Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पर्दे पर ‘पद्मावत’ ; सड़क पर उपद्रव : लम्बे समय से रुकी मेरी क़लम आज ख़ुद को रोक न सकी…

एक पत्रकार के तौर पर लम्बे समय से रुकी मेरी क़लम आज ख़ुद को रोक न सकी। समय की व्यस्तता और एकाग्रता की कमी के कारण मेरी क़लम पर जो लगाम लगा हुआ था, आज वह सारी बंदिशें तोड़ कर कुछ बोलना चाहती है। वह कहना चाहती है की बस अब बहुत हो चुका, कृपा कर अब तो थोड़े संवेदनशील हो जाओ, थोड़ा तो ख्याल करो अपने देश की परंपरा, संस्कृति एवं अभिव्यक्ति की मिली हुई आज़ादी का।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p>एक पत्रकार के तौर पर लम्बे समय से रुकी मेरी क़लम आज ख़ुद को रोक न सकी। समय की व्यस्तता और एकाग्रता की कमी के कारण मेरी क़लम पर जो लगाम लगा हुआ था, आज वह सारी बंदिशें तोड़ कर कुछ बोलना चाहती है। वह कहना चाहती है की बस अब बहुत हो चुका, कृपा कर अब तो थोड़े संवेदनशील हो जाओ, थोड़ा तो ख्याल करो अपने देश की परंपरा, संस्कृति एवं अभिव्यक्ति की मिली हुई आज़ादी का।</p>

एक पत्रकार के तौर पर लम्बे समय से रुकी मेरी क़लम आज ख़ुद को रोक न सकी। समय की व्यस्तता और एकाग्रता की कमी के कारण मेरी क़लम पर जो लगाम लगा हुआ था, आज वह सारी बंदिशें तोड़ कर कुछ बोलना चाहती है। वह कहना चाहती है की बस अब बहुत हो चुका, कृपा कर अब तो थोड़े संवेदनशील हो जाओ, थोड़ा तो ख्याल करो अपने देश की परंपरा, संस्कृति एवं अभिव्यक्ति की मिली हुई आज़ादी का।

जी हाँ, कल एक स्कूली बस में बैठे रोते- बिलखते नन्हे मासूमों की चीखें जब मेरे कानो तक पहुंची और वो भयावह डर जो उनके चेहरों पर दिखा, तो मेरी क़लम कुछ बोलने को पूरी तरह व्याकुल हो उठी। वह कहना चाहती है, की अपनी संवेदना प्रकट करो, पर संयम से, विरोध करो- पर एक सीमा के अंदर, अगर एक चित्रण से किसी की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है, तो बड़े बड़े पथ्थरों की चोट से क्या किसी मासूम के शरीर को घाव नहीं हो सकता ? क्या आपकी भावनाओ का आहत होना, इन मासूम बच्चों के शरीर के घाव से भी ज़्यादा गहरा है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

हरियाणा के गुरुग्राम के जीडी गोयनका वर्ल्ड स्कूल की बस पर उपद्रवी प्रदर्शनकारियों ने हमला करके बस को घेर लिया। प्रदर्शनकारियों ने ड्राइवर से बस रोकने को कहा। जब ड्राइवर ने बस नहीं रोकी तो उस पर पथराव किया गया। बस स्टाफ ने बच्चों को हमले से बचने के लिए सीटों के पीछे छिपने को कहा। ड्राइवर ने बच्चों की सेफ्टी को देखते हुए अपनी सूझ बुझ एवं बहादुरी का परिचय देते हुए बस को रोका नहीं, और सभी बच्चे और टीचर इस तरह बाल-बाल बच गए।

यह पूरी घटना बस में सवार किसी शख्स ने अपने मोबाईल के कैमरे में कैद कर ली। 13 सेकंड का यह वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो समूचा देश हिल गया। वीडियो में पथराव होते ही ड्राइवर बच्चों को सीट के नीचे छिपने के लिए कहता है. बच्चे टीचर के गले लगकर रोने लगते हैं और बचाओ-बचाओ चिल्लाते दिखाई देते हैं. बस के शीशे भी पथराव के कारण टूट जाते हैं। जब बस पर हमला हुआ तब उसमें 22 बच्चे सवार थे. इसके अलावा दो गार्ड और तीन टीचर भी बस में सवार थे। “बच्चों के खिलाफ हिंसा को किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता है, कारण चाहे जो भी हो। यह समझना होगा की इस तरह की हिंसा और विरोध सिर्फ और सिर्फ कमज़ोर लोगों का हथियार हो सकता है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक ओर, फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने अभिव्यक्ति का हवाला देते हुए अपने फिल्म का निर्माण कर डाला तो दूसरी ओर एक स्वम्भू सेना ने भी तथाकथित धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुँचने के नाम पर उपद्रवी विरोध करना आरम्भ कर दिया, असमंजस की स्थिति तो तब हुई की दोनों पक्षों ने ही अभिव्यक्ति की आज़ादी का ही हवाला दिया। यह सत्य है की एक फिल्म निर्माता को भी अपने फिल्म के चित्रण की यह स्वतंत्रता उसी तरह प्राप्त है, जिस तरह उस पर विरोध एवं प्रदर्शन कर रहे लोगों को। परन्तु इन सभी के बीच पसो- पेश में रोती-पीटती एवं त्राहि-त्राहि करती आम जनता। जिनके दोष उन्हें खुद नहीं मालूम, न तो उन्होंने फिल्म बनायीं और न ही उस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया दी, परन्तु उनके एवं उनके सम्पत्तियों के साथ जो व्यवहार लगातार पिछले कुछ दिनों से हो रहा, इसको कौन जायज़ ठहरा सकता? आम जन, क्यों इन सबके बीच पिस्ता हुआ दिख रहा है? क्यों उनके नन्हे मासूम बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है ?

शायद इन सब का कोई जवाब आसानी से न मिल सके, क्योंकि जब देश की सर्वोच्च न्यायालय के सीधे फरमानो के बाद भी ७ लाख के लोगों वाली एक सेना, १.२५ करोड़ देशवासियों को अपने घरों में बंद होने पर मजबूर कर देती है, तो स्थिति समझ से परे हो जाती है। आम लोगों की इस आज़ादी को उनसे छीनने का प्रयास क्यों हो रहा, की वो अपनी मर्ज़ी और पसंद की फिल्म देख भी न सकें। क्यों उनकी अभिव्यक्ति और पसंद का गाला घोंटा जा रहा है ? क्या मुट्ठी भर लोगों की राय, १२५ करोड़ की आबादी पर थोपना ग़लत नहीं ? सोंचना अवश्य होगा इस पर।

Advertisement. Scroll to continue reading.

क्या ही सुन्दर और सजग होता अगर संजय लीला भंसाली इस आपात जैसी स्थिति का आंकलन समय रहते कर लेते, और फिर अपनी फिल्म -निर्माण पर आगे बढ़ते। आज जो हालात उत्पन्न हुए हैं, समझा जा सकता है की वो भंसाली के लिए भी चिंता का विषय अवश्य बने होंगे, परन्तु एक सत्य ऐसा भी है की जिससे वो कही न कही हर्षोत्साहित भी हुए होंगे, जी हाँ वह सत्य है उनकी फिल्म का अचानक से पूरे देश भर में चर्चित हो जाना, जिसके लिए फिल्म निर्माता लाखों – करोड़ों लगा कर प्रमोशन का सहारा लेते हैं, वो तो उन्हें एक जगह बैठे ही प्राप्त हो गया। यह भिन्न विषय है की इस तरह के प्रोमोशन का भंसाली सही रूप में अंतर्मंन से आनंद भी नहीं उठा सके। हर्षोल्लास जब उपद्रव की भेंट चढ़ जाए तो, फिर आनंद कैसा?

तेज़ी से बढे विवादों के बीच आज भंसाली की बहु चर्चित फिल्म ‘पद्मावत’ से पर्दा उठ गया है। सिनेमाघरों में कड़े पहरे के बीच फिल्म को रिलीज़ किया गया है। हिंदी, तमिल और तेलुगु भाषा के साथ ये फिल्म 6 से 7 हजार स्क्रीन्स पर रिलीज की जा रही है। कई जगह फिल्म का शो हाउसफुल भी है। हालांकि, विरोध के चलते गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और गोवा में इसे नहीं दिखाया जा रहा है। इन राज्यों के एक भी मल्टीप्लेक्स में फिल्म का शो नहीं हुआ। फिल्म भले ही रिलीज हो गई हो, लेकिन फिल्म पर उपद्रव लगातार जारी है, और समय के साथ उग्र रूप धारण करता जा रहा है। देश के कई शहरों में, कई निजी वाहनों, बसों को आग के हवाले कर दिया गया है। कई सिनेमाघरों में आगजनी की खबरें भी सामने आईं हैं। और यह सब देश की सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के बावजूद जारी है। देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन और हिंसा की वजह से आज स्कूलों में छुट्टी की घोषणा करनी पड़ी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

2016 के दिसंबर में मुंबई में भंसाली ने इस फिल्म की शूटिंग शुरू की थी, और जनवरी – २०१७ में जब जयपुर में फिल्म का बड़ा शेड्यूल शुरू हुआ था, तब तक इस फिल्म को लेकर सब कुछ सामान्य लग रहा था। इस चर्चा ने भी जोर नहीं पकड़ा था कि फिल्म में पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी का कोई ड्रीम सिक्वेंस है। ये पद्मावत के विवाद की पहली चिंगारी थी, जिसकी परिणीती जयपुर में फिल्म के सेट पर करणी सेना के लोगों का हमला था। इस दौरान भंसाली से हाथापाई तक हुई और ये मामला तेजी से देश भर में गूंजा/

ये मामला उस वक्त लगभग शांत होने वाला था, जब खबर आई कि करणी सेना और भंसाली के बीच समझौता हो गया। इसके तहत फिल्म पूरी होने के बाद करणी सेना के नेताओं को दिखाई जानी थी। इस विवाद ने फिर तूल पकड़ा जब करणी सेना के नेता मुंबई आए और भंसाली ने उनसे मिलने से मना कर दिया। यहीं से करणी सेना के तेवर बदले और उन्होंने फिल्म के विरोध के तेवर तीखे कर दिए। एक दिसंबर को फिल्म रिलीज करने की घोषणा इस विवाद का नया पड़ाव था। बाद में फिल्म रिलीज़ की तारीख २५ जनवरी करने की घोषणा की गई, तो माना गया कि ये फिल्म अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म पैडमैन के साथ मुकाबला करेगी। अक्षय कुमार ने समझदारी दिखाते हुए अपनी फिल्म को आगे खिसका कर पद्मावत के लिए रास्ता साफ कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भंसाली की टीम का देश के कुछ पत्रकारों को फिल्म दिखाने के फैसले ने इस विवाद में आग में घी डालने का काम किया। इसके बाद तो विरोध के सुर और ज्यादा तीखे होते चले गए। रिलीज डेट से चंद दिनों पहले ‘पद्मावत’ की रिलीज को स्थगित करने का फैसला हुआ और इसका कारण बताया गया कि फिल्म सेंसर बोर्ड से पारित नहीं हुई है। सेंसर बोर्ड में असली पेंच इस बात पर फंसा था कि फिल्म को काल्पनिक माना जाए या ऐतिहासिक। इस बीच संसदीय कमेटी के सामने भंसाली की पेशी हुई, जिसमें उनसे सख्त सवाल हुए। सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म को कुछ शर्तों के बाद पास कर दिया गया।

कुछ राज्य सरकारों द्वारा पद्मावत की रिलीज पर रोक के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां सर्वोच्च अदालत ने सख्त लहजे में राज्य सरकारों के फैसले को पलटते हुए आदेश दिया कि सभी राज्यों में फिल्म के प्रदर्शन के लिए सुरक्षा मुहैया की जाए। मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात सरकार की पुनर्विचार याचिकाएं खारिज होने के बाद तय हो गया था कि अब तकनीकी और कानूनी रुप से पद्मावत को लेकर कोई बाधा नहीं बची है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

परन्तु, किसे मालूम था की देश में क़ानून की धज्जियां उड़ाने के लिए भी लोग व्याकुल बैठे हैं। और फिर एक सेना के चन्द लोग विरोधी तेवर के साथ सामने आये, और सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को धता बताते हुए विरोध का उग्र रूप धारण करने में देर न लगायी। करणी सेना के हमले लगातार तेज होते चले गए और उन्होंने हिंसा और तोड़फोड़ की धमकियों पर अमल करना शुरू कर दिया, जिसने देश का माहौल एक बार फिर तहस नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रिलीज के दो दिन पहले मीडिया के लिए फिल्म का शो रखा गया, जहां से लगभग एक सुर में आवाज आई, कि फिल्म में विरोध का कोई कारण नहीं है। फिर भी करनी सेना अपने रुख पर कायम रही और सिनेमाघरों में आगजनी की घटनाओं के बाद चार राज्यों में सिनेमाघरों के मालिकों के फिल्म न दिखाने के फैसले ने पद्मावत के भविष्य को एक बार फिर से अंधकारमय कर दिया।

किसी भी फिल्म निर्माता को ऐसे गंभीर विषय पर फिल्म का निर्माण करने से पहले पूरी सतर्कता के साथ उसकी सभी बारीकियों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि किसी भी परिस्थिति में संशय की कोई भी सम्भावना न रह पाए, साथ ही किसी भी स्वयंभू सेना के लोगों को भी यह अधिकार अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए की पूरे देश में अराजकता ही फ़ैल जाए। देश में क़ानून का राज स्थापित रहे यह सिर्फ न्यायलय, सरकार या प्रसाशन का ही कर्तव् नहीं, अपितु हम सभी देशवासी भी इसके लिए बराबर के हिस्सेदार होने चाहिए। जब एक स्वयंभू सेना देश की सर्वोच्च न्यायालय एवं फिल्म से जुड़ी संस्था सेंसर बोर्ड से भी अधिक शक्तिशाली होने का दम भरने लगे, तो स्थिति काबू से बाहर होती दिखेगी ही। लम्बी चुप्पी के बाद, शायद मेरी क़लम ने भी यह सोंचा न होगा की जब उसका मौन टूटेगा, तो वह इस तरह भड़ास बन कर पाठकों के सामने पेश होगी। इस बात का मुझे और मेरी क़लम दोनों को बेहद खेद है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक सैयद असदर अली वरिष्ठ पत्रकार हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. आशीष चौकसे

    January 29, 2018 at 2:29 am

    एक निवेदन को “आंदोलन” बनने तक अस्वीकार्य करने की हमारी ही प्रवत्ति की देन है करणी सेना और उसके द्वारा किये गए “गला घोंटने” वाले काम।
    बात बड़ी सिंपल है कि इंडस्ट्री में 1 बायोपिक भी बिना अनुमति नहीं बन सकती तो फिल्म पद्मावत पर उनसे जुड़े लोगों को ठेंगा कैसे दिखाया गया? दूसरी बात… करणी सेना की तरफ से फ़िल्म देखने की बात रखी गई थी। लेकिन भंसाली ने मीडिया वालों को बुलाया मगर उनको नहीं बुलाया, जिनको आपत्ति थी। रही बात चंद या मुट्ठीभर करणी सेना वालों की तो जब देश आजाद हुआ था तब भी 30 करोड़ की आबादी में से मुट्ठीभर ही देशभक्त, क्रांतिकारी या सेक्युलरवादी निकले थे।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement