पत्रकार मित्रों ,
याद है आपको पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना। नीतीश सरकार ने जिसे बड़े धूम धड़ाके से शुरू किया था। सरकार की अन्य घोषणाओं की तरह यह भी एक छलावा ही साबित हुआ। बिना प्रक्रिया पूरी किये सरकार ने आनन- फानन में पत्रकारों से 1796 रूपये भी जनसम्पर्क विभाग के खजाने में जमा करवा लिया। लेकिन अब तक पत्रकारों को बीमा कार्ड नहीं मिला। करीब दो महीने हो गये। मिले भी कैसे? पैसा बीमा कंपनी को दिया ही नहीं गया है। दे भी कैसे। अभी तक नियमावली ही नहीं बनी है। यानी योजना लागू करने की मंशा ही नहीं थी। मंशा थी आँखों में धूल झोंक कर चुनाव में पत्रकारों की सहानुभूति हासिल करने की। वरना बिना नियमावली बनाये कैसे पत्रकारों से पैसे जमा कराये गये?
इस चक्कर में पत्रकार कल्याण कोष भी समाप्त कर दिया गया। जिससे पत्रकारों को बीमारी में या बेरोजगारी में एक मुश्त आर्थिक मदद मिलती थी। ठीक इसी तरह लालू प्रसाद ने भी पत्रकारों के लिये पेंशन योजना शुरू की थी, जो नियमावली नहीं बनने के कारण टांयें-टांयें फिस्स हो गई। यानी पत्रकारों को ठगने में लालू और नीतीश एक हैं। हे नीतीश जी! कम से कम हमारा पइसवा तो लौटवा दीजिये, गाढ़ी कमाई का पैसा है।'
लेखक प्रवीण बागी बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं।