आनंद भवन, स्वराजभवन इलाहाबाद में है और पूरी दुनिया उसे गांधी और नेहरू परिवार के बारे में वहीं से जानती है फिलहाल मैं इलाहाबादी ही हूँ और पूरे इलाहाबाद की तरफ से आप सभी से या पूछना चाहता हूं की आखिर क्या कारण था की आज आप को इलाहाबाद से कोई प्यार नहीं चलो मान भी लिया की राजीव, सोनिया, राहुल या प्रियंका का कोई कोई लेना देना न हो लकिन क्या जवाहर लाल नेहरू का भी कोई लेना देना इलाहाबाद की जनता या इलाहाबाद से नहीं था, कोई नाता ……………!
जब की जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद (मीरगंज) की उन्ही तंग गलियों के एक माकन मे पैदा हुए थे जहां आज के टाइम गली के दोनों तरफ की बात करे तो एक तरफ स्त्री को सजाने के लिये सोनी मतलब सुनारों की दूकान है तो दूसरी तरफ स्त्री खुद किसी न किसी मज़बूरी मे खुद को बेचने के लिया तैयार हैं। कुछ दलाल हर वक़्त आस पास चहल-कदमी करते हुए नज़र आ जायेंगे। और पैसे के दम पर स्त्री की अस्मिता और उसके शरीर को खरीदने वालो की तो लाइन हे लगी रहती है।
मीरगंज अपने आप मे काफी समृद्ध इसी बात पर हो जाता है की उस जगह पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री का जन्म स्थान है। जो 14 नवंबर 1889 पर यहाँ पैदा हुए और बड़े भी हुए। साथ हे उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित का भी जन्म स्थान इलाहाबाद रहा उसके वाबजूद क्या मिला इलाहाबाद को, इलाहाबाद की जनता को। मीरगंज की ही बात करते हैं। आप का जन्म स्थान रहा है न उस जगह का ही कितना विकास कर दिया…?
एक बहुत पुरानी कहावत याद आ रही है- कुत्ता भी जहां कुछ देर बैठ जाता है उसके आस पास की गजह खुद ही साफ़ कर देता है- कैसे या भी बता देता हैं अपनी पूंछ से शायद कभी देखा भी हो आप सभी ने।
आप के पास तो सरकारी तंत्र मौजूद था सत्ता थी पावर थी पैसा था लोग थे फिर क्यों कुछ नया कुछ अलग कुछ सही नहीं हो पाया। आज तक नेता, पार्टी, कीचड़ फेकने के सिवा कुछ नहीं कर सके और जब उसी कींचड़ में कमल खिल गया तो उसे भी उखाड़ फेंको।
सुना हैं देखा भी हैं और सही भी हैं कीचड़ में ही कमल खिलता हैं और मीरगंज जैसे कीचड़ में कमल खिला भी जवाहरलाल नेहरू जैसा कमल- फिर उस कमल का विकास हुआ तो कीचड़ का उद्धार क्यों नहीं या क्यों न या समझा जाये। कींचड़ से कमल निकला और मुस्कुरया फिर बोला तुम रुको मै आया कुछ ऐसा ही हो इसे भी अलग आप बताये।
कोतवाली के बिलकुल बगल मे स्थित इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से से थोड़ी दुरी पर स्थित व्यपारिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र भी है। मीरगंज में पूरे गंगापर, यमुनापार, फूलपुर, प्रतापगढ़ और कौशाम्भी तक के व्यपारी ग्राहक किसी न किसी कारण से आते हे जाते है फिर वो चाहे थोक खरीदारी हो या शादी ब्याह की तैयारी बिना इस इलाहाबाद बाद के चौक आये किसी का काम नहीं चल पता। और वहीं पर चौक के बीचो-बीच स्थित है मीरगंज पंडित कहें या और बहुत सारे उपनाम है नेहरू जी के जो भी आता है वो एक बार ज़रूर दिल से सोचता है और दिमाक से बोलता है (……………..) कही के नहीं हुए शायद यही कारण है की कश्मीर से आगरा, इलाहाबाद, इलाहाबाद से बरेली और फिर अमेठी अगर अमेठी और बरेली का चुनाव ये लोग हर गए तो ये निश्चित है की कल कोई नया शहर इन्हे ज़रूर अपना लेगा लकिन क्यों ये किसी शहर को अपना नहीं पा रहे।
अभी हाल मे मीडिया के माध्यम से हे जाना की राहुल गांधी के पास अमेठी का निवास तक नहीं है और एसडीएम अमेठी देने से मन कर दिया। क्यों? सवाल.. तो बनता है क्यों की आप कहीं के है ही नहीं.. न अपने घर के, न समाज के, न प्रदेश के, न धर्म के, ये फिर- कहा जाये तो देश के भी नहीं आखिर क्या कारण था की सोनिया ने राजीव से शादी के 18 साल बाद भारत की नागरिकता अपनाई जो हक़ और अधिकार उनको भारत का सविधान उसी पल पर दे चूका था उसे अपनाने मे 18 साल लागा दिया जाये तो फिर भारत के विकास मे तो कितना समय और लगाया जायेगा इसका अनुमान लगाना थोड़ा आसान ज़रूर हो जाता है।
अगर आज आप या बात कहते है की आप भारत की बात कर रहे है तो जहां पैदा हुए, बड़े हुए उसकी बात कौन करेगा। हो सकता है आप को लगे सवाल गैरज़रूरी है, फिर भी सवाल बनता है शयद आप को याद भी न हो लकिन इलाहाबाद मे मीरगंज नाम की एक बदनाम जगह आज भी है। वही से आप का नाता है उस नाते के खातिर खुद के परिवार के नाम के खातिर भी आप लोगो ने मीरगंज की कभी सुध ले ली होती विकास तो सभी कर रहे है। खुद का भी देश का भी। लेकिन पल-पल, दल, दिल और ख्याल बदलना ज़रूरी है क्या कश्मीर से मोती लाल नेहरू आये, इलाहाबाद से जवाहरलाल नेहरू गए अमेठी आप पहुंच गए रायबरेली सोनिया अच्छा है आना जाना तो लगा ही रहता है। हर कोई कहीं न कहीं से आता है और कहीं चला जाता है। लकिन क्या आप लोग भी उसी हर कोई मे शामिल हैं। अगर हां तो बतायें देश की जनता को…… खुद को भी ……! —– गांधीवादी नेहरूवादी टोपी की लाज क्यों नहीं बचाई जा रही। इलाहाबाद के मीरगंज मे आखिर किस महापुरुष या किस वक़्त का इंतज़ार किया जा रहा है। जब तक वो पूरे भारत का सब से बड़ा चकला घर न बन जाये या एशिया का जैसे कलकत्ता में है। उसमे सुधर या उनका पुनरुद्धार इलाहाबाद का विकास की बात ही छोड़ दो। इलाहाबाद जिसने देश को 4–4 प्रधानमंत्री दिए, आखिर उसे क्या मिला? विचार इस बात पर करना ज़रूरी है।
प्रदीप दुबे। संपर्कः 07827773177, [email protected]