भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी भी मोबाइल या इंटरनेट नेटवर्क तक पहुंच नहीं बनाई जा सकती
Soumitra Roy : फेसबुक ने कैलिफोर्निया की कोर्ट में कुछ अहम दस्तावेज पेश किए हैं। इनसे पता चलता है कि पेगासस स्पाईवेयर बनाने वाली इजरायल की एनएसओ ग्रुप ने घाना की नेशनल कम्युनिकेशन अथॉरिटी के साथ बकायदा समझौता किया था, जिसमें इजरायली रक्षा मंत्रालय की लिखित अनुमति के बाद ही स्पाइवेयर के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है।
आपको यह जानना जरूरी है कि एनएसओ ग्रुप ने पहले ही यह मान लिया है कि उसने पेगासस को सरकारों को बेचा है, न कि किसी व्यक्ति या कंपनी को। भारत के कानून मंत्रालय ने अभी तक पेगासस के देश के 41 वकील, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी के लिए इस्तेमाल करने की बात से न तो इनकार किया है और न ही इसको स्वीकार किया है। मंत्रालय का कहना है कि सरकार किसी की भी जासूसी के लिए एक तयशुदा प्रोटोकॉल का उपयोग करती है।
व्हाट्सएप की मालिक कंपनी फेसबुक ने कैलिफोर्निया की कोर्ट में पेश दलील में कहा है कि पेगासस को इस्तेमाल करने के लिए पहले 4 हफ्ते के ट्रायल की जरूरत होती है। इसके लिए संबंधित देश के मोबाइल और इंटरनेट नेटवर्क तक पहुंच होनी चाहिए। यह पहुंच बिना सरकारी मदद या उसकी अनुमति के नहीं हो सकती। एक बार अनुमति मिलने के बाद पेगासस स्पाईवेयर अपने शिकार के मोबाइल में घुसकर सबसे पहले माइक्रोफोन, फिर कैमरा और फिर जीपीएस ट्रैकर को कब्जे में लेता है। इससे शिकार का हर कॉल, बातचीत की आवाज, लोकेशन और कैमरे से खींची गई तस्वीर जासूसी करने वाली एजेंसी के कब्जे में आ जाती है। यह बता दें कि भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी भी मोबाइल या इंटरनेट नेटवर्क तक पहुंच नहीं बनाई जा सकती।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के अनुसार इस तरह का स्पाईवेयर केवल सरकार ही उपयोग कर सकती है, यह अवैधानिक है। लोगों के निजता के हक का उल्लंघन है।
घाना के मामले में हुआ यह कि एनएसओ ग्रुप की स्थानीय इकाई इन्फ्रालॉक्स डेवलपमेंट लि. ने घाना की नेशनल कम्युनिकेशन अथॉरिटी को पेगासस सॉफ्टवेयर 8 मिलियन डॉलर में बेचने का एक समझौता किया। यह समझौता 2015 में हुआ था।
समझौते के तहत घाना की नेशनल कम्युनिकेशन अथॉरिटी ने इजरायल के रक्षा मंत्रालय को अनुमति का प्रमाण पत्र दिया। बदले में एनएसओ ने घाना को किसी भी तरह का लाइसेंस, सर्विस एग्रीमेंट या अप्रूवल नहीं दिया। एनएसओ ने खुद इस बात को मानते हुए कैलिफोर्निया की कोर्ट में कहा है कि उसने पेगासस को यूज करने के लिए दो हफ्ते की ट्रेनिंग भी उपलब्ध कराई थी। बदले में घाना ने उसकी स्थानीय कंपनी को 1000 वर्गफीट का सर्वर रूम, ऑफिस, एक पोस्टपेड सिम (जिसका कोई पता न लगा सके) उपलब्ध कराया था। साथ में 4000$ बैलेंस वाला एक क्रेडिट कार्ड भी दिया गया।
फेसबुक ने एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर की यूजर गाइड भी कोर्ट में पेश की है। इसमें कहा गया है कि पेगासस का इंस्टालेशन, टेस्टिंग और यूज का टाइम 15 हफ्तों का है। इसका साफ मतलब है कि एनएसओ के टेक्नीशियनों ने एक लंबा समय भारत में मोबाइल नेटवर्क को समझने में लगाया होगा। इस जासूसी की शिकार शालिनी गेरा कहती हैं कि यह जानना बेहद डरावना है कि मेरा फोन इतना असुरक्षित है कि वे मेरा माइक्रोफोन और कैमरा अपनी मर्जी से यूज कर सकते हैं। गेरा छत्तीसगढ़ में पीयूसीएल की सचिव हैं।
अब आप जरा सोचिए, शालिनी गेरा में भला इजरायल को क्यों दिलचस्पी होगी? उनकी जासूसी किसके कहने पर की गई? उनकी जासूसी से किसे फायदा होगा ?
आप जिन्हें नक्सल कहते हैं, अर्बन नक्सल कहकर अपमानित करते हैं, वामपंथी, सिक्यूलर, वामी, खांग्रेसी न जाने किन नामों से फेसबुक में सरेआम जलील करते हैं, असल में वही तो सच को सामने ला रहे हैं। मोदी सरकार को इनसे खतरा है, क्योंकि ये देश को बांटने, मजहबी, फिरकापरस्त नहीं बनाने देना चाहते। आपके ये कथित अर्बन नक्सल्स सिर्फ इतना चाहते हैं कि हम सभी मिल-जुलकर रहें। कोई जात, मजहब, पंथ की बात न करे। किसी के दिल में जहर न हो। सब प्रेम, सद्भाव, समानता की बात करें।
मोदी सरकार यही तो नहीं चाहती।
युवा और जन सरोकारी पत्रकार सौमित्र राय की एफबी वॉल से.