Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

किसी अपने के बिना होली ही नहीं बाकी जिंदगी भी बेरंग होती है

फाग़ के दिनों में राजेन्द्र सिंह बेदी की फिल्म ‘फागुन’ याद आती है। फागुन, गोपाल(धर्मेन्द्र) एवं शांता दामले(वहीदा रहमान) के पति-पत्नी के मार्मिक रिश्ते की कहानी हैं। बेमेल शादी के पहलुओं से परिचित कराती यह कथा प्रेम में बंध कर भी तृष्णा की विडम्बना को दर्शाती है। प्यार अंधा होता है। वो किसी बंधन-अवरोध को नहीं जानता। धनवान शांता निर्धन गोपाल से प्रेम करती है, परिवार की इच्छा के खिलाफ दोनों शादी कर लेते हैं। विवाह बाद गोपाल पत्नी को छोड़ शहर चला जाता है। दिनों बाद होली के त्योहार पर घर पर लौटा है, रंगों की दुनिया में अपना कोई रंग तलाशने। पत्नी से रंग खेलने की हट में होली के रंग उस पर डाल कर नाराज़ कर देता है। रंगों के त्योहार में कपड़ा खराब हो जाने का ख्याल बहुत कम रहता है। इस डर में खेली होली बेरंग सीमाओं को तोड़ नहीं पाती। कीमती साड़ी खराब होने पर शांता काफी नाराज़ है, वह गोपाल को दो टूक कहती है ‘जब आप कीमती साड़ी खरीद नहीं सकते, फ़िर इसे खराब करने का अधिकार भी नहीं होता’। शांता के व्यवहार से पीड़ित ‘गोपाल’ तिरस्कार का बोध लिए घर छोड़ देता है। पर वह यह नहीं समझ पाया कि शांता ने उसका अपमान क्यूं किया होगा, पत्नी के खराब व्यवहार की वजह जाने बिना वो चला गया। दरअसल बेटी की बेमेल शादी से दुखी माता-पिता को खुश करने के लिए शांता ने यह नाटक किया था। लेकिन इस कोशिश में पति खफा हो गया। कपड़ा भले ही बहुत कीमती रहा हो लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते से कीमती नहीं था। वो अपने प्रेम पर कायम रह सकती थी…उससे एक गलत निर्णय की भूल हो चुकी है।

फाग़ के दिनों में राजेन्द्र सिंह बेदी की फिल्म ‘फागुन’ याद आती है। फागुन, गोपाल(धर्मेन्द्र) एवं शांता दामले(वहीदा रहमान) के पति-पत्नी के मार्मिक रिश्ते की कहानी हैं। बेमेल शादी के पहलुओं से परिचित कराती यह कथा प्रेम में बंध कर भी तृष्णा की विडम्बना को दर्शाती है। प्यार अंधा होता है। वो किसी बंधन-अवरोध को नहीं जानता। धनवान शांता निर्धन गोपाल से प्रेम करती है, परिवार की इच्छा के खिलाफ दोनों शादी कर लेते हैं। विवाह बाद गोपाल पत्नी को छोड़ शहर चला जाता है। दिनों बाद होली के त्योहार पर घर पर लौटा है, रंगों की दुनिया में अपना कोई रंग तलाशने। पत्नी से रंग खेलने की हट में होली के रंग उस पर डाल कर नाराज़ कर देता है। रंगों के त्योहार में कपड़ा खराब हो जाने का ख्याल बहुत कम रहता है। इस डर में खेली होली बेरंग सीमाओं को तोड़ नहीं पाती। कीमती साड़ी खराब होने पर शांता काफी नाराज़ है, वह गोपाल को दो टूक कहती है ‘जब आप कीमती साड़ी खरीद नहीं सकते, फ़िर इसे खराब करने का अधिकार भी नहीं होता’। शांता के व्यवहार से पीड़ित ‘गोपाल’ तिरस्कार का बोध लिए घर छोड़ देता है। पर वह यह नहीं समझ पाया कि शांता ने उसका अपमान क्यूं किया होगा, पत्नी के खराब व्यवहार की वजह जाने बिना वो चला गया। दरअसल बेटी की बेमेल शादी से दुखी माता-पिता को खुश करने के लिए शांता ने यह नाटक किया था। लेकिन इस कोशिश में पति खफा हो गया। कपड़ा भले ही बहुत कीमती रहा हो लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते से कीमती नहीं था। वो अपने प्रेम पर कायम रह सकती थी…उससे एक गलत निर्णय की भूल हो चुकी है।

 
फागुन महीना जिसमें ‘होली’ का त्योहार आता है, वही फाग़ शांता-गोपाल की ज़िंदगी से ‘रंग’ जाने की त्रासद पीड़ा है। सालों बाद भी शांता खराब व्यवहार के दंश से पीड़ित अकेला-बेरंग जीवन जी रही है। बिटिया दामद उसकी जिंदगी के साथ एडजस्ट करने की कोशिश नहीं करना चाहते, ऐसे में उस असहाय की जिंदगी में बदलाव मुश्किल नजर आता है। होली जो कि जीवन में ‘रंग’ का प्रतीक है, शांता के लिए बेरंग विडम्बना की निशानी बन चुका है। उसे स्मरण है कि बरसों पहले आज ही के दिन गोपाल नाराज़ होकर चला गया था। कीमती साड़ी पर ‘रंग’ डालने के लिए उसने जो पति का तिरस्कार किया था, जब भी होली आई उस दिन के साथ आई। जीवन को पलट देने वाले काले दिन की याद बरकरार रही। कह सकते हैं कि होली का रंग शांता को काफी तकलीफ देता था। फाग़ ने उससे  बैर कर रखा था। जीवन की उमंगों से महरूम होकर जीना एक तपस्या समान होता है। पति के चले जाने बाद वह एकांत व असहाय सी हो गई, उसके जीवन का स्वरूप मझधार में जी रहा जीवन था। शांता के अकेलेपन को बिटिया-दामद भी नहीं बांटना चाहते। जीवन की संध्या बेला पर वह किसी सहारे की जरूरत महसूस करती है, कोई होता जिसको हम अपना कह लेते। भाव में शांता को पति की कमी खटकती रही। फागुन का रंग जिंदगी को अपराधबोध में जीने को छोड़ गया था।
 
जीवन की संध्या बेला में गोपाल अपने परिवार के पास लौट आता है। शांता की कहानी से हम समझ पाते हैं कि किसी अपने के बिना ‘होली’ ही नहीं बाक़ी जिंदगी भी निःस्वाद हो सकती है। कहानी में फागुन व होली को बैकग्राउंड थीम रखा गया। होली पर्व पर घटी एक साधारण घटना कथा को विस्तार देती है। जीवन में परस्पर निर्भरता स्वाभाविक बात है। कह सकते हैं कि जिंदगी अकेली गुजारी नहीं जा सकती। सारा जीवन अकेले होकर भी व्यक्ति किसी सफर का हमसफर हो सके तो जीना बेमानी नहीं लगता। शांता की कहानी से हमें संदेश मिला कि फाग़ हरेक की जिंदगी में रंगों का सुखद स्वरूप लेकर नहीं आता। बेरंग जिंदगी की टीस होली के समय सबसे ज्यादा होती है।
 
होली के त्योहार में रंगों की प्रतिक्षा सबसे अधिक होती है। उस दिन के बाद शांता को हर फाग़ में गोपाल का इंतजार रहा, लेकिन वो बरसों तक लौट कर नहीं आया। गोपाल के नजरिए से इस कहानी को देखें तो उसे भी खुशी नहीं मिली। तिरस्कार का बोध लिए वो जीवन के आनंद से दूर रहा। पत्नी का खराब व्यवहार उसे सहन ना हो सका, क्या वो पीड़ा इस क़दर गंभीर रही कि बरसों दिल में थी? गोपाल के लिए वो शायद गंभीर थी। पति-पत्नी की पीड़ा में समानता, पीड़ा की वजह में देखी जा सकती है। दुख का धागा दो अलग जिंदगियों को एकाकार कर रहा था। कहानी के प्रकाश में शांता का हिस्सा ज्यादा त्रासद रुप में व्यक्त हुआ है। साहित्य से सिनेमा में आए राजेद्र सिंह बेदी जीवन की एक विडम्बना को तलाश कर लाए थे। फाग के साए में पल रही लेकिन रंग की प्रतिक्षा में बुनी एक कहानी। होली के रंग में बाक़ी जीवन निःस्वाद जीने की विवशता वयां करती एक कहानी। फागुन की बेला जिंदगी में रंग लेकर आती है। शांता-गोपाल के सिलसिले में ऐसा हो ना पाया। होली हरेक की जीवन में खुशियों के रंग लेकर नहीं आती। फागुन का हर रंग खुद में एक दुनिया समेटे हुआ करता है। कहानी के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि जिंदगी रंगों के बिना मुकम्मल नहीं है।

 

लेखक सैयद एस. तौहीद से संपर्क [email protected] पर किया जा सकता है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement