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मेरी सामाजिक चेतना का एक बड़ा हिस्सा सदैव राम बहादुर राय का अनुगत रहता है : ओम प्रकाश सिंह

Om Prakash Singh : धन्यवाद संजय जी, पत्रकारिता के उस दौर में हम दोनों ही कई बार भूखे रहते थे। दूसरे भी साथी। मैंने बहुत पत्रकारिता की, अनेक लोगों के साथ काम किया लेकिन भारत स्वराष्ट्र के दौर में जो साथी मिले, वैसे मिले, लेकिन बहुत कम मिले। आप, विकास, तरुण पाठक, जय शंकर तिवारी, अजय पांडे, जेठा जी भूले नहीं भूलते। और भी तकरीबन दर्जन भर साथी। भाई मोहन सिंह जी भी। मेरे अग्रज सुदीप जी भी । मुनीर अहमद मोमिन साहब से तो जस की तस मित्रता आज भी बनी हुई है. कभी बताया नहीं , उस दौरान टी बी से बहुत बुरी तरह जकड उठा था मैं। उसकी गाँठ दाहिने हाथ में कंधे के नीचे अभी भी बनी हुई है।

<p>Om Prakash Singh : धन्यवाद संजय जी, पत्रकारिता के उस दौर में हम दोनों ही कई बार भूखे रहते थे। दूसरे भी साथी। मैंने बहुत पत्रकारिता की, अनेक लोगों के साथ काम किया लेकिन भारत स्वराष्ट्र के दौर में जो साथी मिले, वैसे मिले, लेकिन बहुत कम मिले। आप, विकास, तरुण पाठक, जय शंकर तिवारी, अजय पांडे, जेठा जी भूले नहीं भूलते। और भी तकरीबन दर्जन भर साथी। भाई मोहन सिंह जी भी। मेरे अग्रज सुदीप जी भी । मुनीर अहमद मोमिन साहब से तो जस की तस मित्रता आज भी बनी हुई है. कभी बताया नहीं , उस दौरान टी बी से बहुत बुरी तरह जकड उठा था मैं। उसकी गाँठ दाहिने हाथ में कंधे के नीचे अभी भी बनी हुई है।</p>

Om Prakash Singh : धन्यवाद संजय जी, पत्रकारिता के उस दौर में हम दोनों ही कई बार भूखे रहते थे। दूसरे भी साथी। मैंने बहुत पत्रकारिता की, अनेक लोगों के साथ काम किया लेकिन भारत स्वराष्ट्र के दौर में जो साथी मिले, वैसे मिले, लेकिन बहुत कम मिले। आप, विकास, तरुण पाठक, जय शंकर तिवारी, अजय पांडे, जेठा जी भूले नहीं भूलते। और भी तकरीबन दर्जन भर साथी। भाई मोहन सिंह जी भी। मेरे अग्रज सुदीप जी भी । मुनीर अहमद मोमिन साहब से तो जस की तस मित्रता आज भी बनी हुई है. कभी बताया नहीं , उस दौरान टी बी से बहुत बुरी तरह जकड उठा था मैं। उसकी गाँठ दाहिने हाथ में कंधे के नीचे अभी भी बनी हुई है।

इस बीमारी का इलाज पार्लियामेंट के अस्पताल में हुआ जब मैं श्री लाल मुनी चौबे के यहां रह रहा था। और पार्ट टाइम तौर पर माया पत्रिका को फिर से जीवित करने की कोशिश कर रहा था। भास्कर में रहा, जागरण में रहा, नई दुनिया में रहा—और कोई भी तोहमत लगी होगी , लेकिन बेईमानी की तोहमत कभी नहीं लगी। भारत स्वराष्ट्र के दौर में तो एक बार तो हाई कोर्ट में भी मानहानि का मुक़दमा करनेवाले ने यह देख कर मुक़दमा वापस ले लिया कि जिस संपादक के पास वकील रखने का भी पैसा नहीं है ,वह किसी गलत उद्देश्य से कोई स्टोरी नहीं कर सकता।

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गुरु तो मुझे कोई मिला भी नहीं संजय जी। न किसी को शिष्य बनाने की अपने भीतर कोई योग्यता ही पायी । भारती जी और प्रभाष जी के बेटे जैसा रहा। गौरव है कि श्री सुधीर अग्रवाल के साथ काम किया। जागरण में राजीव मोहन गुप्त जैसे अति विनम्र और अति सजग संपादक के साथ जुड़ा। नई दुनिया में फिर अभय छजलानी जी ने बिलकुल बेटे जैसा ही स्नेह दिया। उनके घर कभी कोई विशेष व्यंजन बना हो, तो संपादक को जरूर ही परसा गया। नई दुनिया छोड़ कर आया तो विनय छजलानी जी ने आग्रह किया कि जब तक नई नौकरी न ज्वाइन करूं, नई दुनिया से वेतन लेता रहूँ। राज एक्सप्रेस में भी रहा। पीपुल्स समाचार में भी। कहीं कोई बुरे अनुभव भी रहे तो अनेक अच्छे अनुभव भी हैं। अब तो शोध कर रहा हूँ सो मामला ही अलग है। लेकिन पत्रकारिता की अपनी इस लम्बी यात्रा में संजय जी, इतने बेहतरीन पत्रकार साथियों के साथ काम करने का मौका मिला है कि उल्लेख करने लगूँ तो संख्या ५०० में तो जाएगी ही। इसलिए पत्रकारिता की पवित्रता पर मुझे कभी कोई संदेह नहीं होता।

आप जानते हैं , पत्रकारिता की पवित्रता को लेकर मेरी स्थिति कभी ढुलमुल नहीं रही। मीडिया में लाये जा रहे राजनीतिक दखल और प्रदूषण के खिलाफ हम लोगों ने राष्ट्रीय अभियान भी किये। इससे बड़ी बात क्या हो सकती थी कि इस अभियान में प्रभाष जी जैसे शीर्षस्थ पत्रकारों की भागीदारी थी। कोई अभियान नहीं शुरू कर रहा। रिसर्च का काम पूरा होने को आ रहा है। तो कहें तो भारत स्वराष्ट्र फिर शुरू किया जाए । आप याद कर चकित होंगे कि मुंबई के एक बड़े आपराधिक मामले में सारे गवाह पलट गए हैं , केवल भारत स्वराष्ट्र है जो अदालत में मज़लूम के साथ खड़ा हुआ है। और मुक़दमा केवल इसी वजह से डिसमिस नहीं हुआ है।

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सामान्य तौर पर आपसे इस पोस्ट को हटाने का आग्रह करता। व्यक्तिगत चर्चा कभी चाहता भी नहीं। लेकिन एक लालच ने इस टिप्पणी को लिखने को मज़बूर कर दिया। यदि संभव हो तो अपने कहे और मेरे जवाब को आप एक बार श्री राम बहादुर राय जी को जरूर पढवा देंगे। उन्हें अच्छा लगेगा। मेरी सामाजिक चेतना का एक बड़ा हिस्सा सदैव उनका अनुगत रहता है। धन्यवाद।

वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश सिंह के फेसबुक वॉल से.

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मूल पोस्ट..

पत्रकारिता की दुनिया में मेरा प्रवेश ओमप्रकाश जी के जरिए हुआ

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0 Comments

  1. कामता प्रसाद

    July 16, 2014 at 8:02 pm

    इन्हें अधिकतर लोग ओमजी के नाम से जानते हैं और विनम्र इतने कि खीझ पैदा होती है।

    मेरे गांव में एक बाबू साहब हैं, मेडिकल स्टोर है। लगभग हर आने वाले सवर्ण को चाय पिलाते हैं। अगर ब्राह्मण या राजपूत हुआ और उम्र में बड़ा है तो अवश्य ही चरण स्पर्श करेंगे। उनका धंधा चौचक चलता है।

    विनम्र आदमी डेमोक्रेटिक हो, बेहद टची न हो यह जरूरी नहीं, अंदर बाबू साहबी बैठी भी रह सकती है।

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