Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पत्रकारिता को गुडबॉय कह सियासत में पांव रख रहे पत्रकार!

नवेद शिकोह-

जुबान और क़लम में जादू होता है। पत्रकारिता के ये दो टूल सियासत को मुफीद लगने लगे हैं। बाजार मे आ चुकी पत्रकारिता के दाम लगाने में सियासत कभी कंजूसी नहीं करती।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब उसकी मर्जी कि पत्रकारिता का हुनर वो जायज़ तौर से इस्तेमाल करे या नाजायज तौर से। हांलाकि पत्रकार जब किसी पार्टी से जुड़ जाए तो वो पत्रकार तो नहीं रहेगा। वैसे ही जैसे कोई युवती ब्याहने के बाद कुंवारी नहीं कही जा सकती। पार्टी ज्वाइन करने के बाद पत्रकारिता के सिद्धांत, संतुलन, निष्पक्षता.. सब कुछ असंतुलित हो जाना लाजमी है। लेकिन कलम, कैमरा और जुबान का हुनर तो असर करेगा ही। राजनीति चाहती है कि आम जनता अपना गम, दुख-दर्द और जरुरतें भूल कर एक आभासी दुनिया मे जिए। जज्बातों का धतूरा और धर्म-जाति, मसलक की अफीम सच के अहसास से दूर रखे।

कलम और जुबान के मजबूत हथियारों की पत्रकारिता का बेजा इस्तेमाल यानी सिद्धांतहीन कलम और जुबान देसी नीट दारू का काम करती है। ये अद्भुत दारू आम जनता के जिस्म मे एक ऐसा कैमिकल लोचा पैदा करती है जो पेट की भूख का अहसास भी न होने देती।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पहले देश में सियासत होती थी, अब सियासत में देश है। कोई भी आम-ख़ास इंसान हो..कोई भी पेशेवर हो, हर किसी नागरिक पर मीडिया-सोशल मीडिया के जरिए राजनीति इतनी हावी कर देने का दौर हो गया है कि किसी का खुद का कोई अस्तित्व, पेशा या पेशेवर ज़िम्मेदारियां नहीं रही, हर कोई किसी न किसी पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर पेश आ रहा है।

कोविड और तमाम परेशानियों के बीच मंहगाई, गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे हर वर्ग की तरह पत्रकारिता का पेशा भी बेरोजगारी से अछूता नहीं रहा, लेकिन अच्छी बात है कि पत्रकारों को बारामासी सियासी सहालग ने रोजगार देना जारी रखा है। हर रोज खबर आ रही है कि रोज दो-चार पत्रकार पत्रकारिता के पीहर की ड्योढ़ी से विदा होकर सियासत के आंगन जा रहे है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इधर अखबारों के एडिशन खूब बंद हुए। कॉस्ट कटिंग और छट्नी हुई। खूब लोग निकाले गए। बड़े बड़े चेहरों तक को न्यूज चैनलों से निकाल दिया गया। बेरोजगारी के इस दौर में राजनीतिक दलों ने खूब सहाफियों को सहारा दिया। इस वक्त प्रदेश में हजारों कलमकार प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से दल़ो की आईटी सेल में पेशेवर तरीके से काम कर रहे हैं। थोक के हिसाब से यूपी के पत्रकारों को राजनीति दलों में प्रवक्ता/टीवी पैनलिस्ट के लिए छांटा-बीना जा रहा है।

पत्रकार का मुखौटा लगाकर किसी भी दल के कार्यकर्ता/प्रवक्ता के रूप में छुप कर काम करने से अच्छा है कि पत्रकार पत्रकारिता छोड़कर खुल कर किसी का प्रवक्ता बन कर काम करे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

संबंधित खबरें-

वरिष्ठ पत्रकार अवनीश त्यागी भाजपा के प्रवक्ता बने

कामरेड पत्रकार पंकज श्रीवास्तव कांग्रेसी हो गए!

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. Lovekesh Kumar

    September 10, 2021 at 2:50 pm

    naved shikoh ji bahut achchha laga aap ka lekh or aapki bhasha ki pakad kabile tarif hai
    jis nishpaksh tarike se aap ne apni baat rakhi sarahaniy hai

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement