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पीएम-इन-वेटिंग: मोदी और राहुल का गेम बिगाड़ रही टीम केजरीवाल

लोकसभा की चुनावी चुनौती के लिए राजनीतिक खेल-कांटे रफ्तार पकड़ने लगे हैं। भाजपा के ‘पीएम इन वेटिंग’ नरेंद्र मोदी कई महीनों से देशव्यापी दौरे कर रहे हैं। उन्होंने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए राजनीतिक लामबंदी काफी तेज की है। देश के विभिन्न हिस्सों में उनकी रैलियों में भारी भीड़ जुट रही है। राजनीतिक ‘दबंग’ बनने के लिए मोदी ठेठ राजनीतिक शैली में कांग्रेस नेतृत्व पर जमकर निशाने साध रहे हैं। वे राजनीतिक हवा बनाने के लिए जुबानी जंग भी तेज कर चुके हैं। राजनीतिक प्रहार करने का वे कोई मौका नहीं चूकना चाहते। ऐसे में, वे कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक की खबर लेते नजर आते हैं। देश की जनता को कुछ इस तरह के सपने दिखाने में जुट गए हैं, मानो वे सत्ता में आ गए, तो राजनीतिक व्यवस्था में ‘क्रांतिकारी’ बदलाव आ जाएंगे।

लोकसभा की चुनावी चुनौती के लिए राजनीतिक खेल-कांटे रफ्तार पकड़ने लगे हैं। भाजपा के ‘पीएम इन वेटिंग’ नरेंद्र मोदी कई महीनों से देशव्यापी दौरे कर रहे हैं। उन्होंने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए राजनीतिक लामबंदी काफी तेज की है। देश के विभिन्न हिस्सों में उनकी रैलियों में भारी भीड़ जुट रही है। राजनीतिक ‘दबंग’ बनने के लिए मोदी ठेठ राजनीतिक शैली में कांग्रेस नेतृत्व पर जमकर निशाने साध रहे हैं। वे राजनीतिक हवा बनाने के लिए जुबानी जंग भी तेज कर चुके हैं। राजनीतिक प्रहार करने का वे कोई मौका नहीं चूकना चाहते। ऐसे में, वे कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक की खबर लेते नजर आते हैं। देश की जनता को कुछ इस तरह के सपने दिखाने में जुट गए हैं, मानो वे सत्ता में आ गए, तो राजनीतिक व्यवस्था में ‘क्रांतिकारी’ बदलाव आ जाएंगे।

फिलहाल, उनकी रणनीति यही प्रचारित करने की है कि पिछले 9-10 सालों में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने क्या-क्या बंटाधार किया है? वे अपने सियासी अलाप में सरकार की रीति-नीति को कोसते नजर आते हैं। कांग्रेस नेतृत्व की नीयत पर भी वे हर रोज शक की सुई जरूर घुमाते हैं। संघ परिवार के पूरे तंत्र ने मोदी को ‘7 रेसकोर्स रोड’ तक पहुंचाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। शुरुआती दौर से मोदी के अभियान को बढ़त मिलती देखकर कांग्रेस ने भी राहुल गांधी को मुकाबले में उतारने की रणनीति बना ली है। कार्यकर्ताओं के चौतरफा दवाब के बाद भी कांग्रेस ने राहुल गांधी को ‘पीएम इन वेटिंग’घोषित करने से मना कर दिया है। इसके पीछे क्या रणनीति हो सकती है? पुरानी परंपराओं की दुहाई दे कर फिलहाल, कांग्रेस के दिग्गज इस पर सस्पेंस का पर्दा ही डाले रखना चाहते हैं।

भाजपा के रणनीतिकारों ने ‘आप’ के राजनीतिक नुस्खों को अपने यहां भी अजमाना शुरू कर दिया है। अन्ना आंदोलन के दौर से ही सिर पर गांधी टोपी रखने का रिवाज शुरू हुआ। अन्ना आंदोलन के सिपहसालारों ने जब आम आदमी पार्टी का गठन किया, तो उन्होंने टोपी को अपना एक ‘राजनीतिक ब्रांड’ बना डाला। टोपी वाली इस नवोदित पार्टी ने जिस तरह से कम समय में व्यापक शोहरत पाई है, उससे भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों में भी बेचैनी बढ़ी है। कई बड़े दल कोशिश कर रहे हैं कि ‘आप’ के राजनीतिक फार्मूलों की नकल कर ली जाए, ऐसा वे करने भी लगे हैं। इसी के चलते अब भाजपा के तमाम कार्यक्रमों में भगवा टोपियों की झलक मिलने लगी है। सपा नेतृत्व को भी लगा है कि यदि टोपियों से ही कोई नया राजनीतिक दम मिलता हो, तो वे भी क्यों न इस फार्मूले को अजमाकर देख लें? ऐसे में, सपा के कार्यकर्ता भी रैलियों में सिर पर लाल टोपी रखे दिखाई पड़ रहे हैं।  

उल्लेखनीय है कि सपा के तमाम कार्यकर्ता भी उम्मीद लगाए हैं कि मौजूदा राजनीतिक स्थितियों में पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव तीसरे मोर्चे के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री बन सकते हैं। क्योंकि, सेक्यूलर क्षेत्रीय दलों में सपा की बड़ी हैसियत है। वैसे भी, उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहां पर लोकसभा की 80 सीटें हैं। मुलायम सिंह अपनी महत्वाकांक्षा छिपा भी नहीं रहे। वे अपने लोगों से कह रहे हैं कि यदि पार्टी जमकर चुनावी खेती कर ले, तो 40 से लेकर 50 सीटें तक पार्टी की झोली में आ सकती हैं। इतनी सफलता मिली, तो सबसे बड़ी कुर्सी की तरफ पहुंचने की संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी। पिछले कई महीनों से मुलायम कह भी रहे हैं कि लोकसभा के चुनाव में जनता कांग्रेस के साथ भाजपा को भी दरकिनार करेगी। ऐसे में, तीसरे विकल्प के रूप में सत्ता सेक्यूलर दलों के गठबंधन को ही मिलेगी। हालांकि, वे यह जमीनी सच्चाई स्वीकार कर लेते हैं कि चुनाव के पहले तीसरे मोर्चे के गठन की कोई संभावनाएं नहीं हैं।

दिल्ली में चुनावी सफलता मिलने के बाद टीम केजरीवाल के हौसले काफी बढ़ गए हैं। इस नवोदित पार्टी ने लक्ष्य बनाया है कि 26 जनवरी तक उसके सदस्यों का आंकड़ा एक करोड़ तक पहुंचा दिया जाएगा। इसके लिए पार्टी नेतृत्व देशव्यापी सदस्यता अभियान चला रहा है। राजनीतिक शुचिता के मुद्दे पर खास चर्चा में आई इस पार्टी के प्रति लोगों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है। कुछ दिन के अंदर ही इसके सदस्यों की संख्या 25 लाख के ऊपर पहुंच गई है। पार्टी के रणनीतिकार 300 से लेकर 450 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं। मीडिया सर्वेक्षणों से लगातार ये संकेत मिल रहे हैं कि यह नई पार्टी भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले कारगर ढंग से अपनी चुनावी उपस्थिति दर्ज कराने की स्थिति में आ गई है। खास तौर पर देश के बड़े महानगरों में यह पार्टी एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने लगी है। बड़े शहरों में कई जगह यह पार्टी कांग्रेस को मात देते दिखाई पड़ रही है।

एक सर्वेक्षण में तो यह दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री पद के लिए आठ बड़े शहरों में राहुल गांधी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। केजरीवाल और राहुल के बीच बड़ा फासला भी बताया गया है। यह जरूर है कि नरेंद्र मोदी इस सर्वेक्षण में भी काफी आगे बताए जा रहे हैं। यूं तो इन सर्वेक्षणों से भाजपा के रणनीतिकारों को राहत महसूस करनी चाहिए। क्योंकि, उनका नेता इन मीडिया आकलनों में अपनी बढ़त बनाए हुए हैं। लेकिन, भाजपा के रणनीतिकार ‘आप’ की बढ़ती लोकप्रियता से काफी बेचैन हैं। उन्हें आशंका हो गई है कि कहीं निर्णायक रूप से ‘आप’ का बढ़ता दायरा मोदी के लिए बड़े जोखिम का सबब न बन जाए।

शायद, इसी खतरे को समझते हुए अब भाजपा नेतृत्व ने ‘आप’ के खिलाफ आक्रामक रणनीति अपना ली है। यही प्रचारित किया जा रहा है कि टीम केजरीवाल कांग्रेस की ‘बी’ टीम के रूप में काम कर रही है। इस टीम के जरिए कांग्रेस के लोग मोदी की राजनीतिक मंजिल में ब्रेक लगाना चाह रहे हैं। ऐसे में, जरूरी है कि जनता के बीच यह बात जोर-शोर से फैलाई जाए कि कांग्रेस ही ‘आप’ को एक राजनीतिक मुखौटे के रूप में आगे बढ़ा रही है। लेकिन, मुश्किल यह है कि विश्वसनीय ढंग से भाजपा के लोग यह साबित नहीं कर पा रहे हैं कि कौन किसकी ‘बी’ टीम है? दरअसल, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी संसदीय क्षेत्र से ‘आप’ के नेता कुमार विश्वास ने चुनावी मुकाबले का खूंटा गाड़ दिया है। अब जिला इकाइयों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कांग्रेस के नेता टीम केजरीवाल को तरह-तरह से कोस रहे हैं। ऐसे में, भाजपा की यह बात लोगों के गले नहीं उतर रही कि ‘आप’ का नेतृत्व कांग्रेस का ही नया मुखौटा है।

राजनीतिक हल्कों में कयास यहां तक लगने लगे हैं कि कहीं लोकसभा चुनाव में ‘आप’ कोई बड़ा सियासी करिश्मा करके न दिखा दे। विभिन्न क्षेत्रों के तमाम जाने-माने लोग ‘आप’ में शामिल हो रहे हैं। इनमें से ऐसे तमाम चेहरे हैं, जो अपने खांटीपन के लिए चर्चा में रहे हैं। ऐसे में, लोगों की यह उम्मीद बढ़ने लगी है कि शायद ‘आप’ के जरिए राजनीतिक व्यवस्था में देर-सवेर कोई बड़ा बदलाव आ जाए। केजरीवाल ने भी उत्साहित होकर कहना शुरू कर दिया है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का सीधा मुकाबला भाजपा से होने जा रहा है। क्योंकि, कांग्रेस तो काफी पिछड़ती नजर आ रही है। यह अलग बात है कि केजरीवाल की ऐसी टिप्पणियों को कांग्रेस के दिग्गी राजा जैसे नेता बड़बोलापन ही करार कर रहे हैं।

 

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लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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