बद्रीनाथ मंदिर में सन् 1776 में रावल परम्परा की शुरुआत हुई। तब से लेकर अब तक मंदिर में 19 रावलों का इस पद तिलपात्र किया गया। पिछले 238 सालों के इतिहास में यह पहला अवसर है जब भगवान नारायण के मुख्य अर्चक गिरफ्तार हुआ हो और गिरफ्तारी भी किसी ऐसे वैसे मामले में नहीं बल्कि लड़की से छेड़खानी के आरोप में। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र के मुख्य अर्चक को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने का यह अपनी तरह का पहला मामला है।
वैसे अभी तक रावल की ओर से उनका पक्ष सामने नहीं आया है, फिर भी अध्यात्म के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति से ऐसे आचारण की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती है। मध्य हिमालय स्थित बद्रीनाथ मंदिर देश के चार धामों में से एक है। इस मंदिर का पुनरुद्धार भगवत्पाद आद्यगुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में किया था। सनातन धर्म के प्रचार के दौरान यहां आने पर उन्होंने नारद कुंड में पड़ी भगवान नारायण की मूर्ति को अपने तपोवल की ऊर्जा से निकालकर वर्तमान मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया था।
मंदिर में पूजा व्यवस्था सचुारु रहे इसके लिए उन्होंने अपने शिष्य को यहां का मुख्य पुजारी नियुक्ति किया। इसके बाद से ही ज्योतिष्पीठ के आचार्य द्वारा बद्रीनाथ मंदिर की पूजा अर्चना की जाती थी। कालान्तर में प्राकृतिक आपदा या किन्ही कारणों के चलते ज्योतिष्पीठ लगभग 165 सालों तक आचार्य विहीन रहा। मंदिर में पूजा अर्चना विधिवत् जारी रहे, इसके लिए टिहरी के राजा प्रदीप शाह ने सवंत् 1833 में शंकराचार्य के रसोइया गोपाल नम्बूदरी को पूजा के लिए अधिकृत कर दिया। तब से ही बद्रीनाथ मंदिर में रावल परम्परा चली आ रही है। पिछले 238 सालों से इसी स्थापित परम्परा के तहत रावल यहां पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
बद्रीनाथ में रावल की नियुक्ति के बाद कुछ समय तक यहां की व्यवस्था सही ढंग से चलती रही, लेकिन बाद के वर्षों में रावल मनमानी करने लगे और उनके साथ विवाद भी जुडने लगे। इस पर अंकुश लगाने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने स्थनीय लोगों की पहल पर बद्रीनाथ मंदिर के बेहतर प्रबंधन के लिए सन् 1939 में बद्रीनाथ मंदिर एक्ट बनाया। इसमें बाद में केदारनाथ मंदिर को भी जोड़ दिया गया और यह बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट बन गया। तबसे इसी एक्ट के अनुसार बदरीनाथ केदारनाथ मंदिरों के अलावा यहां के 45 अन्य पौराणिक महत्व के मदिरों का प्रबंधन किया जाता है। एक्ट के मुताबिक बदरीनाथ मंदिर के रावल मंदिर समिति के वेतनभोगी कर्मचारी हैं। इसके अलावा बदरीनाथ मंदिर के रावल को मंदिर के गर्भगृह में चढावे का कुल सात फीसदी भी मिलता है। इस दोनों को मिलाकर रावल को प्रत्येक यात्रा काल में लाखों रुपयों की आय होती है। पूर्व में रावल मंदिर के कपाट बंद होने के बाद शीतकालीन पूजा स्थल जोशीमठ में ही प्रवास करते थे, लेकिन बाद के वर्षों में रावल तीर्थाटन पर जाने लगे। अब वो मंदिर के कपाट खुलने से एक दो दिन पहले आते हैं। शीतकाल में रावल कहां रहते हैं, क्या करते हैं, इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं होती है। जबकि नियमानुसार रावल को शीतकाल में शीतकालीन पूजा स्थल में रहना चाहिए।
जहां तक बदरीनाथ मंदिर के रावल व विवाद का प्रश्र है तो रावल समय समय पर अपने कृत्यों से मंदिर समिति, संतों व स्थानीय लोगों के निशाने पर रहे हैं। बदरीनाथ के रावल का सबसे पहला विवाद सन् १९५८ में सामने आया जब तत्कालीन रावल बासुदेव नम्बूदरी पर मंदिर समिति में ही कार्यरत एक कर्मचारी की पुत्री के साथ छेडछाड का अरोप लगा। उन्हें तब अपने पद से हटना पडा था। हालांकि बाद में सन् १९६२ में उन्हें पुन: रावल बनाया गया था। उसके बाद से रावलों को कोई बडा विवाद सामने नहीं आया। सन् २००० में रावल विष्णु नम्बूदरी व बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष विनोद नौटियाल के बीच अवश्य विवाद हुआ था, जिसके चलते विष्णु नम्बूदरी ने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद ऐसा कोई प्रकरण नहीं हुआ। केशव नम्बूदरी की इस पर नियुक्ति वर्ष २००९ में तब की गई थी, जब पूर्व रावल बदरी प्रसाद नम्बूदरी ने स्वास्थ्य संबधी कारणों से पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन वर्तमान रावल केशव नम्बूदरी के महिला से छेड+ छाड+ करने व दिल्ली पुलिस द्वारा उन्हें गिरलतार करने के बाद एक बार फिर बदरीनाथ मंदिर के रावल की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। दिल्ली के होटल में हुई इस घटना के बाद बदरीनाथ के मुख्य अर्चक की परेशानी बढ सकती है।
मिली जानकारी के अनुसार बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति ने रावल केशव नम्बूदरी को निलंवित कर,जांच के आदेश दे दिये हैं। लेकिन उनका अब पद पर बने रहना मुश्किल है। खासतौर से इस घटना के बाद शंकराचार्य व धर्माचार्य इस मुद्दे को उठायेंगे। केदारनाथ आपदा के समय ज्योतिष व द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपापंद सरस्वती ने तो उन्हें पद से हटाकर पूजा व्यवस्था पीठ के आचार्य को दिये जाने की मांग कर दी थी। किसी तरह बीच का रास्ता निकाला गया। अब इस ताजे विवाद के बाद एक बार फिर धर्माचार्यों की ओर से इस तरह की मांग उठने की पूरी संभावनाएं हैं। इस सबके बीच दुखद यह है कि आपदा की मार से किसी तरह उवर रहे स्थानीय लागों के लिए यह ख+बर परेशानी बढाने वाली ही है। क्योंकि पिछला यात्राकाल आपदा की भेंट चढ गया और इस बार कपाट खुलने की तिथि के दिन ही मंदिर के रावल का गिरलतार होना, फिर से किसी अनहोनी की ओर ईशारा करता है। इसे महज संयोग माना जाय या विधि का विधान, जिस समय टिहरी राजदरबार में बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने का मुहूर्त तय किया जा रहा था, ठीक उसी समय मंदिर के रावल से पुलिस पूछताछ कर रही थी।
देहरादून से बृजेश सती की रिपोर्ट. संपर्क: ९४१२०३२४३७