जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता।
एक ख़ुशमिजाज सी दिखने वाली अरबपति औरत के दिल में इतना दर्द होगा ये किसी ने सोचा न था। वो जब भी सार्वजनिक जीवन में दिखतीं तो चेहरे पर एक नूरानी हँसी खिली रहती, जिसे देखकर ये भ्रम होता कि शायद खुशी ने यहाँ अपनी स्थायी जगह बना ली है। और दुनिया को वो खुश दिखे भी क्यों नहीं, बेशुमार दौलत, हुस्न का सैलाब, सफल बिज़नेसवुमेन, वाकपटुता के साथ उन्हें राजनीति में सफल एक प्रेमीनुमा पति भी मिला था, जिससे शादी करने से पहले ही वो विवादों में घिर गई थीं। पर इन तमाम सफलताओं के पीछे एक असफलता छुपी थी जिसने सुनंदा पुष्कर को इतना कमजोर कर दिया कि जिन्दगी से वो बेजार हो उठी और मौत की आगोश में सिमट गई।
सुनंदा पुष्कर सबसे पहले तब चर्चा में आयी थीं जब 2010 में इंडियन प्रीमियर लीग की कोच्चि टीम की ख़रीद से जुड़े एक विवाद में उनका नाम आया था। बाद में जब शशि थरूर से उनके रिश्ते मीडिया की सुर्खियाँ बने तो वो विरोधी राजनेताओं की आलोचनाओं की शिकार होने लगी। लेकिन तमाम आरोपों को झेलते हुये सुनंदा ने शशि थरूर के साथ अपने रिश्ते को शादी तक पहुँचाया और इस शादी को सफल बनाने के लिये पुरजोर प्रयास भी किया। लेकिन उनका प्रयास शशि थरूर की फितरत नहीं बदल सका और वो धीरे-धीरे परेशान रहने लगी। जब पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार और शशि थरूर के बारे में सुनंदा ने सवाल करने शुरू किये तो उन्हें शायद कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं मिला। अपने पारिवारिक जीवन में हो रहे इतने उथल-पुथल के बावजूद सुनंदा ने हार नहीं मानी और लोगों के सामने अपनी मुस्कुराहट ही बिखेरती रहीं। वो अपने रिश्ते को लेकर इतनी संजीदा थी कि कुछ दिन पहले ही शशि थरूर और सुनंदा दोनों ने मिलकर बयान जारी किया था कि हमारा वैवाहिक जीवन सुखी है और हम चाहते हैं कि यह ऐसा ही चलता रहे। यह एक ऐसा झूठ था जिसके बारे में दोनों को पता था लेकिन सार्वजनिक जीवन में छिछालेदार से बचने के लिये दोनों ने आराम से झूठ बोला। सुनंदा जानती थी कि कहीं न कहीं उनकी अहमियत कम हो रही है लेकिन सच बोलने और सच मानने का हौसला उनमें नहीं था।
सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है,
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है।
सुनंदा पुष्कर कश्मीर के सोपोर की रहनेवाली थीं। उन्हें ईश्वर ने कुदरती खूबसूरती और अक्लमंदी बख्शी थी, लेकिन तमाम झंझावातों को झेलने वाली सुनंदा अंदर ही अंदर खोखली हो रही थी। अगस्त 2010 में शशि थरूर के साथ शादी के वक्त उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि मात्र तीन-साढ़े तीन साल की शादीशुदा जिन्दगी उन्हें मौत के सफर तक ले जायेगी। सुनंदा की मौत के बाद जिस तरह से अफवाहें फैली और कई बातें सामने आईं उसमें दो बातें गौर करने लायक थी एक तो वो अपना वसीयत करवाना चाहती थीं और दूसरा वो तलाक के बारे में भी सोच रही थीं। ये दोनों ही बाते उनकी मौत को आत्महत्या के घेरे से बाहर करती हैं।
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी,
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है।
अक्सर ऐसी मौत की फाइलें आत्महत्या का नाम पाकर अपनी मन्जिल पा लेती हैं। लेकिन हाई प्रोफाइल सुनंदा पुष्कर की मौत संदेह के घेरे में है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ड्रग का ओवरडोज बताया जा रहा है लेकिन यह सोचने वाली बात है कि आईपीएल विवाद को हँसते-हँसते झेलने वाली संघर्षशील सुनंदा अपनी मौत से पहले थरूर और मेहर के रिश्ते पर खुलकर बोली थीं। उन्होंने ऐसे कोई संकेत नहीं दिये थे जिससे ये लगे कि वो हार चुकी हैं। फिर अचानक से ड्रग का ओवरडोज संदेह पैदा करता है। मौत चाहे प्राकृतिक हो या अप्राकृतिक, आत्महत्या हो या हत्या उसमें एक सत्य यह है कि सिर्फ सुबूत बोलते हैं मृतक नहीं और सुबूत इकट्ठा करने वाली व्यवस्थायें कहीं किसी के प्रभाव में हो तो न्याय खामोश हो जाता है।
Sony Kishor Singh, Asociate Editor, Sanskar Patrika. Mob- 8108110152 Blog-www.womentrust.blogspot.com