REEL PICTURE: न्यूज़ चैनल्स पर मठाधीशनुमा बड़े-बड़े पत्रकार, भ्रष्टाचार के दायरे से इतर, 20-30 साल या 30-40 साल सार्वजनिक जीवन में रहने वाले किसी नेता के पास 4-5 करोड़ की संपत्ति होने की खबर को ऐसा कह कर बताते हैं मानो ये अरबों-खरबों के बराबर है। बड़े-बड़े पैनल डिस्कशन कराये जाते हैं कि आखिर नेता करोड़पति कैसे हो जा रहे हैं? अंदाज़ कुछ ऐसा रहता है, जैसे लगता हो कि ये नामचीन पत्रकार उधार मांगकर गुज़ारा कर रहे हैं और 4-5 करोड़ पर हैरान-परेशान हैं या इनके पास सपने में भी नहीं होगा।
REAL PICTURE: पिछले दिनों "आप" के "पैराशूट" नेता आशुतोष ने जब अपनी संपत्ति 8 करोड़ के क़रीब बताया तो दिमाग चकरा गया। हालांकि इसमें उनकी पत्नी की संपत्ति भी है। पर नेताओं के बारे में गहरी पैठ रखने वाले IBN7 के पूर्व मैनेजिंग एडिटर और अब "आप" के नेता आशुतोष, जानते हैं कि नेता अपने बीवी-बच्चों या रिश्तेदारों के नाम से ही प्रॉपर्टी या पैसे का ताना-बाना बुनते हैं। इसके पहले "स्टार न्यूज़"(अब एबीपी) की चर्चित एंकर रह चुकी और अब "आप" की नेता शाज़िया इल्मी ने भी अपनी संपत्ति को करोड़ों में बताया है। दीपक चौरसिया नाम के "पत्रकार" के पास भी करोड़ों की दौलत है। पुण्य-प्रसून, बरखा दत्त, अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, विनोद कापड़ी, राजदीप सरदेसाई, अभिज्ञान प्रकाश जैसे ऐसे कई नाम हैं जिनके पास करोड़ों की दौलत है।
यहाँ सवाल करोड़ों की दौलत का नहीं है बल्कि इस बात का है कि ये वो पत्रकार हैं जो 2-4 करोड़ की दौलत का ज़िक्र चीख-चीख कर इस अंदाज़ में बताते हैं मानो ये बहुत बड़ा पाप हो गया हो और इतनी दौलत तो एक आम आदमी नहीं कमा सकता। यानि ये सारे पत्रकार आम-आदमी नहीं, बल्कि अमीरी के आंकड़ों के पायदान पर रईस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहाँ सबसे मौजूं सवाल ये है कि क्या मीडिया कंपनी इतना पैसा इन गिने-चुने पत्रकारों को दे रही हैं कि वो 10-12 साल में 8-8, 10-10 या 15-15, 20-20 करोड़ के मालिक़ हो जाएँ? IBN7 से 300 कर्मचारी निकाल दिए गए, इस बिना पर कि कम्पनी को घाटा कम करना है। मगर उसी कंपनी में करोड़ों की कमाई करने वाले राजदीप और आशुतोष जैसे पत्रकार भी रहे।
अगर मीडिया कम्पनी घाटे में चल रही हैं तो किस बिना पर इन पत्रकारों को करोड़ों कमाने का अवसर मिलता रहा और आम पत्रकार एक सम्मानजनक आंकड़ों वाली सैलरी के लिए भी तरसता रहा? क्या मीडिया में अब तनख्वाह इतनी ज़्यादा हो गयी है कि 8-10 साल के दरम्यान एक अदद पत्रकार करोड़ों की कोठी या फ़्लैट ले ले और करोड़ों जमा कर ले? अगर ऐसा है तो पिछले 8-10 साल में मीडिया का मुनाफ़ा भी अरबों में पहुंचना चाहिए। और यदि ऐसा नहीं है तो कोई कंपनी घाटा सहते हुए अपने यहाँ लाखों की तनख्वाह देने का मौक़ा कैसे मुहैया कर सकती है? अब दोनों बातें एक साथ तो हो नहीं सकती कि मीडिया मालिक़ या हाऊस घाटे की स्थिति में हों और उनके यहाँ काम करने वाले पत्रकार करोड़ों में खेल रहे हों या मीडिया हाउस या मालिक़ मुनाफ़े की स्थिति में लगातार हों और उनके यहाँ कर्मचारियों की संख्या या दशा बहुत सराहनीय ना हो।
ये सवाल इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि टी.वी. मीडिया में पेड पत्रकारिता का परचम लगातार गहराता जा रहा है। ऐसी पेड पत्रकारिता जो शब्दों की बाज़ीगरी से किसी व्यक्ति-विशेष को उठा रही है और गिरा रही है। मसलन रजत शर्मा, "इंडिया टी.वी." को भाजपा का "मुखपत्र" बनाने पर तुले हैं तो "एबीपी न्यूज़" के सम्पादकीय कर्णधार भाजपा के पक्ष में जनादेश खड़ा करने का कोई मौक़ा नहीं चूकते। "आज तक" वाले पहले मोदी के साथ चले पर मोदी समर्थक चैनल की हवा बनने से पहले ही कूटनीतिक रुख़ अख्तियार कर लिए। दीपक चौरसिया, अरविन्द केजरीवाल के पैर की धूल भी नहीं लगते पर केजरीवाल का मुंडन, ज़बरदस्ती, रोज़ाना "इंडिया न्यूज़" पर कर रहे हैं। ऐसा लगता है, मानो कहीं से स्पष्ट निर्देश आया है कि "चाहे कुछ भी हो पर केजरीवाल को बदनाम करो"।
इसी तरह हर चैनल अपने-अपने तरीक़े से और अपना "नफ़ा-नुकसान" देखकर चल रहे हैं। पर ये नफ़ा-नुकसान सिर्फ चैनल के मालिकों तक ही सीमित है या उन चैनल्स में काम करने वाले "बड़े" पत्रकारों का भी उसमें गुणा-गणित शामिल है? सवाल फिर वही कि चैनल मालिकों की हैंसियत बड़ी है तो "धंधे" के सहारे, लेकिन करोड़ों-पति पत्रकारों की हैसियत किस ज़मीन पर तैयार हुई है? खांटी तनख्वाह पर या तनख्वाह से "इतर कुछ-और-भी"! ये पत्रकार करोड़ों रुपये वाले नेताओं का आर्थिक इतिहास जब बताते हैं तो आम जनता को नेताओं के व्यक्तित्व से बदबू आती है। आज मीडिया में करोड़ों की "कमाई" कर बैठे पत्रकार, सतही तौर पर, खांटी समाजवाद की तर्ज़ पर खुद को, आम आदमी की जान बचाने वाला नायक साबित कर रहे हैं।
नेताओं पर अक्सर भ्रष्टाचार के ज़रिये कमाई का आरोप लगता है। मगर अब वक़्त आ चला है कि नेताओं का आर्थिक इतिहास खंगालने वाले कई करोड़ों-पति पत्रकारों का भी आर्थिक-इतिहास सार्वजनिक हो। इस सार्वजनिक ख़ुलासे से दो फायदे होंगे। (1) यदि इन पत्रकारों के पास नेतानुमा कमाई नहीं होगी तो वो लोग शर्मसार होंगें जो ऐसे संदेह को पाले बैठे हैं, (2) और यदि कमाई अपने आका नेता की ही तर्ज़ पर होगी तो ये साबित हो जाएगा कि, पत्रकार की खाल में, ये सब भ्रष्ट नेता के चमचे ही हैं। यकीन मानिये, आम जनता को इनकी दौलत पर नाज़ नहीं होगा बल्कि दुर्गंध का वो आलम होगा कि सीवर लाइन के लिए सीबीआई जांच की मांग बहुत तेज़ होगी। अफ़सोस! नेता के पास खरीदे हुए पचास चमचे होते हैं जो मुसीबत के वक़्त खुद पीट जाते हैं और अपने नेताजी को बचा ले जाते हैं। पर ऐसा कम ही देखा गया है कि चमचे की पिटाई हो रही हो और नेताजी अपने चमचे को बचाने के लिए खुद पिट जाएँ। पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों!
नीरज…….'लीक से हटकर'। संपर्कः [email protected]