दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सम्मेलन हुआ। इसमें खास एजेंडा राहुल गांधी की ‘पदोन्नति’ का रहा। देशभर से कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा था। पार्टी के अंदर चौतरफा दबाव बढ़ाया गया था कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए। क्योंकि, पार्टी के कार्यकर्ता अब अपने नेता को स्पष्ट तौर पर बड़ी राष्ट्रीय भूमिका में देखना चाहते हैं। पार्टी के इस दबाव के बावजूद रणनीतिकार इस मुद्दे पर घाटे-नफे का हिसाब लगाने में जुटे रहे। इस सम्मेलन के बहाने पार्टी के अंदर राहुल के जयकारे की गूंज तेज हुई है। कांग्रेस के इस ‘महोत्सव’ के एक दिन पहले नेहरू-गांधी परिवार की सदस्य मेनका गांधी ने अपनी जुबान कुछ ज्यादा ही पैनी कर ली है। उन्होंने अपनी जेठानी सोनिया गांधी के साथ उनके बच्चों की भी जमकर खबर ले ली है।
यूं तो मेनका गांधी और सोनिया गांधी के बीच घरेलू रार कोई नई नहीं है। लेकिन, पिछले कई वर्षों से दोनों परिवार एक-दूसरे के खिलाफ खुले तौर पर कुछ न कहने की ‘सदाशयता’ जरूर दिखाते रहे हैं। लेकिन, चुनावी मौके को ताड़ कर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भाजपा में अपनी वफादारी और दिखाने के लिए सोनिया और राहुल के खिलाफ तीखे कटाक्ष कर डाले हैं। उन्होंने एक टीवी न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान कई तल्ख टिप्पणियां कर डालीं। उन्होंने लोकसभा चुनाव की राजनीतिक संभावनाओं के संदर्भ में कहा है कि कम से कम इस बार कांग्रेस की डूब तय है। क्योंकि, पिछले 10 सालों के शासन में कांग्रेस के मंत्रियों ने जमकर लूट की है। यह तमाशा पूरे देश ने देखा है।
जब उनसे सवाल किया गया कि राहुल गांधी को कांग्रेस में और बड़ी जिम्मेदारी देने की तैयारी चल रही है, इससे लोकसभा की उनकी रणनीति में क्या अंतर आ सकता है? तो इस पर मेनका ने कटाक्ष किया कि अब तक पार्टी और सरकार की सत्ता और किसके पास थी? ये लोग क्या देश की जनता को बेवकूफ समझ रहे हैं? चाहे किसी को कुछ भी बना दें, लेकिन इस बार तो कांग्रेस का सफाया होना तय है। क्योंकि, पिछले 10 सालों में इनके लोगों ने लूटमार और चोरी ही तो की है। इससे पूरा देश तबाही के कगार पर पहुंचा है। इसी मुद्दे पर मेनका ने यह भी कह डाला कि 40 चोरों (संदर्भ अली बाबा) का कोई भी अध्यक्ष बन जाए, उससे क्या फर्क पड़ने वाला है?
इंटरव्यू के दौरान मेनका, सोनिया गांधी परिवार पर प्रहार करने की मूड में ही थीं। उन्होंने सोनिया के बारे में कटाक्ष किया कि सभी लोग जानते हैं कि संगठन के साथ सरकार की भी कमान मां-बेटे के पास रही है। बेचारे (मनमोहन), जिन्हें प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है, उनके पास वास्तविक सत्ता तो कभी नहीं रही। ऐसे में, इन बातों का कोई मतलब नहीं है कि उनकी जगह ये पार्टी किसी नए चेहरे को प्रोजेक्ट कर दे। इससे कुछ नहीं होने वाला। अगला सवाल था कि राहुल गांधी की छवि चमकाने के लिए एक बड़ी मीडिया एजेंसी की सेवाएं ली गई हैं। इस पर पार्टी करीब 500 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है। क्या, इससे कोई बड़ा फर्क पड़ सकता है? इस मुद्दे पर भी भाजपा सांसद मेनका खुलकर बोलीं। उन्होंने यही कहा कि वे 500 करोड़ रुपए खर्च कर लें या 5 हजार करोड़ रुपए खर्च लें, लेकिन अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। यह भी जरूरी है कि कांग्रेस वाले, देश को बताएं कि इतने पैसे कहां से आ रहे हैं? इसका कोई हिसाब भी है इनके पास?
प्रियंका गांधी वाड्रा सक्रिय राजनीति में नहीं उतरी हैं। लेकिन, हर बार चुनावी मौके पर उनको लेकर कई तरह के कयास लगते रहते हैं। पिछले दिनों प्रियंका गांधी को लेकर चर्चा चली थी कि वे इस बार कांग्रेस को उबारने के लिए बड़ी भूमिका में आ सकती हैं। लेकिन, राहुल गांधी ने एक मीडिया इंटरव्यू में यह साफ कर दिया कि उनकी बहन प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में आएंगी, उन्हें ऐसा नहीं लगता। यह अलग बात है कि वो रायबरेली और अमेठी में उनकी जमकर मदद करती हैं। इस बीच यह भी खबर आई है कि रायबरेली और अमेठी का चुनावी काम देखने के साथ ही प्रियंका, राहुल और अपनी मां सोनिया गांधी के चुनावी दौरों का प्रबंधन करने की भूमिका निभाएंगी। कांग्रेस की एक लॉबी अभी भी उम्मीद बांधे है कि प्रियंका गांधी सक्रिय भूमिका में आ जाएं, तो पार्टी संभावित चुनावी संकट से उबर सकती है। इस संदर्भ में मेनका ने कहा कि वो लोग (कांग्रेस) किसी को भी ले आएं, लेकिन इस बार कांग्रेस चुनावी हार से बचने वाली नहीं है। प्रियंका के संदर्भ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब किसी का ग्लैमर इस पार्टी को बचा नहीं सकता है। क्योंकि, इनकी लूट से पूरा देश तबाह हो चुका है।
जब यह सवाल आया कि नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी का चुनावी मुकाबला संभावित है, ऐसे में वे क्या संभावनाएं देख रही हैं? इस पर तीखे कटाक्ष के साथ मेनका ने कह दिया भला, शेर और चिड़िया के बीच कोई मुकाबला हो सकता है क्या? जाहिर है उन्होंने मोदी के लिए शेर, तो राहुल के लिए चिड़िया शब्द का प्रयोग किया। लोग गनीमत समझ रहे हैं कि मेनका ने गीदड़ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, केवल चिड़िया कहने से ही काम चला लिया। मेनका के इस प्रहार से कांग्रेस नेतृत्व में काफी नाराजगी है। केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने तो कह दिया है कि मेनका राजनीतिक अभद्रता पर उतारू हैं। उन्हें तो प्रियंका गांधी के करिश्मे से जलन हो रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता एवं केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुला ने मेनका की टिप्पणियों को लेकर कहा है कि सोनिया गांधी के परिवार से मेनका की 20 साल पुरानी खुंदक है, ऐसे में मेनका की बातों का कोई गंभीर राजनीतिक मतलब नहीं है।
लेकिन, भाजपा का नेतृत्व मेनका गांधी के साहस (?) से गदगद हैं। भाजपा के चर्चित नेता किरीट सौमेया कहते हैं कि मेनका गांधी की सोच ज्यादा जिम्मेदारी वाली है। वे देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं। इसीलिए, उन्होंने इतनी कड़ी बातें कहने की हिम्मत की है। भाजपा के हल्कों में माना जा रहा है कि मेनका ने इस दौर में सोनिया गांधी और राहुल के खिलाफ कड़ा प्रहार करके नेतृत्व की निगाह में अपने नंबर बढ़ा लिए हैं। माना जा रहा है कि टीम मोदी, मेनका गांधी के इस जंगी अंदाज से बहुत खुश है। यदि चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनती है, तो निश्चित ही इस इंटरव्यू के बाद उन्हें कोई बड़ा ईनाम मिल सकता है। उल्लेखनीय है कि मेनका के पुत्र वरुण गांधी भी भाजपा के सांसद हैं। पिछले चुनाव के दौर में उन्होंने खांटी संघी अंदाज में मुस्लिम समाज के खिलाफ एक तल्ख भाषण किया था। इसको लेकर वे बड़े विवाद में फंस गए थे। यहां तक कि इस मामले को लेकर उन्हें कुछ दिन जेल में भी रहना पड़ा। लेकिन, राजनीतिक रूप से संघ परिवार में वरुण की खास जगह बन गई। पार्टी के एक तबके ने वरुण को यूपी का मोदी कहना शुरू किया था।
वरुण गांधी को कम राजनीतिक अनुभव के बाद भी भाजपा ने राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी है। अपनी मां की तरह वरुण भी कई बार तीखी बयानबाजी करने में माहिर हैं। लेकिन, कुछ कारणों से इस दौर में भाजपा नेतृत्व वरुण गांधी को ज्यादा महत्व नहीं दे रहा। ऐसे में, वे कुछ मायूस भी बताए जाते हैं। भाजपा के अंदर पहले योजना बनी थी कि नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य वरुण को अमेठी और रायबरेली के पड़ोस वाली संसदीय सीट सुलतानपुर से चुनाव लड़ाया जाए, जिससे की वरुण, राहुल गांधी और अपनी ताई सोनिया गांधी के खिलाफ जमकर मोर्चा लें। सूत्रों का दावा है कि वरुण गांधी सुलतानपुर से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुए। इसके पीछे मुख्य वजह क्या रही, इसका खुलासा तो नहीं हुआ? लेकिन, चर्चा यही रही है कि वरुण, प्रियंका और राहुल गांधी के साथ अब और निजी रार नहीं बढ़ाना चाहते। वैसे भी, बहन प्रियंका, भाई वरुण से काफी स्नेह भी रखती हैं। इन दोनों के बीच रिश्ते भी अच्छे माने जाते हैं। शायद, वरुण की यह ‘नरमी’ मां मेनका को रास नहीं आ रही। ऐसे में, मौका देखकर उन्होंने दो टूक निशाना साध दिया है। ताकि, संघ परिवार का नेतृत्व उनकी राजनीतिक निष्ठा का कायल बन जाए।
कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि मेनका गांधी के इस हमले पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी शायद ही कोई प्रतिक्रिया देना चाहें। पहले भी सोनिया गांधी इस तरह के पारिवारिक विवादों में कभी उलझी नहीं हैं। जिस तरह से ‘कांग्रेस महोत्सव’ के दौर में मेनका के बयान ने रंग में भंग डाल दिया है, इससे दूर-दराज से आए तमाम कांग्रेसी दुखी जरूर दिखे। कुछ ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि जब मेनका गांधी पारिवारिक रिश्तों की गरिमा नहीं बनाए रखना चाहती हैं, तो उनके साथ कांग्रेस भी क्यों रियायत करे? बहरहाल, इस विवाद के साथ ही कांग्रेस के अंदर यह यक्ष सवाल मुंह फैलाकर खड़ा है कि आखिर कांग्रेस नेतृत्व में राहुल की ‘पदोन्नति’ किस रूप में हो? कल यहां कांग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई। इसमें भी यह सवाल उठा था कि राहुल को क्यों न पीएम उम्मीदवार घोषित किया जाए? खबर है कि सोनिया गांधी ने इस प्रस्ताव का यह कह कर विरोध किया कि पार्टी में ऐसी परंपरा तो कभी नहीं रही, तो अब इसकी क्या जरूरत है? नेतृत्व के इस ‘पूर्ण विराम’ के बाद भी पार्टी के अंदर राहुल को लेकर चकचक जारी है। ऐसे कांग्रेसियों की भी कमी नहीं है, जो यह उम्मीद पाले हैं कि शायद राहुल बाबा कुछ महीने के लिए मनमोहन की जगह सीधे पीएम कुर्सी पर आ जाएं। वे कहते हैं कि आखिर, यह प्रयोग कर लेने में पार्टी को हर्ज ही क्या है?
लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता