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सहारा के लिए गरम और पीएसीएल के प्रति नरम क्यों है सेबी?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामला वापस भेज देने के बाद बाज़ार विनियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने पीएसीएल कंपनी की योजनाओं की पूरी जांच-पड़ताल की. नतीजा ये निकाला कि ये कंपनी कई पोन्ज़ी योजनाएं चला रही है। सेबी ने कंपनी को 5 करोड़ 85 लाख निवेशकों से खुले तौर पर भूमि आवंटन के नाम पर जमा किए गए 49,100 करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया है। तकरीबन 4 करोड़ 63 लाख निवेशकों को अभी भूमि आवंटित की जानी शेष है, और सेबी ने 500 निवेशकों के एक नमूने में पाया कि उनमें से किसी को कभी भी कोई भूमि आवंटित नहीं की गयी। इससे सेबी का ये मत पुष्ट हुआ कि भूमि-आवंटन इस पूरे मामले में धन-शोधन गतिविधियों पर पर्दा डालने के लिए एक छलावा मात्र है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामला वापस भेज देने के बाद बाज़ार विनियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने पीएसीएल कंपनी की योजनाओं की पूरी जांच-पड़ताल की. नतीजा ये निकाला कि ये कंपनी कई पोन्ज़ी योजनाएं चला रही है। सेबी ने कंपनी को 5 करोड़ 85 लाख निवेशकों से खुले तौर पर भूमि आवंटन के नाम पर जमा किए गए 49,100 करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया है। तकरीबन 4 करोड़ 63 लाख निवेशकों को अभी भूमि आवंटित की जानी शेष है, और सेबी ने 500 निवेशकों के एक नमूने में पाया कि उनमें से किसी को कभी भी कोई भूमि आवंटित नहीं की गयी। इससे सेबी का ये मत पुष्ट हुआ कि भूमि-आवंटन इस पूरे मामले में धन-शोधन गतिविधियों पर पर्दा डालने के लिए एक छलावा मात्र है।

यह कि कंपनी के पास 5 करोड़ 85 लाख निवेशक हैं, जो कि अद्यतन 2 करोड़ 2 लाख डीमैट खातोदारों की संख्या के दोगुने से भी ज्यादा है, दिखाता है कि पीएसीएल घोटाला सहारा को भी फीका कर सकता है। पीएसीएल के लिए ये एक और उपलब्धि है कि निवेश जुटाने में उसने सहारा को बुरी तरह पीछे छोड़ दिया है। सहारा ने करीब 24,000 करोड़ जुटाए हैं। इस पर भी सेबी ने पीएसीएल पर नरमी बरती है। सेबी ने कंपनी से, निवेशित धन को उसे सौंप देने को नहीं कहा है ताकि वो धन को केवाईसी मानकों के आधार पर जांच कर उसके सही मालिकों को लौटा सके। सेबी ने सहारा के विरुद्ध कड़ा रुख़ अपना कर खूब वाहवाही लूटी थी। सहारा अपनी करनी का फल भुगते इसलिए सेबी ने सहारा से निवेशकों का धन उसको सौंपने के लिए कहा, ये जितना भी शरारतपूर्ण हो लेकिन सही कदम था और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका समर्थन किया।

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बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को, कई सम्मनो के बाद भी कोर्ट में हाज़िर न होने और सेबी को पूरा धन लौटाने में असमर्थ रहने पर, गिरफ्तार कर लिया। सेबी और उच्चतम न्यायालय एक योजना के तहत काम कर रहे हैं, जहां तक सहारा का संबंध है ये उसके निवेश के व्यवसाय के लिए एक चुनौती है। दोनों को शंका है कि सहारा असल में एक धन-शोधन फर्म है और उसके निवेशक बेनामी हैं। ये अच्छा है कि दोनो ने हाथ आए मौके को पकड़ लिया और बेनामी के इस धंधे पर कार्यवाही की क्योंकि सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई भी सार्थक पहल नहीं की गयी।

बेनामी संव्यवहार (प्रतिषेध) अधिनियम, 1988 एक अप्रचलित कानून बन कर रह गया है। कहीं खुद का ही अहित न हो जाए इस डर से विभिन्न सरकारों ने बेनामी संपत्ती के अधिहरण(जब्ती) के लिए, अधिनियम के प्रावधानो के तहत प्राधिकरण का गठन नहीं किया। लेकिन उम्मीद है कि वर्तमान एनडीए सरकार, जिस पर किसी गठबंधन के सदस्यों का दवाब नहीं है, अधिनियम को अमली जामा पहनाएगी ताकि सुप्रीम कोर्ट और सेबी को अपरंपरागत, लेकिन असरकारक, तरीकों का सहारा न लेना पड़े। सेबी पीएसीएल से 49,100 करोड़ रुपए उसको सौंप देने के लिए कह सकती थी। पीएसीएल से स्वयं निवेशकों को रकम लौटाने और लौटाए गए धन का विवरण देने को कहना पर्याप्त नहीं है। इसी प्रकार की छूट सहारा के चतुर मुखिया सुब्रत रॉय भी मांग रहे थे। सेबी ने उनको ये छूट देने से इंकार कर दिया। सेबी को शक था अगर ज़रा भी छूट दी तो सुब्रत रॉय उसका फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेंगे, इसलिए सेबी इस बात पर अड़ा रहा कि वो असली निवेशकों को स्वयं ढूंढेगा।

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आश्चर्य होता है कि सेबी ने ऐसा पीएसीएल के साथ क्यों नहीं किया। सेबी के अधिकारी केवाईसी प्रमानो के हिसाब से सहारा का एक भी निवेशक नहीं ढूंढ पाए, इससे इस मत को बल मिला कि अधिकतर निवेशक बेनामी है या नाम ही फर्जी हैं। अगर सेबी ने सख्त कदम उठाए होते पीएसीएल का भी सहारा जैसा ही हाल होता। ये काफी नही कि पीएसीएल से विनम्रतापूर्वक निवेशकों का जमा-धन लौटाने को कहा जाए और उसे बाज़ार से धन इकट्ठा करने से रोक दिया जाए। धोखेबाज़ो के लिए बचने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़नी चाहिए।

काले धन की घातक भूमिका को खत्म करने के लिए, भुगतान सरकारी अधिकारियों के द्वारा ही किया जाना चाहिए, इसलिए आयकर कानून के तहत घोषित पूर्वक्रय योजना(प्रीएम्पटिव पर्चेजेज़ स्कीम) को जानकारों ने सराहा था। इस योजना की ख़ासियत ये थी कि आयकर विभाग मूलतः काले धन से प्रायोजित किसी भी संदिग्ध संपत्ती की खरीद कर लेता था। नतीजा ये होता था कि विक्रेता को सारा धन सफेद में मिलता था और उसकी खरीद करने वोले को नुकसान उठाना पड़ता था। सहारा मामले में सेबी की भूमिका कुछ ऐसी ही है, दुर्भाग्यपूर्ण रूप से उक्त स्कीम को 2002 में बंद कर दिया गया था।

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मुंबई से दीपक कुमार की रिपोर्ट.

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0 Comments

  1. Raj S

    August 29, 2014 at 2:33 pm

    Deepak Ji

    Sahara ko paise lautane ka order supreme court ne diya that SEBI ne nahi. SEBI ne to usko khud hi pise luatane ke liye bola tha. Plz see SEBI order dated 23/06/2011 and SAT order dated 18/10/2011.

  2. Raj S

    August 29, 2014 at 2:40 pm

    I means Supreme court asked sahara to pay money to SEBI. SEBI ordered sahara to pay by itself. plz see SEBI order to sahara dated 23/06/2011 and SAT order on sahara dated 18/10/2011.

  3. प्रहलाद

    June 21, 2015 at 3:18 pm

    मे एक पीएसीएल ग्राहक हूं क्या कम्पनी मुझे मेरे 50000 रुपये लोटाएगी या हम ग्राहकों को रुलाएगी 2013अगस्त का पेमेन्ट कब तक हो पाएगा

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