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इलाहाबाद

अखिलेश बाबू, महिला पत्रकार गैंगरेप कांड में आपकी पुलिस और नेता भी कम दोषी नहीं

यूपी में जंगलराज होने की एक बार फिर पुष्टि हो गई। उत्तराखंड की महिला पत्रकार को लबेरोड स्कार्पियो से अगवा कर, उसके साथ गैंगरेप किया गया। उसके बाद पुलिस ने लीपपोती कर केस को हल्का करने की उससे भी बड़ी शर्मनाक हरकत की। इन सबसे यह साफ हो गया है कि इस जंगलराज में महिलाएं किस कदर असुरक्षित हैं और यूपी की पुलिस अपनी कार्रवाई कितनी जिम्मेदारी से करती है। अगर मामला किसी सत्ताधारी वीआईपी नेता आजम खां के भैंसों के लापता हो जाने सरीखे हो तो नौकरी बचाने के लिए पुलिस अफसरों का कार्य कौशल देखने लायक हो जाता है। पहले तो यूपी के थानों में रिपोर्ट दर्ज कराना ही टेढ़़ी खीर है। अगर किसी तरह रिपोर्ट हो भी जाए तो अपराधियों का साथ देना और उल्टे भुक्तभोगी को परेशान करना पुलिस की आदतों में शुमार हो गया है।

यूपी में जंगलराज होने की एक बार फिर पुष्टि हो गई। उत्तराखंड की महिला पत्रकार को लबेरोड स्कार्पियो से अगवा कर, उसके साथ गैंगरेप किया गया। उसके बाद पुलिस ने लीपपोती कर केस को हल्का करने की उससे भी बड़ी शर्मनाक हरकत की। इन सबसे यह साफ हो गया है कि इस जंगलराज में महिलाएं किस कदर असुरक्षित हैं और यूपी की पुलिस अपनी कार्रवाई कितनी जिम्मेदारी से करती है। अगर मामला किसी सत्ताधारी वीआईपी नेता आजम खां के भैंसों के लापता हो जाने सरीखे हो तो नौकरी बचाने के लिए पुलिस अफसरों का कार्य कौशल देखने लायक हो जाता है। पहले तो यूपी के थानों में रिपोर्ट दर्ज कराना ही टेढ़़ी खीर है। अगर किसी तरह रिपोर्ट हो भी जाए तो अपराधियों का साथ देना और उल्टे भुक्तभोगी को परेशान करना पुलिस की आदतों में शुमार हो गया है।

 
चूंकि
शक्तिपीठ धाम विन्ध्याचल में अपहरण और गैंगरेप की शिकार ‘बेचारी महिला’ है और वह भी पत्रकार तो पुलिस के लिए यह ज्यादा गंभीर मसला नहीं बनता। उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर की महिला पत्रकार 24 मार्च को अपनी छोटी बहन के साथ विन्ध्याचलधाम आई थी। यहां वो एक होटल में ठहरी थी। महिला पत्रकार यहां धार्मिक स्थलों की स्टोरी भी तैयार कर रही थी। 27 मार्च को शाम वह अकेले ही अष्टभुजा मंदिर से रात करीब आठ बजे वापस लौट रही थी। तभी सड़क से अगवा करने के बाद उसके साथ गैंगरेप किया गया। शिकायत के बाद भी पुलिस ने काफी हीलाहवाली की। एसपी तक मामला पहुंचने के बाद थाने में मुकदमा दर्ज हो सका।

इतना ही नहीं, केस को हल्का करने के लिए पुलिस ने उसमें भी खेल कर दिया। मुकदमा में गैंगरेप की धारा 376(घ) के साथ आईपीसी की धारा 342 लगाई गई है। विधि विशेषज्ञों के मुताबिक, धारा 342 का मतलब है अपराध की नीयत से किसी को बंधक बनाना। इसमें एक साल की सजा या एक हजार रूपए आर्थिकदंड का प्रावधान है। जबकि अपहरण में धारा 363 या 365 में सात साल जेल की सजा का प्रावधान है। गौरतलब है कि पीड़िता को पहले स्कार्पियो से अगवा कर सूनसान जगह ले जाने के बाद फिर गैंगरेप किया गया। यह मामला साफ-साफ अपहरण का बनता है, बंधक बनाने का नहीं।

लेकिन वाह रे यूपी और वाह रे यूपी की शासन व्यवस्था। यूपी में सत्ता की इसी ‘कार्य कुशलता’ के बल पर सपा के युवराज व टीपू सुल्तान कहे जाने वाले अखिलेश सिंह यादव और उनके पिताश्री सो काल्ड धरतीपुत्र, मुलायम सिंह यादव दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का ‘मुंगेरी-सपना’ देख रहे हैं। विन्ध्याचल में परदेशी महिला पत्रकार को अगवा करने और गैंगरेप का शिकार बनाने की शर्मनाक घटना को अंजाम देने वाले अपराधी जितने दोषी हैं, उससे ज्यादा दोषी इस मामले में गंदा खेल करने वाले लोग हैं। सूत्रों की मानें तो इस घटना को दबाने, छिपाने और हल्का करने में यहां के कई ‘जनसेवक’ अचानक सक्रिय हो गए हैं। वे अपराधियों को बचाने में जुट गए हैं।

हे यूपी के सत्ताधीशों! अगर प्रभावी कार्रवाई ही करनी है तो सबसे पहले उस अष्टभुजा पुलिस चैकी के सभी पुलिस कर्मियों को बर्खास्त करिए जिस पुलिस चैकी की नाक के नीचे सरेशाम महिला को स्कार्पियो सवार बदमाशों ने उठाया। नक्सल प्रभावित जिला और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अलर्ट की घोषणा के बावजूद इस तरह पुलिस की ढिलाई पर अफसरों को भी दंडित कर जनता की अदालत में खुद को निर्दोष साबित करिए। … और यह भी कि अपराधियों की खुलेआम पैरवी करने वाले अपने विधायक-मंत्रियों पर भी नकेल कसिए।

 

लेखक शिवाशंकर पांडेय इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार हैं।लेखक दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान में रह चुके हैं। अब स्वतंत्र लेखन। संपर्क मोबाइल-09565694757

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