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राज ठाकरे धमकाता रहा और संपादक भीगी बिल्ली बनकर बैठे रहें

पिछले दो तीन दिनों में मैंने राजदीप सरदेसाई और टाइम्स नाउ के मठाधीश एंकर को राज ठाकरे का साक्षात्कार लेते हुए टीवी पर देखा। मोटी मलाई खाकर बड़े बड़े स्टुडिओज में ही बैठकर देश का विजन सेट करने की गफलत पाले इन बड़े चेहरों की बेचारगी निश्चित तौर पर भारतीय मीडिया जगत की गिरावट का प्रबल उदाहरण बनकर सामने आई।

पिछले दो तीन दिनों में मैंने राजदीप सरदेसाई और टाइम्स नाउ के मठाधीश एंकर को राज ठाकरे का साक्षात्कार लेते हुए टीवी पर देखा। मोटी मलाई खाकर बड़े बड़े स्टुडिओज में ही बैठकर देश का विजन सेट करने की गफलत पाले इन बड़े चेहरों की बेचारगी निश्चित तौर पर भारतीय मीडिया जगत की गिरावट का प्रबल उदाहरण बनकर सामने आई।

       
पत्रकार के लिए निर्भीकता और आत्म सम्मान सबसे कीमती गहने होते हैं, लेकिन ग्लैमर और पैसे की चकाचौंध में इन मठाधीशो ने अपने यह अलंकार कभी के बेच खाये हैं। वरना किसी नेता की ऐसी ज़ुर्रत कि वो मिडिया को इस क़दर हड़काए की सामने देखने वाला दर्शक ही शर्मिंदा हो जाये। और वो भी बीच चुनाव में जब उसे मिडिया की सबसे अधिक ज़रुरत है। हैरान हूँ के जब इलेक्शन नहीं होते होंगे तब तो राज ठाकरे जैसे नेता इन तथाकथित संपादकों का क्या हश्र करते होंगे।

लेकिन हाय री मोटी तनख्वाहों और निजी स्वार्थो का सदका! इन मठाधीशो के चेहरे पर शिकन तक नहीं। हैरान हूँ के ऐसे कैसे एक नेता जिसका अपने राज्य में कोई ख़ास जनाधार नहीं वो टीवी के ऊपर "भौंक लिए" "हाथ नीचे करो" "तुम्हारे में दिमाग नहीं" "माईक निकाल दूंगा" "पीछे होकर बैठो सीधा बैठो" "उल्टा बैठो" की धमकी दे और ये संपादक भीगी बिल्ली बनकर बैठे रहें। क्या होगा मुझे आशंका है के जिनके कंधो पर मीडिया को ऊँचा उठाने की जिम्मेवारी है उनके कंधे वास्तव में इतने मज़बूत है भी या नहीं।

कहते है के गरीब को दो धक्के फालतू मिलते है और यही मिडिया में हो रहा है केजरीवाल ने तो भ्रष्ट मेडियकर्मिओं को जेल भेजने की बात कही थी तो मीडिया ने इतना बवाल खड़ा कर दिया मनो कोई भूचाल आ गया। परन्तु जब राज ठाकरे उनका शरेआम स्टूडियो में चीरहरण कर रहा है तो इन तथाकथित संपादको की आवाज़ भी नहीं निकली। तो क्या कमज़ोर और मज़लूम पर ज़ोर चलाकर ही कोई खुद को तीसमार खां साबित करेगा।

जाते जाते दो अच्छे उदाहरण देना चाहूंगा इन संपादको से अच्छा तो हमारे करनाल का एक छोटा सा स्ट्रिंगर है जिसे उसके रीजनल चैनल के मालिक का फोन आया की फलाने के घर में एक कार्यक्रम है कवर करो तो स्ट्रिंगर ने कहा कि यह उसका निजी कार्यक्रम है उसे कहो के मुझे इन्वाइट करे। मालिक ने कहा मैं कह रहा हूँ पर स्ट्रिंगर ने कहा बिन बुलाये नहीं जायूँगा, मेरा आत्म सम्मान मुझे इज़ाज़त नहीं देता। और वो नहीं गया। दूसरा उदहारण वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा का जो आपकी अदालत चलाते हैं हेमा मालिनी हो या सलमान खान नितीश हो या लालू, नरेंदर मोदी हो या अन्ना हज़ारे किसी की भी हिम्मत नहीं पड़ती के वो उन्हें रजत बुला दे, रजत जी कहकर सम्बोधन होता है। एक गौरव का एहसास तो होता है के एक पत्रकार के प्रति देश की हस्तियों का कितना सम्मान है।

 

 करनाल से सरबजीत सिंह। #9896290262

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