसी पत्रकार को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि आज मुख्यमंत्री उन लोगों पर ही हमला करने वाले हैं। तीखे तेवरों में बैठे मुख्यमंत्री ने सबसे पहला हमला दैनिक जागरण पर बोला और कहा कि उनके मालिकों को एक बार राज्यसभा भेजा। दूसरी बार भी टिकट मांग रहे थे, नहीं दिया तो ऐसी झूठी खबर छाप दी। वह यहीं नहीं रुके बल्कि कहा कि पिछली सरकार में पुलिस वालों ने पीटा और जुऐ में पकड़े गये। सब चैनल वालों पर इसकी खबर है यह कोई नहीं दिखाता। एक अंग्रेजी टीवी चैनल पर भी भड़कते हुये कहा कि उसके पत्रकार को दिन भर हैलीकाप्टर में घुमाया मगर खबर नहीं दिखायी गयी बल्कि कहा गया कि सेल्स और मार्केटिंग वालों ने इसके लिए मना कर दिया। क्या ये ठीक है। जाहिर है मुख्यमंत्री की मंशा साफ थी कि मीडिया के लोग उनसे फायदा भी उठायेंगे और उन पर हमला भी करेंगे। यह ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री के इन कड़े तेवरों का कोई भी पत्रकार विरोध नहीं कर सका।

इसके पिछले हफ्ते ऐसी ही एक भरी प्रेस कांफ्रेस में मुख्यमंत्री एनडीटीवी के रिपोर्टर को हड़का चुके थे। मुख्यमंत्री के इन तेवरों की भाजपा, कांगे्रस और बसपा ने तीखी आलोचना की। इन लोगों ने कहा कि सरकार सत्ता के नशे में डूब गयी है और इस तरह का तानाशाही रवैया अपना रही है। मीडिया में भी मुख्यमंत्री के इन तेवरों की मिलीजुली प्रतिक्रिया रही। अधिकांश पत्रकारों का कहना था कि मुख्यमंत्री कुछ चुनिंदा टीवी पत्रकारों को ज्यादा महत्व दे रहे थे जिसका उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। उनका यह भी कहना था कि मुख्यमंत्री को सबको बदनाम करने की जगह उन सभी लोगों के नाम उजागर करना चाहिए थे जो उनसे लाभ की उम्मीद करते हैं। मीडिया कंसल्टेंट जितेन्द्र कुमार खन्ना का कहना है कि सत्ता के चाटुकार पत्रकारों के काले कारनामे सबके सामने आना बहुत जरुरी था। वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार का कहना है कि इसमें अखिलेश यादव ने क्या गलत किया। जब हर प्रेस वार्ता के बाद पत्रकार तरह-तरह के प्रार्थना पत्र लेकर मुख्यमंत्री के आगे पीछे मंडरायेंगे तो ऐसा ही होगा। वरिष्ठ पत्रकार अभिनव पाण्डे ने कहा कि जब भाई लोग अपने मुनाफे की बाते करेंगे तो गाली तो खानी ही पड़ेंगी। उन्होंने सवाल किया कि अपनी कोई यूनियन या एसोसिएशन ऐसी है जो इसका विरोध करे। वरिष्ठ पत्रकार प्रेम वर्मा ने कहा कि पत्रकारों को चाहिए कि वह अपना आचरण सुधारे और कोई ऐसा काम न करें जिससे उनके ऊपर उंगली उठे। पत्रकार प्रभात तिवारी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जिस तरीके से प्रत्रकारों को नंगा किया वह एकदम सही है क्योंकि सफाई का अभियान सिर्फ राजनेताओं तक चले यह ठीक नहीं। पत्रकार मोहम्मद कामरान ने कहा कि यह चरण वदंना जारी रहेगी क्योंकि जिनकी कलम नहीं चलती वह सिर्फ चरण वंदना करके ही काम चलाते हैं। पत्रकार आसिफ अंसारी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने ही इनको सरकारी बंगले, सस्ते प्लाट और फ्री इलाज दे कर इनके ही दिमाग खराब किये हैं। पत्रकार रूबी सिद्दीकी ने कहा कि मुख्यमंत्री देर आये मगर दुरुस्त आये। पत्रकार सिद्घार्थ कलहंस का भी मानना है कि पत्रकारों को अपना काम सिर्फ पत्रकारिता तक रखना चाहिए। पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि ग़नीमत है कि हल्ला बोल नहीं हो रहा। पत्रकार प्रदीप उपाध्याय ने कहा कि नेता पहले खिलायेगा फिर गरियायेगा। सोशल एक्टिविस्ट संदीप वर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया की ताकत से पत्रकार अब लिखने लगे हैं नहीं संभले तो और नुकसान होगा। जाहिर है आने वाला समय मीडिया के लिए और मुसीबत भरा होने वाला है क्योंकि हर समय मुस्कुराने वाले टीपू सुल्तान को अब गुस्सा भी आने लगा है।

लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और वीकएंड टाइम्स हिंदी वीकली के संपादक हैं।

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