राकेश कायस्थ-
नीचे तस्वीर में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ नज़र आ रही मोहतरमा का नाम अरूसा आलम है। पाकिस्तान की डिफेंस जर्नलिस्ट हैं। इनकी माँ का नाम अकलीन अख्तर हैं, जो पाकिस्तानी राजनीति में रानी जनरल के नाम से विख्यात या कुख्यात हैं।
फोटो क्रेडिट– इंडिया टुडे
रानी जनरल क्या चीज़ थीं और एक समय पाकिस्तानी सत्ता के गलियारों में उनका क्या जलवा था, उसपर ढेर सारी कहानियां आपको गूगल करने से मिल जाएंगी। सवाल ये है कि मैं अभी अचानक रानी जरनल की बेटी अरूसा आलम को क्यों याद कर रहा हूँ।
उनकी याद मुझे तब आई जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू की इमरान खान सरीखे पाकिस्तानियों से दोस्ती है, देशहित में ये अच्छा नहीं है, इसलिए मैं उनका विरोध करूंगा।
अमरिंदर सिंह के पिछले कार्यकाल में पंजाब के अख़बार अरूसा आलम के साथ उनके कथित प्रेम संबंधों के लेकर रंगे हुए थे। अकालियों ने खूब बवाल काटा था। इल्जाम ये था कि कैप्टन साहब ने अरूसा से गुपचुप शादी कर ली है।
मुझे याद है कि जिस मलेर कोटला को कैप्टन ने पूर्ण जिला बनाया है, वहीं मौलवी उलेमा टाइप लोगों का एक प्रोटेस्ट हुआ था, जिसमें इस रिश्ते को हराम बताते हुए पूछा गया था कि क्या कैप्टन ने सचमुच शादी की है, या फिर यूं ही साथ-साथ रह रहे हैं।
अमरिंदर सिंह की निजी जिंदगी पर किसी की निजी जिंदगी पर कोई टीका-टिप्पणी मेरा मकसद नहीं है। समझने वाली बात ये है कि किसी पर भी पाकिस्तान परस्त का तमगा जड़ देना मौजूदा का कितना आसान और सस्ता हथकंडा है।
अगर सिद्धू इमरान खान या पाकिस्तानी आर्मी चीफ के साथ जान-पहचान की वजह से पाकिस्तान के प्यादे हैं तो फिर सीएम हाउस में किसी पाकिस्तानी को रखने वाला क्या है?
सिद्धू जैसे सियासी मसखरे के हाथों पिट जाना कैप्टन का दुर्भाग्य है। उससे भी ज्यादा दुर्भाग्य कांग्रेस का है, जो अपनी ताबूत में खुद कील ठोकने में जुटी है। लेकिन कैप्टन ने जो पाकिस्तानी कार्ड खेला है, वो निहायत घटिया है। इस इल्जाम में संकेत भी छिपा कि कैप्टन अब किस तरफ देख रहे हैं।
Shishir Soni-
भाजपा के होंगे कैप्टन… पंजाब के सीएम पद से हटने के बाद सूबे की भलाई के लिए क्या किया? स्थानीय जनता को कैसे कोरोना से बचाया? किसानो के हित में क्या निर्णय लिए? ड्रग्स मामले में SIT की जाँच कहाँ पहुंची? इन सब विषयों पर अपनी बात रखने के बजाए जिस तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह पाकिस्तान, इमरान का राग अलाप रहे हैं, जिस तरह से वे सिद्धू को पाकिस्तान, इमरान प्रेमी बताकर खुद पर देशभक्ति का मुलम्मा चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, साफ इंगित करता है कि वो भाजपा में जायेंगे।
आज नहीं तो कल बड़े नेता की कमी से जूझ रही पंजाब भाजपा, कैप्टन को भाजपा की चुनावी कप्तानी सौपेंगी। असम में जैसे कांग्रेसी हेमंत बिस्वसर्मा के कंधे पर चढ़ कर भाजपा सत्ता तक पहुंची वैसे ही अकाली से कुट्टी के बाद अपने बलबूते पंजाब की सत्ता तक भाजपा पहुँचना चाहती है, कैप्टन इसके लिए सबसे मुफीद मोहरा साबित हो सकते हैं।
राजीव गांधी के साथ दून स्कूल में पले बढे कैप्टन 1980 में कांग्रेस की राजनीति में आये। MLA बने। 1984 में सिख दंगे के बाद वो अकाली दल में चले गए। बाद में अकाली से अलग होकर अपनी एक पार्टी बनाई फिर उस पार्टी का विलय कांग्रेस में कर, घर वापसी की थी। तब कैप्टन जवान थे। आज अस्सी वर्ष के हैं। पर खुद को फिट घोषित करते हैं। लेकिन सिद्धू उनसे ज्यादा फिट निकले। एक के बाद एक सिद्धू ने शह और मात दिये। सिद्धू की बाजीगरी, अनाप शनाप तरीके से सरकार चलाने के तरीके से बिदके विधायकों के साथ ने कैप्टन की कांग्रेसी राजनीति में आखिरी कील ठोक दिया।
“अगर मेरी बात नहीं मानी गई तो ईंट से ईंट बजा दूंगा”…. ऐसी धमकी तो जाहिर है सिद्धू ने गांधी परिवार का हाथ पीठ पर आने के बाद ही दी होगी। कैप्टन सिद्धू को बड़बोला बच्चा समझते रहे। सियासी चौसर पर घिरते रहे। अकालियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न किये जाने के आरोपों से जूझते हुए कैप्टन ने दो कांग्रेसी विधायकों के बेटों को सरकारी नौकरी देकर अपने लिए बड़ा गड्ढा खोद लिया। सिद्धू के सलाहकारों ने तब तक उलजुलूल बयान दे दिया। कैप्टन ने आक्रामक रुख अख्तियार कर उन्हें हटवाने में सफलता पाई। चौसर पर सिद्धू के सलाहकारों को हटवाकर कैप्टन ने सिद्धू को ” शह ” दिया, मगर आखिरी मात सिद्धू ने कैप्टन को सीएम से हटवा कर दिया।
कैप्टन के कैबिनेट में सिद्धू मंत्री थे। कैप्टन ने किन्ही कारणों से सिद्धू से तब इस्तीफा ले लिया था। अब कैप्टन को सीएम से इस्तीफा देने की ओर धकेलने में सिद्धू ने कैप्टन के उन्ही मोहरों का इस्तेमाल किया जिसे सहारे कैप्टन दिल्ली को साधते थे। उसमें सबसे पहला नाम है, तब पीसीसी अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ का। बलराम जाखड़ के पुत्र सुनील जाखड़ ने सिद्दू, कैप्टन के झगड़े में सिद्धू का साथ दिया, इस आस में कि बिल्ली के भाग्य से छींका फूटेगा, वे सीएम बन सकते हैं। विधायक और संसद का चुनाव हारे हुए सुनील जाखड़ का नाम अब सीएम के लिए सबसे आगे है।
कल, शनिवार को कांग्रेस विधायकों की बैठक में 80 में से 65 विधायक प्रभारी हरीश रावत और पर्यवेक्षक अजय माकन के साथ बैठे। इसका मतलब कैप्टन समेत 15 विधायक बैठक में नहीं गए। उन पर अनुशासनतमक कारवाई AICC करेगा तो MLA वो नहीं रहेंगे। पार्टी तोड़ने और विधायकी बचाने के लिए एक तिहाई विधायक चाहिए लेकिन कैप्टन के लिए ये संभव नहीं दिखता। मतलब साफ है, कांग्रेस अलकमान की पार्टी पर पकड़ बनी हुई है। अब सोनिया गांधी जिसे चाहें कैप्टन की जगह पंजाब का सीएम बना दें।
राहुल गांधी समझ रहे हैं कि पंजाब में भाजपा, अकाली अलग होने के बाद मौका अच्छा है। सो, उन्होंने पार्टी के अंदर ही सिद्धू के रूप में मुखर विपक्ष पैदा किया। उसके पहले प्रताप सिंह बाजवा भी कैप्टन के खिलाफ मुखर थे, लेकिन उन्हें राज्यसभा भेज कैप्टन ने अपनी राह आसान कर ली थी। राहुल गांधी को लगता है कि अभी कई आरोपों से घिरे कैप्टन को हटा कर किसी युवा को कप्तानी सौंप दी जाए तो खेल बदला जा सकता है। नहीं तो आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक पर तेजी से डाका डालते हुए तेजी से बढ़ने को बेताब है। कांग्रेस को बचाने और सत्ता में रखने की दोहरी कोशिश चल रही है।
भाजपा को लगता है 2014 के मोदी महालहर में अरुण जेटली को अमृतसर सीट से लाख वोटों से हराने वाले कैप्टन की कप्तानी मिल जाए तो चुनावी राजनीति में भाजपा को बेहतर खाद पानी दिया जा सकता है, सो पर्दे के पीछे बातचीत शुरू हो गई है। कैप्टन को लाइन दे दी गई है… कैप्टन ने पाकिस्तान, इमरान का राग अलापना शुरू कर दिया है।