उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में तबादला एक उद्योग बन गया है। ऊंची पंहुच व रसूख वालों के लिए सुगम-दुर्गम कोई मायने नहीं रखता है। नियम व कानून बेबस और लाचार लोगों के लिए ही हैं, जिनकी आवाज न तो सत्ता के शिखर पर पहुंच पाती है और नहीं उनके पास मोटी रकम चढ़ावे के लिए है। शिक्षा विभाग में जगतेश्वरी बहुगुणा का प्रकरण एक बानगी है। न जाने कितने ऐसे अन्य शिक्षक व शिक्षिकाएं और भी हैं जो विभाग के दिये जख्मों को झेलने को विवश हैं।
दूसरों को चरित्र निर्माण, नैतिकता और अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाला शिक्षा विभाग खुद कितना अनुशासित व नैतिक है, इसकी बानगी एक शिक्षिका है जो पिछले छ: सालों से इस विभाग के अधिकारियों की उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है। 20 सालों तक दुर्गम क्षेत्र में सेवा करने के बाद नियमानुसार अपना तबादला सुगम में कराने के लिए वो राज्यपाल से लेकर विभाग के निचले स्तर के अधिकारियों से गुहार लगाती रही लेकिन तबादले को धंधा बनाने वाले अधिकारियों को उसकी फरियाद नहीं सुनाई दी। अपने पति की बचने की कम उम्मीद देखते हुए जब शिक्षिका ने एक निजी चैनल में खुद के सुहागिन मरने का बयान दिया तो सरकार हरकत में आ गई। जो विभाग शिक्षिका के पक्ष को सुनने को तैयार नहीं था, उसको मुख्यमंत्री के आदेश को मानने के लिए मजबूर होना पडा। इतना ही नहीं प्रदेश की बहुगुणा सरकार ने इस प्रकरण में पहली बार एक ऐसा निर्णय लिया जो शायद कांग्रेस सरकार बनने के बाद ऐतिहासिक माना जायेगा। पीड़ित शिक्षिका के पति के इलाज के लिए 6 घंटे के अंदर एक लाख की राशि भी उनके खाते में जमा करा कर खुद को सरकारी नुमाइंदो ने संवदेनशील होने की नजीर भी पेश की।
गौरतलब है कि जनपद रूद्रप्रयाग के छिनका में सहायक शिक्षिका जगतेश्वरी बहुगुणा के पति भाष्कराननंद बहुगुणा, पक्षाघात, मधुमेह व उच्च रक्तचात की बीमारी से पीड़ित हैं। पिछले छ: सालों से उनका उपचार देहरादून के अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है। इसके चलते ही उन्होंने समय से पहले ही स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। पति की बीमारी के दिन-प्रतिदिन बढ़ने के कारण शिक्षिका ने अपना तबादला देहरादून में करने या यहां अटैच करने का निवेदन किया। शिक्षिका का तबादला तो नहीं हुआ लेकिन उनके पति का स्वास्थ्य दिनो दिन गिरता गया। इसी बीच उनको ब्रेन हेमरेज हो गया। किसी तरह पीड़ित शिक्षिका को निदेशालय से संबद्ध कराया गया, लेकिन कुछ समय बाद ही इस आदेश को भी निरस्त कर दिया गया। हालांकि इस बीच शिक्षिका का नाम तबादला सूची में डाला गया लेकिन अंतिम समय में सूची से नाम गायब कर दिया गया। एक-दो बार नहीं बल्कि तीन बार शिक्षिका का नाम इस सूची में रखा गया। समझना मुश्किल नही है कि आखिर क्यों इस शिक्षिका नाम अंतिम समय में सूची से हटा दिया गया। शायद तबादले के धंधे में लगे लोगों को थैली भेंट में न मिलना इसकी वजह रही होगी।
विभागीय संवदेनहीनता जब असहनीय हो गई तो इस शिक्षिका ने यहां तक लिखकर दे दिया कि सेवा शर्तों के अनुसार स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति का समय होते ही वो सेवा निवृत्त हो जायेंगी। लेकिन इसका भी संवदेनहीन अधिकारियों पर असर नहीं हुआ। शिक्षिका का तबादला तो नहीं हुआ लेकिन उनके पति का स्वास्थ्य और खराब हो गया, उन्हें एक बार फिर अस्पताल में भर्ती कराना पडा। इसी बीच विभाग ने शिक्षिका को निलंबित करने का फरमान भी सुना दिया। इससे आहत शिक्षिका ने जब एक निजी चैनल में अपना दुखड़ा रोया और विभाग द्वारा उसके साथ हुए व्यवहार का चिठ्ठा खोला तो दिल्ली में बैठे सूबे के मुखिया भी हिल गये। आनन-फानन में उन्होंने शिक्षिका के देहरादून स्थानान्तरण के साथ ही एक लाख की धनराशि दिये जाने के आदेश दिये।
राज्य की कमान संभालने के बाद शायद यह अपनी तरह का पहला ऐसा मामला होगा जिसमें सूबे की कांग्रेस सरकार ने अपनी संवदनशीलता का परिचय दिया हो। सहायक अध्यापिका श्रीमती जगतेश्वरी के प्रकरण में मुख्यमंत्री ने न केवल उनका स्थानान्तरण करने का आदेश दिया बल्कि उनके खाते में पति के उपचार के लिए मुख्यमंत्री राहत कोश से 6 घंटे में ही धनराशि भी आ गई। यह सब तब हुआ जब मुख्यमंत्री कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में शिरकत करने दिल्ली गये हुए थे। इस तरह के प्रकरणों के सामने आने के बाद जैसा होता रहा है कि मंत्री व अधिकारी अपनी फजीहत बचाने के लिए संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बयान देते हैं। ऐसा ही इस पीड़ित शिक्षिका के मामले में भी हुआ। मामला संज्ञान में आते ही शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने संबधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है, लेकिन क्या उन अधिकारियों पर कार्रवाई होगी। आखिर वो कौन अधिकारी इसमें शामिल थे, जिन्होंने तीन बार तबादला सूची में नाम होने के बावजूद अंतिम समय में उसे हटा दिया। यदि सूबे के शिक्षा मंत्री वास्तव में अपने बयान में अटल रहते हैं तो उन्हें सबसे पहले उन अधिकारियों को सस्पेंड करना चाहिए जिन्होंने विभाग को तबादला उद्योग बना दिया है।
अपने पिता की लंबी बीमारी और मां की विवश्ता ने एक होनहार छात्रा का करियर पिसकर रह गया है। बहुगुणा दंपति की पुत्री दीक्षा का पंतनगर विवि में उच्च शिक्षा के लिए चयन हो गया था, लेकिन पिता की देखरेख के लिए घर में किसी के न होने के चलते उसे परिस्थिति से समझौता करना पडा। इस संबध में उसकी ओर से भी शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को अवगत कराया गया था। लेकिन बालिका शिक्षा का नारा देने वाली सरकार को शायद धरातल पर ये नारे अच्छे नहीं लगता है। ये नारे शायद टीवी और अखबारों में ही अच्छे लगते हैं।
बृजेश सती