Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

‘हम दोनो’ नंदा के फिल्मी सफ़र की एक महत्वपूर्ण फिल्म है

“अपने हाथों की कमाई हुई सुखी रोटी भी…” “तुम भी सुखी रोटी में यकीन करने वाले हो!! जिसने हमेशा पुलाव खाएँ हो, उसे सुखी रोटी मे कविता नज़र आती है, जो गरीबी से कोसों दूर रहा हो उसे गरीबी मे ‘रोमांस’ नज़र आता है। लेकिन कविता और रोमांस अमीरों के दिल बहलाव की चीज़े हैं, और सुखी रोटी……उसे चबाना पड़ता है, निगलना पड़ता है, पचाना पड़ता है। गरीबी ज़िन्दगी का एक श्राप है आनंद( देवआनंद) साहब! जिससे निकलना इंसान का फ़र्ज़ है, जानबुझ कर पड़ना हिमाकत। जो अपने प्यार के खातिर सौ रुपए तक की नौकरी ना पा सका, वह प्यार का मतलब समझाने आया है। तुम आए हो मीता(साधना) से उसका आराम और सुख छीनने, एक सुखी रोटी का वादा लेकर, तो ले जाओ। वह तो है ही नादान। कितने दिनो तक अपने साथ रखोगे, तुम ज़िन्दगी भर उसे इतना नहीं दे पाओगे, जितना मीता अपने एक जन्मदिन पर खर्च कर देती है।

“अपने हाथों की कमाई हुई सुखी रोटी भी…” “तुम भी सुखी रोटी में यकीन करने वाले हो!! जिसने हमेशा पुलाव खाएँ हो, उसे सुखी रोटी मे कविता नज़र आती है, जो गरीबी से कोसों दूर रहा हो उसे गरीबी मे ‘रोमांस’ नज़र आता है। लेकिन कविता और रोमांस अमीरों के दिल बहलाव की चीज़े हैं, और सुखी रोटी……उसे चबाना पड़ता है, निगलना पड़ता है, पचाना पड़ता है। गरीबी ज़िन्दगी का एक श्राप है आनंद( देवआनंद) साहब! जिससे निकलना इंसान का फ़र्ज़ है, जानबुझ कर पड़ना हिमाकत। जो अपने प्यार के खातिर सौ रुपए तक की नौकरी ना पा सका, वह प्यार का मतलब समझाने आया है। तुम आए हो मीता(साधना) से उसका आराम और सुख छीनने, एक सुखी रोटी का वादा लेकर, तो ले जाओ। वह तो है ही नादान। कितने दिनो तक अपने साथ रखोगे, तुम ज़िन्दगी भर उसे इतना नहीं दे पाओगे, जितना मीता अपने एक जन्मदिन पर खर्च कर देती है।

 
मीता के पिता की चुभती बात किंतु हक़ीकत को दिल से लगाकर आनंद बाहर निकल जाता है। वो समझ पाया था कि कामकाज के बिना जिंदगी को जीना कभी मुम्किन नहीं होगा। प्यार व जिंदगी को लेकर एक बदलाव उसमें घटित हो गया था। खुद को जिंदगी की हक़ीकत के लायक बनाने का संकल्प लेकर वह पुराने आनंद को पीछे छोड़ आया था। फौज मे भर्ती का विज्ञापन दिखाई देना किरदार के जीवन में नएपन को दिखाने के लिए काफी सटीक था। हम देखते हैं कि आनंद फ़ौज में दाखिल हो जाता है। वहां उसकी मुलाकात अपने ‘हमशक्ल’ मेजर वर्मा से होती है, एक ही शक्ल, एक फ़ौज और एक शहर का संयोग दोनो को नज़दीक ले आता है। इस मोड़ से आनंद व मेजर वर्मा की कहानियां आकर मिल जाती हैं। हमशक्ल होने की वजह से दो अलग इतिहास अनजाने में ही एक दूसरे के जीवन में प्रवेश कर जाते हैं।

आनंद व खुद को एक जगह देखकर मेजर वर्मा कहते है: भगवान मे मुझे यकीन नही, लेकिन किस्मत ज़रुर कोई चीज़ है! वर्ना एक से चेहरे, एक फ़ौज ,एक जगह …बड़ी खुशी की बात है।
 
किसी जंग के दौरान मेजर वर्मा गंभीर रूप से घायल हो गए, दुश्मनों के हमलों का सामना करते हुए इस नाजुक हालात में आए थे। इस हालत मे वो अभिन्न मित्र आनंद से अपनी गैर-मौजुदगी या मारे जाने के स्थिति मे उनके घर की ज़िम्मेदारी निभाने का वायदा लेता है। दोस्ती की खातिर आनंद को अपने मित्र की बात ना चाहते हुए भी माननी पड़ी। इस मोड़ से कहानी में नए दिलचस्प मोड़ बनते हैं। उस दिन के बाद  मेजर वर्मा यकायक लडाई के मोर्चे से गायब हो गए। कुछ दिनों बाद उनके लापता और मारे जाने की खबर मिलती है। फ़ौज से छुटकर आनंद मेजर और खुद के दायित्वों को निभाने  के लिए मेजर के परिवार के पास आया जहां मेजर की धर्मपत्नी रूमा(नंदा) पति के वापसी की बाट जोह रही थी।

इस इंतजार में रूमा बीमार हो चुकी थी। वो आनंद को अपना खोया हुआ पति मान रही, आनंद भी इस सच नहीं बता सकेगा क्योंकि रुमा बीमार है। वो रुमा से हक़ीकत को जाहिर नहीं करता। ऐसे हालात में आनंद को धर्म-संकट से गुज़रना होगा। असली नकली के दो विपरीत दायित्वों की परीक्षा से गुज़रते वो बहुद हद तक सफल हो रहा था। वो रूमा से पत्नी से ऊपर का नाता रखने का निर्णय लेता है। लेकिन इस मोड़ पर एक अप्रत्याशित हक़ीकत सामने आती है। फ़िल्म के तीसरे हिस्से में मेजर वर्मा को जीवित दिखाया जाता है। मेजर अब वो नहीं रहा, दूसरों के बहकावे में वो रुमा-आनंद के पवित्र बंधन पर शक करने लगा। आनंद को इस परीक्षा में सफल होना होगा क्योंकि मीता उसी के इंतजार में दुनिया को ठुकराए हुए थी। मेजर को इसका डर था कि अपाहिज हो जाने बाद क्या रुमा अब भी पहले जितना प्यार उसे देगी? स्वयं के प्रति रुमा का असीम समर्पण देखकर मेजर को किए पर पछतावा होता है। सुखद समापन में रुमा को उसका असल पति जबकि आनंद को मीता का साथ मिल जाता है।

साठ दशक में रिलीज ‘हमदोनों’ में  भारतीय आदर्शों व मूल्यों को दिखाने का संकल्प नजर आता है। यहां पर आस्था-विश्वास एवं पारिवारिक व मित्रता के मूल्यों की सुंदरता बताई गयी। यहां पर हमशक्ल की परिस्थिति को पेश कर कहानी का आधार रखा गया था। पात्रों के व्यक्तित्व को परखने के लिए कथा में संघर्ष का भाव था। किरदार इसमें विजयी होकर सामने आए। अब उनका व दर्शकों का एकात्म हो गया था। यही खुबसुरती किसी कहानी को सफल बनाती है। युं तो यह देव आनंद की फिल्म थी फिर भी नंदा व साधना की भूमिकाओं ने उन्हें कड़ी चुनौती दी। रूमा व मीता के किरदार आनंद व मेजर वर्मा के किरदारों को मुकम्मल कर रहे थे। पतिव्रता नारी के रूप में नंदा का अभिनय उम्दा था। उधर आनंद की खातिर जीवन भर इंतजार करने का संकल्प लिए हुए मीता का किरदार भी दमदार था। गीतो मे ‘हर फ़िक्र को धुएं मे उडाता चला गया, अभी ना जाओ छोडकर, कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया और सदाबहार भजन ‘ अल्लाह तेरो नाम, इश्वर तेरो नाम’ को बार-बार गुनगुनाया जा सकता है। दिवंगत अभिनेत्री नंदा पर फिल्माया गया यह भजन हिंदी सिनेमा के बेहतरीन भजनों में एक है। नंदा के फिल्मी सफर की एक जरूरी फिल्म।

 

सैयद एस. तौहीद। संपर्कः [email protected]
 

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement