या तो मैं घर छोड़ दूंगा या फिर अपने नौकर राम भरोसे को निकाल दूंगा। ऐसी-ऐसी बातें करता है कि सिर फोड़ने का मन करता है। आठवां फेल है, मगर बातें इतनी बड़ी-बड़ी करता है कि ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी झल्ला जायें। कल इतना झगड़ा हुआ कि पूछिए मत। मैंने भी कह दिया कि अगर नेतागिरी की बात करनी है तो घर से निकल जा। नालायक बोला अब सबको सच सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए, सब आम आदमी हैं। मैंने गुस्से से कहा कि केजरीवाल का भूत घर से बाहर रखकर आ पलटकर बोला अब यह भूत देश के हर घर में पहुंचने वाला है।
झगड़ा मामूली बात पर शुरू हुआ। मैंने कहा कि देश भर में मोदी जी की लहर चल रही है। दक्षिण का हिस्सा थोड़ा कमजोर था मगर अब येदुरप्पा जी आ गए हैं तो फिर दक्षिण भी ठीक हो जायेगा। देश को इस समय ईमानदारी से शासन चलाने के लिए मोदी जी की बहुत जरूरत है। मैं कुछ और कहता इससे पहले ही पलटकर बोला कि मैं आपको तो पढ़ा-लिखा समझता था। आपसे इस तरह की बातों की मुझे उम्मीद नहीं थी। मैने कहा कि तुम्हारा मतलब क्या है। मैने ऐसी कौन सी गलत बात कह दी। मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोला कि अब देश को येदुरप्पा जैसे नेता ईमानदारी सिखाएंगे। मैने कहा कि बड़े नेता हैं। कर्नाटक में लिंगायत जाति पर खास प्रभाव रखते हैं। उनके भाजपा में आने से पार्टी बेहद मजबूत होगी। बोला यही तो दुर्भाग्य है। यहां नेता की सारी ईमानदारी इसी बात से देखी जाती है कि उसकी जाति के कितने वोट उसके साथ हैं। मैंने कहा कि तुम्हारा मतलब क्या है। बोला अब भी मतलब समझाना पड़ेगा। अपनी लय में बोलता चला गया कि सबको खुशी हुई थी कि चलो दक्षिण में भी भाजपा का खाता खुल गया। मगर यह क्या पता था कि यहां भी भ्रष्टाचार की नई-नई गंगायें बहने वाली हैं। कर्नाटक में पिछले कई दशक के भ्रष्टाचार का रिकार्ड तब के मुख्यमंत्री येदुरप्पा ने तोड़ दिया। बेईमानी और भ्रष्टाचार का शायद ही कोई काम बचा हो जो येदुरप्पा ने ना किया हो। उनके दाहिने हाथ रहे ताकतवर बेल्लारी बन्धुओं ने तो कर्नाटक की खदानों को इतना लूटा कि न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ गया। भाजपा की बड़ी नेता सुषमा स्वराज ने तो जाकर बेल्लारी बन्धुओं के सिर पर हाथ रखकर मानों उन्हें बेईमानी का लाइसेंस ही दे दिया। हालत इतनी बिगड़ गई कि येदुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल तक जाना पड़ा। भाजपा की इतनी बदनामी शायद पहले कभी नहीं हुई होगी।
मैंने कहा कि अगर ऐसा होता तो भला नरेन्द्र मोदी जी उनको अपनी पार्टी में लेते? बोला उनको पार्टी में लेने की मोदी जी की कई सारी मजबूरियां भी हैं। जिस लड़की का पीछा मोदी जी गुजरात में करवा रहे थे। कर्नाटक में जब वह लड़की आयी तो उसका पीछा कराने का ठेका येदुरप्पा ने ले लिया। जब मोदी जी के इशारे पर येदुरप्पा ने बेचारी एक लड़की का पीछा करवाया तो फिर मोदी जी की इतनी तो मजबूरी रही होगी कि वह येदुरप्पा को पार्टी में शामिल करायें। अगर येदुरप्पा मुंह खोल देते तो मोदी जी का प्रधानमंत्री बनने का सपना सिर्फ सपना ही रह जाता। मैने कहा कि तू तो भाजपा को वैसे ही बदनाम कर रहा है। भाजपा ईमानदार लोंगो की पार्टी है। बोला यह तो सही बात है। इस देश के इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ कि किसी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष खुलेआम टीवी चैनल पर एक लाख रुपये की रिश्वत लेता हुआ दिखाई दे और बाद में रिश्वत लेने के आरोप में जेल जाये। उसने कहा कि नैतिकता की और ईमानदारी की बात करना और खुद वैसा होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। इसलिए लोगों को गुमराह मत करो। मैंने कहा कि चलो तुम्हारे हिसाब से भाजपा खराब है तो फिर कांग्रेस तो ठीक पार्टी है। उसी को अपना समर्थन दे देना चाहिए। बोला यह बात ठीक है। कांग्रेस कुछ मायनों में भाजपा से बेहतर है। भाजपा की तरह वह नैतिकता और ईमानदारी की बड़ी-बड़ी बातें नहीं करती। उसको पता है कि लोग उसे सबसे भ्रष्ट पार्टी कहते हैं। अब तो कांग्रेस अपने आप को इस लेवल पर ले आई है कि उसे भ्रष्ट कहने का ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता। कांग्रेस ने इस देश में भ्रष्टाचार के जो नए आयाम स्थापित किए हैं उन्होंने इस देश में भ्रष्टाचार की परिभाषा ही बदल दी है। मैंने कहा कि तुम्हारे हिसाब से कांग्रेस ने कोई अच्छा काम नहीं किया। बोला ऐसा नहीं है। कांग्रेस ने कई अच्छे काम किये। बड़ी सफाई के साथ लोंगो को गुमराह किया। लोंगो को जाति और धर्म में फंसाकर रखा। ताकि लोग सही मुद्दों पर बहस न कर सकें और कांग्रेस जिस तरह चाहे लोगों को मूर्ख बनाती रहे।
मैंने कहा, अगर सब चोर हैं तो फिर रास्ता क्या है। उसने कहा कि आप जैसे लोगों की ड्यूटी भी है और नैतिक धर्म भी कि आप लोगों को जागरूक करें और बतायें कि कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह लोग चोर-चोर मैसेर भाई की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं और देश को इससे छुटकारा पाने की बेहद जरूरत है। मैंने कहा कि लोगों की इतनी औकात नहीं कि वह इन दोनों पार्टियों का कुछ बिगाड़ पायें। बोला कि आपकी तरह ही यह दोनों पार्टियां भी ऐसा ही सोंचती थीं तभी वह आम आदमी के हितों का कोई ध्यान नहीं रखती थीं। मगर दिल्ली चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया कि यह देश अब बदल रहा है। इस देश का आम आदमी समझ गया है कि उसे किस हद तक मूर्ख बनाया जा रहा है। यह दोनों पार्टियां मिलकर किस तरह उसे जाति और धर्म के खेल में फंसा रही हैं। जिससे उसका दायरा सिर्फ वहीं तक सीमित होकर रह जाये। मगर अब इस देश का आम आदमी जागरूक हो गया है और अब वह इन दो कौड़ी के नेताओं की बातों में आने वाला नहीं है। चुनाव सिर पर हैं और सबको उनकी हैसियत पता चल जायेगी।
इसके बाद मैं कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं था अगर आपके पास रामभरोसे की बातों का कोई जवाब हो तो बताइयेगा।
लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और वीकएंड टाइम्स हिंदी वीकली के संपादक हैं।