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प्रदूषित ईकोतंत्र से पंजाब में बढ़ रहा कैंसर, स्थिति भयावह, सरकारें नहीं दे रहीं ध्यान

चुनावी डुगडुगी बजते ही नेताओं के मन में बाजी मारने की लहर उठ रही है। एक दूसरे का पोल खोलने की बाजी लगी हुई है। कल तक जिस मसले को लेकर एक नेता दूसरे कासे नंगा करते फिर रहे थे और देश, समाज में सभी समस्याओं के लिए एक दूसरे को गरिया रहे थे, चुनाव के आते ही सबकी बोलती बंद हो गई है। पंजाब में नजारा कुछ और ही है। हर चुनाव के समय पंजाब में कैंसर पीड़ितों की राजनीति शुरू होती है लेकिन लेकिन चुनाव के बाद कैंसर की राजनीति बंद हो जाती है। आलम ये है कि आज पंजाब का हर इलाका कैंसर की चपेट में है। आइए पंजाब में कैंसर के हालात पर एक नजर डालते है।

चुनावी डुगडुगी बजते ही नेताओं के मन में बाजी मारने की लहर उठ रही है। एक दूसरे का पोल खोलने की बाजी लगी हुई है। कल तक जिस मसले को लेकर एक नेता दूसरे कासे नंगा करते फिर रहे थे और देश, समाज में सभी समस्याओं के लिए एक दूसरे को गरिया रहे थे, चुनाव के आते ही सबकी बोलती बंद हो गई है। पंजाब में नजारा कुछ और ही है। हर चुनाव के समय पंजाब में कैंसर पीड़ितों की राजनीति शुरू होती है लेकिन लेकिन चुनाव के बाद कैंसर की राजनीति बंद हो जाती है। आलम ये है कि आज पंजाब का हर इलाका कैंसर की चपेट में है। आइए पंजाब में कैंसर के हालात पर एक नजर डालते है।

हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर कैंसर रोगी दर प्रति लाख 71 है, वहीं पंजाब के मालवा इलाके में यह आंकड़ा 125 से भी आगे पार कर चुका है। पंजाब में कैंसर के इस आंकड़ें को देखकर ऐसा कह सकते हैं कि जिस तरह सिंधु घाटी की महान सभ्यता  प्राकृतिक आपदाओं की वजह से नेस्तनाबूद हो गयी, अब आधुनिक सिंधुघाटी का वही इलाका मानवीकृत वजहों से उत्पन्न कैंसर रूपी दानव से एक बार फिर बर्बादी के कगार पर है। खेती के बदलते ढंग, रहन सहन से लेकर खान पान में आए बदलाव और धन व पैसों के प्रति बढ़ते लोभ और लालच की वजह से सिंधुघाटी की इस नायाब धरती को कैंसर नामक जानलेवा बीमारी एक बार फिर निगलने को तैयार है। कैसे कोई बीमारी पैर से सिर तक पहुंचती है और फिर जानलेवा हो जाती है पंजाब इसका जीता जागता उदाहरण है। पहले पंजाब के मालवा इलाके में कैंसर का दंश और बाद में पूरे पंजाब में कैंसर के प्रकोप को देखते हुए आप कह सकते हैं कि इस अति विकसित राज्य को निगलने के लिए इतिहास फिर अपनी कहानी लिखने को तैयार है।
          
दरअसल पंजाब का भूगोल तीन इलाकों में बंटा हुआ है- मालवा, दोआब और मांझा। दोआब और माझा को गेहूं और गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है वहीं मालवा इलाका कपास की खेती में देश के कई राज्यों को पछाड़ता आ रहा है। आज से 20 साल पहले यहां देशी तरीके से कपास की खेती शुरू की गई थी लेकिन अब बीटी कॉटन के आने के बाद खेती के तरीके बदले तो किसानों की जिंदगी भी बदली और उनकी लाइफ स्टाईल भी। पूरे पंजाब में करीब 6 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती होती है जबकि सिर्फ भटिंडा में 1.65 लाख हेक्टेयर की कपास खेती होती है। कपास की इस खेती ने लोगों को आर्थिक रूप से संपन्न तो किया लेकिन अब यही संपन्नता लोगो की बलि मांग रही हैं। इसे आप विकास का साइड-इफेक्ट भी कह सकते हैं। कैंसर के रूप में जो मौतें पूरे पंजाब में हो रही है और जिस तेजी से गांव के गांव कैंसर रूपी महामारी की चपेट में आते जा रहे हैं उससे यही लगता है कि समय रहते इसे रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सार्थक अभियान नहीं चलाए गए तो पंजाब का नामों निशान मिट जाएगा।
       
कैंसर से आहत पंजाब को उसकी पुरानी खेती पद्धति और विरासत को लोटाने के लिए खेती विरासत मिशन के तहत काम कर रहे उमेंद्र दत्त कहते हैं कि पंजाब के हालात इतने खराब हो गए है कि ‘कहना मुश्किल है। पंजाब के पूरे वातावरण में विषाक्त तत्व आ गए हैं जिससे यहां के स्वास्थ्य और भोजन श्रृंखला ध्वस्त हो गए हैं। यहां के वायुमंडल में भी जहर है और भेजन में भी। खेती में जिस तरीके से और जितनी मात्रा में रसायनों का प्रयोग होता है उससे पूरा इकोतंत्र ही लड़खड़ा गया है। मामला केवल आदमी में फैल रहे कैंसर तक का ही नहीं है, पशुओं में भी बड़े पैमाने पर कैंसर के अलावा घातक बीमारियां घर कर गई है। जाहिर है यहां का दूध भी जहरीला होता गया है। धरती के नीचे का पानी पूरी तरह से जहरीला हो गया है और खेत की जमीन भी। ऐसे में इंसान के बचने का रास्ता क्या बचा है कह नहीं सकता। सरकार घोषणा के अलावा कुछ करती नहीं, ऐसे में इस समाज को बचा पाना मुश्किल है।’

उमेंद्र दत्त की चिंता पंजाब के भविष्य को लेकर हैं क्योंकि जो वर्तमान है वह अभिशप्त है। कैंसर के कारण अधिकतर लोगों की रखी पूंजी समाप्त हो गई है। और इलाज के लिए 70 फीसदी लोगों को अपना कुछ न कुछ बेचना पड़ रहा है। इलाके के 9 फीसदी लोग ऐसे हैं जो कर्ज लेकर इलाज करा रहे हैं और 8 फीसदी ऐसे कैंसर रोगी हैं जिन्होने इलाज के लिए अपनी एफडी तोड़वायी है। आइए आपको भटिंडा रेलवे स्टेशन से बीकानेर जाने वाले लोगो से मिलवाते हैं।

हर रात 9 बजे अबोहर से बीकानेर के लिए ट्रेन जाती है। स्थानीय लोग इसे कैंसर ट्रेन कहते हैं। 12 बोगियों वाली यह ट्रेन भटिंडा, मुख्तसर, मनसा, फिरोजपुर, मोंगा, बरनाला, फरीदकोट और सुगरूर जिले के कैंसर रोगियों को बीकानेर तक पहुंचाती हैं। खचाखच भरी इस ट्रेन को आप देंखेंगे तो परेशान हो जाऐंगे। बच्चों से लेकर बूढ़े रोगी कराहते नजर आऐंगे। बीकानेर में कैंसर अस्पताल है और वहां रोगियों के ठहरने के लिए धर्मशाला और सराय है। इलाज भी सस्ता और रहने का इंतजाम भी सस्ता। गरीब लोग इसी ट्रेन से यात्रा  करते हैं। भटिंडा से बीकानेर जाने में 34 रूप्ए किराया है जबकि भटिंडा में किसी भी प्राइवेट अस्पताल में घुसने का फीस 500 से कम नहीं है। ट्रेन की बोगी में सर्वजीत कौर से हमारी मुलाकात हुई। 40 साल की सर्वजीत कौर को ब्रेस्ट कैंसर हैं। भटिंडा की रहने वाली सर्वजीत के साथ उसके पति अंसा सिंह हैं। अंसा कहते हैं कि ‘तीन बार हम बीकानेर हो आए। इलाज चल रहा है अब तो हमारे पास कुछ बचा भी नहीं है। पता नहीं यह इलाका किस शाप से ग्रसित है ’। दीवान चंद की उम्र 62 साल है। मुख्तसर के हैं दीवान चंद। अब तक अपने इलाज पर एक लाख से ज्यादा लूटा चुके हैं। फायदा कुछ नहीं है। दीवानचंद हर माह बीकानेर का दौरा कर रहे हैं। इसी तरह मुख्तियार कौर, बलबीर कौर, सवान सिंह और सोमा रानी की अपनी अपनी कहानी हैं ।56 साल की सोमा रानी पति जीत सिंह के साथ साल भर से बीकानेर दौड़ रही है। सोमा कहती है कि सरकार के लोग कुछ कर नहीं रहे और पूरा पंजाब मरता जा रहा है।
         
भटिंडा  की जमीन तो अधिक मात्रा में कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से जहरीली हुई है, लेकिन वहों के वातावरण और पर्यावरण में जो जहरीले अणु तैर रहे हैं उसे लेकर सरकार से ज्यादा पर्यावरणविद परेशान हैं। भटिंडा में अभी दो थर्मल पावर चल रहे हैं जबकि तीसरा थर्मल पावर मनसा के गोबिंदपुरा में तैयार हो रहा है। इसके अलावा एक फर्टिलाइजर कारखाना और एक रिफाइनरी है। इससे भी बड़े पैमाने पर जल और वायु प्रदूषण हो रहा है। भटिंडा के गुरूनानकदेव थर्मल पावर से हमेशा कोल राख निकलने से इलाके के लोगों का जीना मुहाल है। सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। भटिंडा के सिविल सर्जन इकबाल सिंह कहते हैं कि- ‘मालवा इलाके में कैंसर फैलने के कोई एक कारण नही है कीटनाशक के साथ ही अधिक अल्कोहल लेने से भी यह बीमारी फैल रही है। इसके साथ ही पानी में यूरेनियम की मात्रा बढ़ गई है। खानपान  में आए बदलाव और उसमें कार्बाइड की मात्रा बढ़ जाने से भी कैंसर मरीजों की संख्या बढ रही है।’ आपको बता दें कि भटिंडा और मनसा मे 1996 से लेकर 2001 के बीच 5 मिलियन लीटर पेस्टीसाइड के इस्तेमाल हुए हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि इतनी मात्रा में जहर का प्रयोग होने से उस जमीन का क्या हुआ होगा?
       
उधर, उमेंद्र दत्त कहते हैं कि ‘मालवा इलाके समेत पूरे पंजाब में केवल कैंसर का ही भयावह असर नही है, इन इलाकों में बड़े पैमाने पर चर्म रोग, जनन समस्या, मानसिक रोगों के साथ ही बड़े पैमाने पर अबॉर्शन के मामले भी आ रहे हैं। आत्महत्या के मामले अलग से। ये अबॉर्शन महिलाओं और पशुओं में एक साथ देखे जा रहे हैं। इन तमाम रोगों के लिए चंडीगढ़ पीजीआई और भाभा आटोमिक रिसर्च सेंटर के कई सर्वे भी आ चुके हैं जिसमें बताया गया है कि पानी में फ्लाराइड और पेस्टीसाईड के तत्व मिले हुए हैं जबकि यहां के भूजल में यूरेनियम है फिर भी सरकारी स्तर पर कोई काम नहीं हो रहा है। लगता है कि सरकार इसमें भी वोट की राजनीति देख रही है।’ कैंसर के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में पंजाब की समृद्ध विरासत को हम खो न दें।  खेती विरासत मिशन से जुड़ी अमन जोत कौर कहती हैं कि जब तक केमिकल फ्री खेती नहीं होगी और हमारा भोजन परंपरागत नहीं होगा तब तक इस जानलेवा बीमारी को नहीं रोका जा सकता। यही वजह है कि हम गांव गांव जाकर लोगों को और खासकर महिलाओं को केमिकल फ्री किचेन गार्डेन की सलाह दे रहे हैं और इसका पंजाब में असर भी हो रहा है।
       
विकास का मॉडल गांव के लिए बने- डॉ. आजाद

पंजाब, पटियाला के वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ और पर्यावरणविद डॉ. अमर सिंह आजाद की चर्चा मालवा इलाके के गांव गांव में है। मालवा में फैले कैंसर और अन्य बीमारियों को डॉ. आजाद दूसरे नजरिए से देख रहे हैं। वह इन बीमारियों के लिए सरकार की गलत विकास नीति को जिम्मेदार मान रहे हैं। डॉ. आजाद से हुई बातचीत के अंश….

पंजाब और खासकर मालवा इलाके में फैले कैंसर को आप किस रूप में देख रहे हैं?

देखिए यहां केवल कैंसर का ही  मसला नहीं है। इन इलाकों में कई अन्य तरह की बीमारियां भी कुछ सालों में बढ़ी हैं और ये बीमारियां आने वाले समय में कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक साबित होने वाली है। जिस तरह से लोगों के हार्मोन डिस्टर्व हो रहे हैं, डायबिटिज की बीमारियां बढ़ रही हैं, जनन प्रक्रिया प्रभावित हो रही है, उससे तो पूरी सभ्यता का ही नाश हो जाएगी।

और कैंसर?

यहां का पूरा वातावरण ही जहरीला हो गया है। वातावरण में टाक्सिन इतने बढ़ गए है कि इसे अब रोक पाना सरकार के बूते की बात नहीं है। इस जहर के तीन स्त्रोत हैं। मालवा इलाके में जिस तरह से कोयला आधारित थर्मल प्लांट लग रहे हैं वह इंसान के जीवन के लिए सबसे खतरनाक है। इसके अलावा उद्योगों के कचरे से निकलने वाले पानी खेतों और भूगर्भीय जल को जहरीला कर रहे है। और अंत में खेती में उपयोग हो रहे पेस्टीसाईड और दवाइयों ने न सिर्फ जमीन और पानी को जहरीला किया है बल्कि अनाज को भी जहरीला कर दिया है। और यह सब सरकार की गलत नीति का नतीजा हैं। सरकार अगर गांवों के विकास पर घ्यान दें, छोटे बिजली उत्पादन केंद्र लगाए, छोटे डैम बनाए तो कई समस्याएं खत्म हो जाएंगी।

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पंजाब में किस तरह के कैंसर हैं?

मोटे तौर पर कैंसर तीन वजहों से होते हैं। एक तो ज्यादा तंबाकू लेने से दूसरे रेडिएशन के जरिए और तीसरा वातावरण जहरीला होने से। पंजाब के वातावरण में जहर फैल जाने की वजह से ही कैंसर महामारी के रूप में है। यहां तो पानी में जहर, मिट्टी में जहर, फूड चेन में जहर और आदमी के खून में जहर मौजूद है।  इस पर व्यापक शोध करने की जरूरत है।

कई शोध रिपोर्ट्स में पेस्टीसाइड को प्रमुख कारण माना गया है?

सही है। देखिए पंजाब में पूरे देश की डेढ फीसदी भूमि है और देश का 18 फीसदी पेस्टीसाइड का प्रयोग यहां होता है। ऐसे में जमीन की क्या स्थिति है आप खुद देख रहे हैं। जब तक वातावरण में फैले जहर को हम कम नहीं करेंगे बीमारी बढ़ती ही जाएगी।

कैंसर एक खर्चीली बीमारी है जबकि सरकार कुछ करती नहीं दिख रही?

कैसर केवल खर्चीली ही नहीं इसमें लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है। सरकार डेढ़ लाख रुपए हर रोगी को देने की बात करती है। यह रकम भी लोगों को नहीं मिलती लेकिन मसला यह नही है। मसला है इस बीमारी के निदान का और वह निदान पैसे देकर नहीं विकास के माडल को बदलने से संभव होगा।

 

लेखक अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं। इनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।
 

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