एक बड़ी खबर ईपीडब्ल्यू (इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली) से आ रही है। कुछ महीनों पहले इस मैग्जीन के संपादक बनाए गए जाने माने पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। माना जा रहा है कि अडानी ग्रुप केे गड़बड़ घोटाले से जुड़ी एक बड़ी खबर छापे जाने और इस खबर पर अडानी ग्रुप द्वारा नोटिस भेजे जाने को लेकर परंजॉय के साथ EPW के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज का मतभेद चल रहा था।
समझा जाता है कि प्रबंधन के दबाव में न झुकते हुए परंजॉय गुहा ठाकुरता ने संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम को कारपोरेट घराने और केंद्र सरकार द्वारा मिलकर EPW प्रबंधन पर बनाए गए दबाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। हाल के वर्षों में सच कहने सच लिखने वाले पत्रकारों को मीडिया संस्थानों से हटाने के लिए कारपोरेट और सरकारों का मीडिया संस्थानों के प्रबंधन पर काफी दबाव पड़ता रहा है जिसके फलस्वरूप ईमानदार-बेबाक पत्रकारों को इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ता रहा है। इसी कड़ी में परंजॉय का भी नाम जुड़ गया हैै।
सूत्रों के मुताबिक EPW के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की आज हुई दिल्ली में एक बैठक में अडानी के खिलाफ छपे दोनों आर्टकिल्स को हटाने का प्रस्ताव पारित हुआ जिससे नाराज होकर संपादक पद से परंजॉय ने इस्तीफा दे दिया। ज्ञात हो कि अडानी ग्रुप कि तरफ से करोड़ों का नोटिस भेजा गया था और इसके जवाब में EPW की तरफ से परंजॉय ने भी प्रति-उत्तर भिजवाया था लेकिन अडानी ग्रुप हर हाल में अपने खिलाफ छपे लेख हटवाने पर आमादा था। इसी का नतीजा रहा कि बेबाक कही जाने वाली पत्रिका EPW का प्रबंधन बुरी तरह दबाव में आकर घुटनों के बल बैठ गया और ईपीडब्ल्यू के वेब सेक्शन पर चल रहे अडानी ग्रुप के गड़बड़-घोटाले से संबंधित दोनों आर्टकिल्स को हटवा दिया। मीडिया पर कारपोरेट घराने के इस नंगे दबाव और मुंह बंद करने के कुत्सित प्रयास का हर कोई निंदा कर रहा है।
https://www.youtube.com/watch?v=55NezS4H4_4
वरिष्ठ पत्रकार पलाश विश्वास कहते हैं- प्रांजय को हटाये जाने का अफसोस है। प्रभाष जोशी जब किनारे कर दिये गये और प्रतिबद्ध पत्रकारों का गला जिस तरह काटे जाने का सिलसिला चला है, इसमें नया कुछ नहीं है। नब्वे दशक की शुरुआत में भी पत्र पत्रिकाओं में संपादक सर्वसर्वा हुआ करते थे। आर्थिक सुधारों में शायद सबसे बड़ा सुधार यही है कि संपादक अब विलुप्त प्रजाति है। बिना रीढ़ की संपादकी निभाने वाले बाजीगरों की बात अलग है,लेकिन प्रबंधन का हिस्सा बनने के सिवाय अभिव्यक्ति की कोई आजादी संपादक को भी नहीं है। 1970 में आठवीं में ही तराई टाइम्स से लिखने की शुरुआत करने के बाद आज 2017 में भी हम जैसे बूढ़े रिटायर पत्रकार की कोई पहचान,इज्जत ,औकात नहीं है क्योंकि संपादकीय स्वतंत्रता खत्म हो जाने के बाद पत्रकारिता की साख ही सिरे से खत्म है। ईपीडब्लू के गौरवशाली इतिहास और भारतीय पत्रकारिता में उसकी अहम भूमिका के मद्देनजर उसके संपादक के ऐसे हश्र के बाद मिशन के लिए पत्रकारिता करने का इरादा रखने वाले लोग दोबारा सोचें।
पत्रकार के अलावा कुछ भी बनें तो कूकूरगति से मुक्ति मिलेगी। प्रांजय हिंदी में ईपीडब्लू निकालने की तैयारी कर रहे थे।इस सिलसिले में उनसे संवाद भी हुआ है। उनकी पुस्तक गैस वार अत्यंत महत्वपूर्ण शोध है और भारत के राष्ट्रीय संसाधनों की खुली लूट की अर्थव्यवस्था को समझने के लिए यह पुस्तक जरुरी है। जाहिर है कि मामला सिर्फ अडानी का केस नहीं है, इसमें तेल की धार का भी कुछ असर जरुर है। यही तेल की धार देश की निरंकुश सत्ता है। मुश्किल यह है कि प्रबुद्ध जनों को सच का सामना करने से डर लगता है और वे अपने सुविधाजनक राजनीतिक समीकरण के मुताबिक सच को देखते समझते और समझाते हुए झूठ के ही कारोबार में लगे हैं।
पत्रकार दीपक शर्मा फेसबुक पर लिखते हैं- Legendary Editor Paranjoy Thakurta compelled to resign under corporate pressure.
मोहित सिंह प्रिंस का कहना है- अडानी पावर को 500 करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाए जाने के घोटाले पर एक स्टोरी की थी, इसी का नतीजा है ठाकुरता साब का इस्तीफा. इतना ही नहीं, अब उस स्टोरी को वेबसाइस से हटा लिया गया है।
https://www.youtube.com/watch?v=Hrauh3nV_E0
Vishwas kumar tiwari
July 19, 2017 at 1:00 am
सभी संस्थाओ को अभिव्यक्ति की आजादी है ।
स्वस्थ लोक तंत्र के लिए मिडिया पर दबाव बनाना अनुचित है।
लेकिन जब पूजी वादी अर्थ व्यवस्था का का आधिपत्य आ जाता है और पत्रकार भाई संपादकीय छोडना पडा ।
युवा वर्ग देश का भविष्य उज्जवल चाहते है तो सहकार वाद को लाना होगा ।
सहकार वाद से ही पूँजीवादी अर्थ व्यवस्था से लडा जा सकता है ।