पत्रिका ने अपने ही छह पत्रकारों के हाथ की कलम छीन ली है। उनके हाथ काट दिए हैं। उन्हें जबरन मैनेजर बनाया जा रहा है, जबकि उनकी इस तरह के काम की ना तो मंशा है और ना ही वे इसे करना चाहते हैं। पत्रिका ने बीकानेर के संपादक सुनील जैन और अजमेर के संपादक दौलत सिंह चौहान को कुछ दिन पहले ही संपादक के पद से हटा कर इन शाखाओं का मैनेजर बना दिया था। नौकरी करनी थी, इसलिए मजबूरी में वे प्रबंधन के इस फैसले पर चुप रहे। इसके बाद पत्रिका ने गत २४ मार्च को भीलवाडा के संपादक जयप्रकाश सिंह, कोटा के संपादक संदीप राठौड और पाली के संपादक राकेश गांधी को उनके पदों से हटा दिया और उन्हें एक महीने तक भोपाल में मैनेजर बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। अब इन्हें पत्रिका में कहा गया है कि किसी भी सूरत में संपादक का काम नहीं करना है। पत्रकारिता को मार दो और मैनेजर बन जाओ, सर्कुलेशन बढ़ाओ, विज्ञापन लाओ।
कहा जाता है कि पत्रिका के संस्थापक श्री कर्पूर चंद कुलिश पत्रकारों की बड़ी इज्जत करते थे। वर्तमान संपादक गुलाब कोठारी के लिए भी अभी तक यही कहा जाता था। लेकिन गुलाब जी के होते हुए भी पत्रकारों का खतना कर जबरन उन्हें मैनेजर बनाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि ऐसे 15 संपादकों की सूची तैयार है, जिनकों जबरन मैनेजर बनाया जाना तय है। यह काम लोकसभा चुनाव के बाद होगा। जिन लोगों को संपादकों से मैनेजर बनाया है उन्हें अभी तो राजस्थान में ही पोस्टिंग देने का आश्वासन दिया है। शायद अन्य किसी अखबार में आज तक ऐसा नहीं हुआ होगा। कि पत्रकारों को मैनेजर बनाया जा रहा है। नौकरी जाने के डर से सब चुप हैं।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।