Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

सुख-दुख...

कोबरापोस्ट पड़ताल: सिक्ख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की संदिग्ध भूमिका का खुलासा

चैप्टर 84: 1984 में हुए सिक्ख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की भूमिका पर कोबरापोस्ट की तहकीकात। पहली बार कैमरे पर कोबरापोस्ट 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की संदिग्ध भूमिका का खुलासा करता है, जिसके चलते देश की राजधानी मे 3000 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

नयी दिल्ली: अपनी एक बड़ी तहकीकात में कोबरापोस्ट ने दिल्ली पुलिस के उन अफसरों को खुफिया कैमरे में क़ैद किया है जो 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली के अलग अलग इलाकों में थाना अधिकारी थे। इनमे से कई ने कैमरे के सामने स्वीकारा कि है कैसे दिल्ली पुलिस एक फोर्स के रूप में नाकामयाब रही और कुछ ने यह भी बोला कि इनके आला अधिकारी तत्कालीन सरकार के साथ मिल कर सिक्खों को सबक सिखाना चाहते थे।

अपनी इस पड़ताल के दौरान कोबरापोस्ट ने शूरवीर सिंह त्यागी (एस॰एच॰ओ॰) कल्याणपुरी, रोहतास सिंह (एस॰एच॰ओ॰) दिल्ली केंट, एस.एन.भास्कर (एस॰एच॰ओ॰) कृष्णानगर, ओ.पी.यादव (एस॰एच॰ओ॰) श्रीनिवासपुरी, जयपाल सिंह (एस॰एच॰ओ॰) से महरौली में मुलाकात हुई। तत्कालीन ऐडिशनल पुलिस कमिश्नर गौतम कौल ने हमारे प्रश्नों के जवाब में कहा कि उन्हे दंगों की कोई जानकारी नहीं थी। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एस सी टंडन ने भी हमारे प्रश्नो का का जवाब देने से पल्ला झाड़ लिया। कोबरापोस्ट रिपोर्टर की मुलाक़ात अमरीक सिंह भुल्लर से भी हुई जो कि 84 के दंगो के वक़्त पटेल नगर थाने के एसएचओ थे। भुल्लर ने जांच आयोग को दिये अपने हलफनामे में कुछ स्थानीय नेताओ के नाम लिए थे जो भीड़ को उकसा रहे थे और उसकी अगुवाई कर रहे थे।

कोबरापोस्ट के विषेश संवाददाता असित दीक्षित ने इन सभी अधिकारियों से मुलाक़ात की जो इस वक़्त सेवा से मुक्त हो चुके हैं और एक सरकारी नौकर को मिलने वाली सभी सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं। असित दीक्षित से हुई बातचीत इन सभी अधिकारियों ने ये खुलासे किए वो हैं:
 
सिक्ख विरोधी उन्माद के सामने पुलिस फोर्स ने घुटने टेक दिए थे और उसने दंगों और लूटपाट आगजनी को बढ़ाने मे हाथ बटाया।
सिक्खों के खिलाफ सांप्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा था। इस चेतावनी को पुलिस के आला अधिकारियों ने अनसुना कर दिया गयी।
पुलिस कंट्रोल रूम में दंगे और लूटपाट के संदेशों की बाढ़ सी आ गयी थी। लेकिन उनमें से सिर्फ 2% संदेश ही रिकार्ड किए गए।
वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अपनी नाकामी को छुपाने के लिए लॉग बुक में बदलाव कर दिया गया।
ट्रांसफर के डर से कुछ अधिकारियों ने अपनी ड्यूटि ढंग से नहीं निभाई।
कुछ पुलिस अधिकारियों ने अपने इलाके में कम से कम नुकसान दिखाने के लिए शवों को दूसरे इलाकों मे फिकवा दिया।
पुलिस ने पीड़ितों की एफआईआर दर्ज़ नहीं करी और जहां करी वहाँ लूटपाट, आगजनी और हत्या के कई मामलों को एक साथ एक एफआईआर मे मिला दिया ।
पुलिस को ये संदेश दिया गया कि जो दंगाई “इन्दिरा गांधी ज़िंदाबाद” के नारे लगा रहे हैं उनके खिलाफ कोई कार्रवाई ना की जाए।
तत्कालीन सरकार ने पुलिस को अपना काम नहीं करने दिया और ऐसा माहौल बनाया की लगे पुलिस खुद ही कुछ नहीं कर रही है।  
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने अपने अधीनस्थों को दंगाइयों पर गोली चलाने की आज्ञा नहीं दी।
फायर ब्रिगेड ने भी उन इलाको में आने से मना कर दिया जहां पुलिस द्वारा दंगों की सूचना दी जा रही थी।

दिल्ली पुलिस मे नीचे से लेकर ऊपर तक कुछ ऐसी निष्क्रियता छा गयी थी कि जो जरूरी कदम उठाए जाने थे वो नहीं उठाए गए. कुसुम लता मित्तल कमेटी ने इस निष्क्रियता के लिए दिल्ली पुलिस के 72 अधिकारियों को दोषी ठहराया था इनमे से 30 अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त करने की सिफ़ारिश भी की गयी थी। कुसुम मित्तल कमेटी का गठन रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफ़ारिश पर किया गया था।

इनमें से कोबरापोस्ट ने जिन अधिकारियों से मुलाक़ात की उनमे से कुछ ने पूर्व पुलिस आयुक्त एस॰सी॰टंडन की बड़ी कठोर शब्दों मे निंदा की है। शूरवीर त्यागी टंडन पर खुल्लमखुल्ला आरोप लगाते हुए कहते हैं की पुलिस आयुक्त तत्कालीन कांग्रेस सरकार के प्रभाव में काम कर रहे थे। उनके शब्दों में, “तो जाने अंजाने में वो गवर्नमेंट के इंफ्लुएंस में रहे हैं की उन्होने मिसमैनेज किया शुरू में और दो दिन बाद असल मे बात जब हाथ से निकाल गयी”। इसी तरह ओ॰पी॰ यादव आरोप लगाते हुए कहते हैं की टंडन ने उस नाजुक घड़ी में दिल्ली पुलिस को कोई नेतृत्व प्रदान नहीं किया। उधर भास्कर कहते हैं कि कुछ थानाधिकारियों को चिन्हित कर उन्हे सज़ा देने के बजाय टंडन को ही उनके पद से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था।

रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने भी टंडन को कानून व्यवस्था के बिगड़ने के लिए दोषी ठहराया था। वहीं कपूर-कुसुम मित्तल कमेटी ने तो अपनी रिपोर्ट के एक पूरे अध्याय में टंडन की इस भूमिका पर प्रकाश डाला था। कोबरापोस्ट रिपोर्टर ने टंडन से मुलाक़ात तो की, लेकिन टंडन ने इस मामले मे कोई जानकारी नहीं दी।

कानून व्यवस्था की हालत ऐसी बना दी गयी थी की दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन तमाम वायरलेस संदेशों पर गौर करना उचित नहीं समझा जिनमें उनसे अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की गयी थी। भास्कर के अनुसार, “मैं तो अपने लेवेल से ये कह सकता हूँ की जब मैंने चार बजे मैसेज भेजा आपसे फोर्स मांग रहा हूं तो आपने मुझे क्यों नहीं दी”।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नक्कारेपन का एक और उदाहरण हुकुम चंद जाटव है जिन्होने प्रैस रिपोर्टरों के कहने पर भी कोई कार्यवाही नहीं की। तत्कालीन एसएचओ भुल्लर के अनुसार “हुकुम चंद जाटव यहाँ के ही थे करोल बाग के ही आई पी एस थे तो उस टाइम थे डी आई जी अब वो कंट्रोल रूम मे बैठे हुए थे और रिपोर्टर वहाँ उनको पूछ रहे हैं और वो कह रहे हैं एव्रिथिंग ने आल राइट उन्होने कहा वहाँ तो बंदे मर गए हैं आपकी इतनी दुनिया लुट गयी है जा के देखो तो सही नहीं नहीं मैं यहाँ कंट्रोल रूम में हूँ एंड ही न्यू एव्री थिंग लेकिन वहाँ से मूव ही नहीं किया”।
 
हालात इसलिए भी बिगड़े कि वरिष्ठ अधिकारियों ने गोली चलाने की इजाजत नहीं दी। ऐसे एक अधिकारी चन्द्र प्रकाश के बारे में तत्कालीन एसएचओ रोहतास सिंह कहते हैं “न उन्होने मुझे ये कह दिया कि मतलब लिख के भी दिया है ये भी कह दिया यार वो तो गोली चलने से तो इन्दिरा गांधी वाला कांड इतना बड़ा बन पड़ा है तुम क्यों नया कांड खड़ा करते हो”।
 
अगर रोहतास सिंह की बात मे सचाई है तो पुलिस कंट्रोल रूम को भेजे गए संदेशों में महज़ 2 फीसदी संदेश ही दर्ज़ किए गए थे, “अगर वो रिकार्ड हो गयी होती तो मैं काफी कुछ साबित कर सकता था नॉट ईवन 2 पेरसेंट वेयर रेकोर्डेड कंट्रोल रूम में जो लॉग बुक थी”। रोहतास सिंह आगे कहते हैं की चन्द्र प्रकाश ने ऐसे संदेशों का मज़मू ही बदल डाला जो उसको ले बैठते  “तो वायरलेस लॉग बुक के की बता रहा हूँ …. उसमे कुछ ऐसे मैसेज थे जो उसको ले बैठते…. जहां जहां उसको सूट नहीं कर रही थी वो सब चेंज कर दिया”।
 
एक बहुत बड़ा कारण यह भी था कि समूची दिल्ली पुलिस सांप्रदायिक सोच से पूर्वाग्रहीत हो गयी थी रोहतास सिंह इस सचाई को स्वीकार करते हुए कहते हैं “इसमे मुझे कोई संकोच नहीं है कहने मे हमारे पुलिस मैन भी यहीं लोकल मैन थे वो भी कम्युनल माईंडेड हो गए थे”।
 
मारकाट, आगजनी और लूटपाट के कई दौर चलने के बाद जब तीसरे दिन सेना बुला ली गयी तब जाकर दंगों की आग बुझना शुरू हुई। लेकिन इसके साथ ही दिल्ली पुलिस ने दंगों में हुई तमाम आपराधिक करतूतों पर पर्दा डालने का प्रयास आरंभ कर दिया। सबसे पहले दंगा पीड़ितों की शिकायत दर्ज़ नहीं की गयी और जब शिकायत दर्ज़ भी हुई तो कई मामलों को एक ही एफआईआर मे मिला दिया गया।
बक़ौल भुल्लर, “लोगों ने केस रजिस्टर नहीं किए दबाने की कोशिश की तेरे इलाके में हुआ की इतने लंबे चौड़े रायट हुए उनको कोशिश की कम से कम करने की अपनी नौकरी बचाने के लिए और उठा के बॉडी वहाँ फेक दी सुल्तानपुरी”।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कोबरापोस्ट के इस खुलासे से यह बात स्पष्ट हो जाती है की 1984 के दंगों के दौरान पुलिस का नक्कारापन अकस्मात नहीं था बल्कि यह एक सोची समझी साजिश का नतीजा था। दूसरे शब्दों मे इसे हम दंगों मे पुलिस की मिलीभगत कह सकते हैं जिसके फलस्वरूप यह राज्य प्रायोजित नरसंहार हुआ था।

कोबरापोस्ट
अधिक जानकारी के लिए लॉग इन करें 
http://www.cobrapost.com/
ट्विटर पर हमे फॉलों करें #cobrapost
फेसबुक पर हमे फॉलों करें www.facebook.com

 

प्रेस विज्ञप्ति
 

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement