देश के प्रमुख अखबारों की रीडरशिप के गलत व भ्रामक आंकड़े पेश कर विवादों में घिरे इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) 2013 के नतीजों पर रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (आरएससीआई) की प्रबंध समिति और मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (एमआरयूसी) ने 31 मार्च तक रोक लगा दी थी। रोक के दौरान आंकड़ों का पुनः प्रमाणीकरण/ पुनर्वैधीकरण किया जाना है।
फिलवक्त ताज़ा आंकड़ों के अभाव के चलते समाचार पत्रों के सामने समस्या ये है कि वे किस आधार पर विज्ञापनदाताओं से डील करें। कुछ प्रकाशक पुराने रीडरशिप सर्वे के आंकड़ों से ही काम चला रहे हैं, उनके अनुसार ये आंकड़े विश्वसनीय हैं औऱ विज्ञापनदाता इसके आधार पर विज्ञापन दे सकते हैं। द हिन्दू के वाइस प्रेसिडेंट एडवरटाइज़िंग का कहना है कि जब तक 2013 के आंकड़े पुनः प्रमाणीकृत हो कर नहीं आ जाते तब तक आईआरएस 2012 Q4 के आंकड़ों के आधार पर ही विज्ञापनदातेओं से डील की जाएगी। दैनिक नवभारत टाइम्स भी पुराने रीडरशिप आंकड़ों के आधार पर ही विज्ञापनदाताओं से कर रहा है।
आईआरएस 2013 में तमाम गड़बड़ियों के बाद भी प्रकाशकों कों विज्ञापनदाताओं में विश्वास है। उनका कहना है कि रीडरशिप के आंकड़े सिर्फ संदर्भ के लिए होते हैं, विज्ञापनदाता मुख्य रूप से न्यूज़ पेपर ब्रांड की साख को देखते हुए डील करते हैं।
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