Siddhant Mohan : बीते अप्रैल में हुए ‘संकटमोचन संगीत समारोह’ के लिए मैंने आउटलुक पत्रिका के चन्द्र प्रकाश, फिर बाद में आकांक्षा पारे के कहने पर समारोह पर एक लेख लिखा था और ग़ुलाम अली खान साहब का इंटरव्यू भी किया था. बीच में कई दफा एकाउंट नंबर पूछने, नाम की स्पेलिंग कन्फर्म करने के लिए फोन आए. कुछेक बार एचआर डिपार्टमेंट से, कुछेक बार आकांक्षा जी से. कई बार एसएमएस से डीटेल भी मांगे गए. अप्रैल में किए इस काम के जवाब में मुझे कल यानी 20 मई को(छः महीने से भी ज्यादा वक़्त बाद) चेक मिला. 720 रूपए का. नाम की स्पेलिंग गलत.
Outlook Hindi को पूरे सम्मान के साथ यह चेक एक पत्र के साथ वापिस कर रहा हूं. हिंदी पत्रकारिता और पत्रकारों को एक खास ओछी नज़र के साथ देखने का चलन है. हिंदी की गरीबी में यह क्षम्य है, लेकिन Outlook जैसा बड़ा मीडिया हाउस – जिसके पास अंग्रेज़ी की बैकिंग है – यदि ऐसा करता है तो यह अपराध है. पाकिस्तान बात करने, बनारस जैसे शहर में ग़ुलाम अली खान को ट्रेस करने में लगने वाले श्रम, पेट्रोल, पैसे और वक़्त व लेखकीय श्रम का अपमान है. मुझे पैसे की फिक्र नहीं है, पैसे हैं मेरे पास. एक सम्मानजनक नौकरी भी है. लेकिन श्रम का अपमान मैं नहीं सहूंगा. भले ही कोई और सहकर इसे अपने खाते में लगा लेता हो.
कई हिंदी लेखकों को जानता हूं जो लिखते रहने के लिए फ्रीलांसिंग पत्रकारिता करते रहते हैं, कुछ तो घरवालों को यह भी दिखाते रहने के लिए कि ‘देखिए! इस काम से भी कमाया जा सकता है.’ यह उनका अपमान है साहब. अन्य फ्रीलांसर सहमत नहीं होंगे लेकिन यह मूलरूप में बड़ी गाड़ियों में घूमने वाले कुछ संपादकों द्वारा पत्रकारिता की भौतिकता का बड़ा अपमान है. जब भी मैं किसी नए के लिए काम करता हूं तो बनारसी तरीकों से तस्दीक करता हूं कि वह काम करने लायक है भी या नहीं. Outlook Hindi, you failed in this assessment.
बीएचयू से पढ़े लिखे पत्रकार सिद्धांत मोहन, जो इन दिनों टू सर्किल्स डॉट नेट के संपादक हैं, के फेसबुक वॉल से.