Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

We are not virgin and we feel proud to not to be

Manisha Pandey : कल्पना कीजिए, आज से 50-100 साल बाद इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में हिंदुस्तानी समाज में महिलाओं की स्थिति का इतिहास लिखा जा रहा है और जानकारी के स्रोत के तौर पर फेसबुक अपडेट्स और कमेंट्स उपलब्ध हैं। तो इतिहासकार सौ साल बाद आज के समय के बारे में क्या लिखेंगे…

Manisha Pandey : कल्पना कीजिए, आज से 50-100 साल बाद इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में हिंदुस्तानी समाज में महिलाओं की स्थिति का इतिहास लिखा जा रहा है और जानकारी के स्रोत के तौर पर फेसबुक अपडेट्स और कमेंट्स उपलब्ध हैं। तो इतिहासकार सौ साल बाद आज के समय के बारे में क्या लिखेंगे…

1- जब विकसित समाजों में नारीवादी आंदोलन, चिंतन और विचार एक उम्र जी चुका था, तब तक हिंदुस्तान में महिलाओं को महज इतना कहने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी कि वर्जिनिटी उनके लिए एक पुरानी, पिछड़ी, सामंती और मर्दवादी अवधारणा है और स्त्रियां उसे रिजेक्टस करना चाहती हैं।

2- बहुसंख्यक हिंदुस्तान 21वीं सदी में भी काफी सामंती, रूढि़वादी और पुरातनपंथी था क्योंकि कुछ महिलाओं के 19वीं सदी में फ्रांस की महिलाओं द्वारा जारी Manifesto of the 343 Sluts की तर्ज पर ये घोषणा करने पर कि "We are not virgin and we feel proud to not to be" 21वीं सदी के अधिकांश पुरुषों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। लोग 21वीं सदी में भी रामायण, राम-सीता और प्राचीन धर्मग्रंथों के उदाहरण दिया करते थे।

3- हिंदुस्तान 21वीं सदी में भी काफी जातिवादी और जातीय श्रेष्ठता के अहंकार में जीने वाला मुल्क था, क्योंकि वर्जिनिटी को नकारने वाली लड़कियों के ऊंची जाति से ताल्लुक रखने की स्थिति में उन्हें जबर्दस्त‍ उलाहना दी जाती थी। हालांकि जाति में विश्‍वास न करने के मामले में उन स्‍त्रीवादियों का स्‍टैंड बिलकुल साफ था।

4- 21वीं सदी के हिंदुस्‍तान में सिनेमा में लड़कियां काफी कम कपड़े पहनती थीं, स्‍वीमिंग पूल में डांस करती थीं, लेकिन वर्जिनिटी को तब भी बचाकर ही रखती थीं।

5- वर्जिनिटी का संबंध और महत्‍व सिर्फ स्त्रियों से ही जुड़ा था क्‍योंकि मर्दों के अरमान पूरे करने के लिए सस्‍ते चकलाघरों से लेकर महंगी कॉल गर्ल्‍स तक सब बहुतायत में उपलब्‍ध थे और उस पर किसी को कोई नैतिक आपत्ति भी नहीं थी। इन्‍हें खत्‍म करने के लिए उस दौर में हुए किसी आंदोलन का कोई संकेत फेसबुक पर नहीं मिलता।

6- लेकिन अच्‍छे, शरीफ घरों की लड़कियों के वर्जिन न होने का दावा करने पर इसे नंगापन और बेशर्मी कहकर पुरुष फेसबुक पर बवाल मचाने लगते थे।

7- मार्क जुकेरबर्ग का यह प्‍लेटफॉर्म 21वीं सदी में स्‍त्री मुक्ति के विचारों को फैलाने के लिए एक बड़े प्‍लेटफॉर्म के रूप में उभरा।

इंडिया टुडे की फीचर एडिटर मनीषा पांडेय के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement