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उत्तराखंड सरकार विज्ञापनों पर लुटा रही पैसा (देखें आंकड़े)

चुनावी मौसम में उत्तराखंड में नेता फिर से दावों और वायदों की पोटली लेकर जनता की दहलीज़ पर दस्तक दे रहे हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे नेता हैं जो कभी कभार ही अपने इलाके की जनता के दुख दर्द में शरीक हुए होंगे। इसे उत्तराखंड और यहां के लोगों की बदकिस्मती ही कहेंगे कि राज्य बनने के 13 साल में यहां आठ मुख्यमंत्री बदल गए हैं। 1 फरवरी 2014 को हरीश रावत ने सीएम पद के शपथ ली। बहुगुणा के कुर्सी छोड़ने के बाद सूबे के लोगों को उम्मीद थी कि नए सीएम कुछ अलग करेंगे। लेकिन हरीश रावत से भी लोगों को मायूसी ही हाथ लगी है। सरकार के पास कहने को बहाना है कि आचार संहिता लगी है। असल मायने में उत्तराखंड में कांग्रेस ने सरकार तो जैसे तैसे बना ली लेकिन पार्टी के भीतर की आपसी लड़ाई और सरकार के समर्थन दे रहे दूसरे विधायकों ने सीएम को भी परेशानी में डाले रखा।

चुनावी मौसम में उत्तराखंड में नेता फिर से दावों और वायदों की पोटली लेकर जनता की दहलीज़ पर दस्तक दे रहे हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे नेता हैं जो कभी कभार ही अपने इलाके की जनता के दुख दर्द में शरीक हुए होंगे। इसे उत्तराखंड और यहां के लोगों की बदकिस्मती ही कहेंगे कि राज्य बनने के 13 साल में यहां आठ मुख्यमंत्री बदल गए हैं। 1 फरवरी 2014 को हरीश रावत ने सीएम पद के शपथ ली। बहुगुणा के कुर्सी छोड़ने के बाद सूबे के लोगों को उम्मीद थी कि नए सीएम कुछ अलग करेंगे। लेकिन हरीश रावत से भी लोगों को मायूसी ही हाथ लगी है। सरकार के पास कहने को बहाना है कि आचार संहिता लगी है। असल मायने में उत्तराखंड में कांग्रेस ने सरकार तो जैसे तैसे बना ली लेकिन पार्टी के भीतर की आपसी लड़ाई और सरकार के समर्थन दे रहे दूसरे विधायकों ने सीएम को भी परेशानी में डाले रखा।

हुआ यूं कि बहुगुणा ने प्रदेश में विकास कामों पर ध्यान देने की बजाए सरकार के काम का झूठा प्रचार कराया। बहुगुणा जी ने अपनी साफ सुथरी छवि बनाए रखने के लिए न्यूज़ चैनलों और अखबरों को विज्ञापन के रूप में खूब पैसे बांटा। न्यूज चैनलों ने भी बहुगुणी की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े थे। आप जानकार हैरान होंगे कि बहुगुणा जी के कार्यकाल में सरकारी खज़ाने को किस तरह के खाली किया गया। सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के आधार पर नीचे दिए गए निम्न आंकड़े सामने आए हैं। उत्तराखंड के सूचना विभाग से जून 2013 से जनवरी 2014 तक सरकारी विज्ञापन के आंकड़े मांगे गए थे।  

विभाग की तरफ से समस्त टीवी चैनलों को अप्रैल 2013 से दिनांक 31 जनवरी 2014 तक दिए गए विज्ञापनों का विवरण नीचे पढिए-

ईटीवी  रु. 3,29,94,795
ईटीवी उर्दू  रु. 51,17,850

सहारा समय  रु. 1,36,74,150
सहारा समय नेशनल  रु. 8,96,790

जी न्यूज/यूपी-उत्तराखंड  रु. 1,32,49,950
जी न्यूज नेशनल  रु. 14,41,968

इंडिया न्यूज़ नेशनल  रु. 22,46,784
इंडिया न्यूज़  रु. 96,00,850

टीवी100  रु. 1,08,12,550
साधना न्यूज़  रु. 86,19,450

टाईम टीवी  रु. 59,31,450
जैन टीवी  रु. 86,30,650

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वॉयस ऑफस नेशन  रु. 81,14,050
समाचार प्लस  रु. 83,88,650

श्री न्यूज  रु. 8,36,550
सी न्यूज  रु. 10,26,900

ए2जेड  रु. 13,14,300
दूरदर्शन  रु. 30,85,200

आज तक  रु. 21,88,842
आईबीएन7  रु. 14,41,968

एबीपी न्यूज  रु. 23,38,894
एनडीटीवी इंडिया  रु. 77,93,210

इंडिया टीवी  रु. 43,93,794
न्यूज़ 24  रु. 11,52,720

रेडियो मिर्ची जिंगल  रु. 12739122
नेटवर्क10  रु. 5,83,787

कुल योग- रु. 168615224 (16 करोड 86 लाख 15 हजार 2 सौ 24)

विज्ञापन के मामले में नंबर वन की पॉजीशन पर ईटीवी रहा, ईटीवी के यूपी उत्तराखंड और उर्दू चैनल को कुल विज्ञापन मिला- 38112645 (3 करोड 81 लाख 12 हजार 6 सौ 45)

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जून 2013 से अप्रैल 2014 तक कुल विज्ञापन

ईटीवी- 38112645 (3 करोड 81 लाख 12 हजार 6 सौ 45)
जी न्यूज- 14691918 (1 करोड़ 46 लाख 91 हजार 9 सौ 18)
सहारा समय- 14570940 (1 करोड 45 लाख 70 हजार 9 सौ 40)
इंडिया न्यूज- 11847634 (1 करोड़ 18 लाख 47 हजार 6 सौ 34)

अखबारों में सजावटी विज्ञापनों के लिए खर्च की गई राशि का विवरण

अखबारों में सजावटी विज्ञापनो के लिए खर्च की गई कुल रकम- 146048901 (14 करोड़ 60 लाख 48 हजार 9 सौ एक)
दैवीय आपदा पर आधारित विज्ञापनों में कुल खर्च रकम-44566919 (4 करोड़ 45 लाख 66 हजार 9 सौ 19)

सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में कई बातें साफ हो रही है। चलिए सरकार के लिए जनता तक मैसेज पहुंचाने के लिए विज्ञापन भी जरूरी हैं। लेकिन गौर कीजिएगा। ईटीवी के दो अलग-अलग चैनलों को अलग से विज्ञापन दिया गया। इसी तरह से जी न्यूज, इंडिया न्यूज और सहारा समय को विज्ञापन दिया गया। इनके उत्तराखंड के लिए प्रसारित किए जा रहे रीजनल चैनल के अलावा नेशनल चैनल को भी विज्ञापन दिया गया। सवाल ये है कि आखिरकार इसकी जरुरत क्या थी। क्या बहुगुणा जी सबका मुहं बंद करना चाहते थे। नेटवर्क10, वॉयस ऑफ नेशन, ए2जेड, साधना न्यूज, टाइम टीवी, श्री न्यूज और सी न्यूज चैनल उत्तराखंड में देहरादून को छोड़कर शायद ही किसी जगह पर केबल या डीटीएच प्लेफॉर्म पर दिखते होंगे। लेकिन इनकी भी बल्ले-बल्ले हो गई। अगर बहुगुणा जी इस पैसे को यूं बर्बाद ना करके सूबे के विकास काम में खर्च करते तो शायद उन्हें ना तो सीएम पद ही छोड़ना पड़ता और ना ही प्रदेश के लोग परेशानियों से जूझते। हमने सूचना विभाग से ये भी सवाल पूछा था कि विज्ञापन के लिए कितने हिस्से में डिस्ट्रीब्यूशन ज़रूरी हैः इस पर विभाग का जवाब था किः वांछित सूचना धारित नहीं है।

 

नीरज राठी के फेसबुक वॉल से साभार।
 

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