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वन अधिकारी के खिलाफ यह खबर लिखने पर ‘पर्वत जन’ पत्रिका से योगेश डिमरी की नौकरी गई

मैं विगत दस सालों से ‘पर्वत जन’ मासिक पत्रिका में पत्रकारिता और पत्रिका के प्रचार प्रसार का काम ब्यूरो गढवाल के पद पर रहते हुए करता आ रहा था. मैंने जुलाई माह में नरेंद्रनगर वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डा. विनय कुमार भार्गव के खिलाफ एक खबर प्रकाशित होने के लिए पत्रिका में दी लेकिन पत्रिका के मालिक शिव प्रसाद सेमवाल ने खबर छापने की जगह पत्रिका में छप रहा मेरा नाम ही दिसंबर माह से हटा दिया. जो खबर प्रकाशन के लिए भेजा था, वह इस प्रकार है….

<p>मैं विगत दस सालों से 'पर्वत जन' मासिक पत्रिका में पत्रकारिता और पत्रिका के प्रचार प्रसार का काम ब्यूरो गढवाल के पद पर रहते हुए करता आ रहा था. मैंने जुलाई माह में नरेंद्रनगर वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डा. विनय कुमार भार्गव के खिलाफ एक खबर प्रकाशित होने के लिए पत्रिका में दी लेकिन पत्रिका के मालिक शिव प्रसाद सेमवाल ने खबर छापने की जगह पत्रिका में छप रहा मेरा नाम ही दिसंबर माह से हटा दिया. जो खबर प्रकाशन के लिए भेजा था, वह इस प्रकार है....</p>

मैं विगत दस सालों से ‘पर्वत जन’ मासिक पत्रिका में पत्रकारिता और पत्रिका के प्रचार प्रसार का काम ब्यूरो गढवाल के पद पर रहते हुए करता आ रहा था. मैंने जुलाई माह में नरेंद्रनगर वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डा. विनय कुमार भार्गव के खिलाफ एक खबर प्रकाशित होने के लिए पत्रिका में दी लेकिन पत्रिका के मालिक शिव प्रसाद सेमवाल ने खबर छापने की जगह पत्रिका में छप रहा मेरा नाम ही दिसंबर माह से हटा दिया. जो खबर प्रकाशन के लिए भेजा था, वह इस प्रकार है….

अनुभवहीन और ढीले डीएफओ

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-योगेश डिमरी-

-आरोपी को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने प्रमुख सचिव रणवीर सिंह को बदलकर एस रामास्वामी से बनवाई अंतिम रिपोर्ट। इसी रिपोर्ट में डीएफओ को अनुभवहीन और ढीले की संज्ञा दी गई जबकि मामले की जांच खुद रणवीर सिंह ने भी की थी।
-वन मंत्री दिनेश अग्रवाल की टिप्पणी ‘मा. मुख्यमंत्रीजी द्वारा दूरभाष पर पुनः अवलोकित करने की अपेक्षा की गयी है। अतः मा. मुख्यमंत्रीजी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत करना चाहता हूं’ से सारी जांचें धरी रह गईं।

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सरकार चाहे तो किसी भी भ्रष्टाचारी को येनकेन प्रकारेण बचा सकती है। इसके लिए उसे सिर्फ शब्दों से खेलना मात्र होता है। ठीक ऐसा ही नरेंद्रनगर वन प्रभाग के डीएफओ विनय कुमार भार्गव के साथ भी हुआ। उनके द्वारा की गई वित्तीय अनियमितता से उनको बचाने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पहले तो उनको अनुभवहीन और कर्मचारियों के प्रति शिथिलता का तमगा दिया फिर भविष्य में अधिक सावधान/सजग रहने के परामर्श के साथ प्रकरण को समाप्त कर दिया। वहीं इसी मामले में प्रमुख सचिव रणवीर सिंह के साथ अपर प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने इनको आरोपी घोषित करने के साथ इनके खिलाफ कार्यवाही के आदेश भी जारी कर दिए थे। जबकि इसी मामले में रेंजर केपी रतूडी को जेल की हवा खानी पडी।

वित्तीय अनियमित्ता और गैरकानूनी तरीकों का ये मामला नरेंद्रनगर वन प्रभाग द्वारा हाथी सुरक्षा दीवार व बग्वासेरा में पुलिया निर्माण और गजा से शिवपुरी हल्का वाहन मार्ग पर मरम्मत कार्य के साथ छोटे कद को वन आरक्षी पद पर भर्ती करने के अलावा मजदूरों को भुगतान न होने से सम्बंधित है। इनमें रेंजर केपी रतूडी के साथ उप प्रभागीय वनाधिकारी प्रदीप कुमार और प्रभागीय वनाधिकारी डॉ विनय कुमार भार्गव पर वित्तीय अनियमितता के आरोप सिद्ध हुए। बावजूद इसके सरकार द्वारा दो उच्च अधिकारियों को माफ कर सिर्फ रेंजर केपी रतूडी को ही जेल भेजा गया। सरकार द्वारा डीएफओ पर ढील देने का परिणाम ये हुआ कि आरोपी डीएफओ ने शिकायतकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट जगदीश कुलियाल को बकायदा विभागीय पत्र देकर उनके खिलाफ विधिक कार्यवाही करने की धमकी दे डाली।

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यही नहीं सहायक अभियंता, लोक निर्माण विभाग, मुनि की रेती ने 18 अगस्त 2015 की हाथी सुरक्षा दीवार की अपनी जांच प्रक्रिया में शिकायतकर्ता कुलियाल को एक महीने बाद 19 सितंबर को पत्र दिया जिससे वे जांच प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाए। जबकि प्रमुख वन संरक्षक श्रीकांत चंदोला ने अपने 9 जुलाई 2015 के पत्र में मुख्य वन संरक्षक को स्पश्ट कहा था कि जांच प्रक्रिया में शिकायतकर्ता को भी शामिल किया जाए। बावजूद इसके सहायक अभियंता ने आजतक इसकी जांच करना मुनासिब नहीं समझा।  

विभाग द्वारा वर्ष 2013-14 को बग्वासेरा में 7 मीटर पुलिया का निर्माण 2.60 लाख में होना था। परंतु स्थल पर कोई पुलिया नहीं बनी थी। जबकि सितंबर 2013 में ही पुलिया का पैसा निकाल दिया गया। वहीं इस मामले में टिहरी के जिलाधिकारी युगल किशोर पंत और मुख्य विकास अधिकारी अर्चना गंगवार ने स्थलीय निरीक्षण किया। इसके अलावा गजा से शिवपुरी हल्का वाहन मोटर मार्ग पर 6 लाख रुपये से 73 पुश्तों का निर्माण होना था। इनमें से एक भी पुश्ते का निर्माण न कर डीएफओ समेत एसडीओ और रेंजर ने पैसों की बंदरबांट कर दी।

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वहीं ढालवाला में भी हाथी सुरक्षा दीवार के निर्माण में गंभीर अनियमितता देखने को मिली। 66 लाख 40 हजार से बनने वाली 1515 मीटर लम्बी दीवार की न तो टीएसी कर उच्च अधिकारियों से वित्तीय स्वीकृति ली और न ही इस काम का टेंडर किया गया। उल्टा टीएसी से बचने के लिए काम को विभाजित कर 5 लाख से नीचे लाया गया। बताते चलें कि टीएसी और टेंडर की प्रक्रिया में काम 5 लाख या उससे अधिक का होना चहिए और इससे बचने के लिए विभागीय अधिकारी किसी बडे काम को 5 लाख से कम के टुकडों में दिखाकर मस्टरोल पर ही खुद ही ठेकेदार बन जाते हैं। इस काम में उत्तराखंड अधिप्राप्त नियमावली 2008 का उल्लंघन किया गया। सीमेंट क्रय करने में भी मानकों का ध्यान नहीं रखा गया। इसमें विभाग ने 15 लाख से अधिक का सीमेंट क्रय कर नियमों का पालन नहीं किया। इस कार्य में भी जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी के साथ अपर प्रमुख वन संरक्षक ने डीएफओ को पूर्णतया दोशी माना।

इनके अलावा ढालवाला में बनने वाली हाथी सुरक्षा दीवार के चारों तरफ मधुमक्खी के 25 बक्सों को लगना था। परंतु बिना बक्सों की आपूर्ति के डीएफओ ने स्टॉक रजिस्टर में इनकी पूर्ति दर्शा दी। इसमें इन पर सीधा 1 लाख के गबन का आरोप सिद्ध हुआ। इन्होंने वन आरक्षी भर्ती में भी अपनी मनमानी की। इन्होंने जिस अभ्यर्थी की उंचाई 156.5 सेमी थी, उसे 158 सेमी दिखाकर भर्ती कर दिया। इसमें इन पर अभ्यर्थी से 5 लाख रु लेने के आरोप भी लगे। इसको भर्ती करने के लिए डीएफओ ने शारीरिक सत्यापन रजिस्टर में छेडछाड कर उसकी उंचाई 156.5 सेमी को 158 सेमी कर दिया। जबकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी. देहरादून से मिली रिपोर्ट में भी अभ्यर्थी की लम्बाई 156.5 सेमी सिद्ध हुई।

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इनके उपरोक्त सभी कामों की जांच अपर वन प्रमुख संरक्षक जयराज ने दिसंबर 2014 में की। इससे पूर्व इनके कामों की जांच जिलाधिकारी टिहरी युगल किशोर पंत, मुख्य विकास अधिकारी अर्चना गंगवार, रेंजर बी एल टम्टा, उपप्रभागीय वनाधिकारी प्रदीप कुमार और खुद प्रमुख सचिव डॉ रणवीर सिंह ने की। इन सभी ने इनके द्वारा करवाए गए कामों में नियमों का पालन न करने के साथ वित्तीय अनियमित्ता की बात कही। प्रमुख सचिव ने तो इनको सितंबर 2014 की अपनी जांच में पद से हटाने तक की बात लिखी थी। वहीं डीएफओ का इन कामों में की गई वित्तिय अनियमित्ता पर जब स्पष्टीकरण मांगा गया तो उसमें ये बेसिर-पेर की बातें कर मामले को गुमराह करने की कोशिश करने लगे। इनका कहना था कि शिकायतकर्ता बिना साक्ष्य के उनको फंसाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि पूर्व में हुई जांचों में इनके उच्च अधिकारियों ने अपनी जांचों में इनपर आरोप सिद्ध कर दिए थे। अपने को मामलों से अलग करने के फिराक में इन्होंने अपने अधिनस्थ रेंजर केपी रतूडी के खिलाफ इन सभी मामलों में एफआई आर तक दर्ज करवाई।

सूचना अधिकार से मिले इस पूरे मामले में कार्य स्वीकृति से लेकर जांच पडताल और आदेश बनाने तक कई रोचक तथ्य सामने आए। जहां हाथी सुरक्षा दीवार निर्माण के लिए 68.80 लाख का प्रथम पत्र डीएफओ भार्गव ने रेंजर रतूडी को 13 मार्च 2014 को दिया। वहीं उसी दिन 13 मार्च को ही रेंजर द्वारा चैक संख्या 005694 से 33 लाख रुपए निकाल लिए गए। उसके बाद 24 मार्च को काम शुरु होने के ग्यारह दिन बाद ही चैक संख्या 005815 से 33 लाख 40 हजार निकालकर खाते से पूरे पैसे निकाल लिए। जबकि 26 मार्च के अपर सचिव के पत्र में स्पष्ट किया गया था कि इस वित्तीय वर्ष में कम समय अवशेष रहने के कारण फॉरेस्ट डिपोजिट मद में जमा करते हुए आगामी वित्तीय वर्ष 2014-15 तक व्यय किए जाने की अनुमति देने का अनुरोध किया है। परंतु इनको पैसे निकालने की इतनी जल्दी थी कि इन्होंने 24 मार्च को ही खाता खाली कर दिया।

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ताज्जुब कि काम जिस दिन शुरू हुआ उसी दिन आधे पैसे निकालकर और ग्यारह दिन बाद बाकी पैसे निकालकर सरकारी धन के गबन का स्पष्ट मामला बनता था परंतु आधी दर्जन भर जांच में आरोप सिद्ध होने के बावजूद मुख्यमंत्री हरीश रावत और वनमंत्री दिनेश अग्रवाल ने मिलकर डीएफओ को क्लीन चिट दे दी। इसी तरह अपर सचिव व अनुसचिवों की टीपें और आदेशों से भी ऐसा लग रहा था कि शासन इस भ्रष्टाचार के मामले में आरोपियों के खिलाफ कोई बडी कार्यवाही करने वाला है। यहां तक कि प्रमुख सचिव डॉ रणवीर सिंह ने अपनी टीपें में डीएफओ के लिए ये तक लिखा था कि ‘तत्कालीन डीएफओ नरेंद्रनगर श्री विनय कुमार भार्गव के विरुद्ध प्रारंभिक जांच के आधार पर उपरोक्तानुसार 06 आरोप हैं। अतः प्रस्तावित है कि उक्तानुसार अपचारी अधिकारी को आरोप पत्र देते हुए उसके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जाय। इसके साथ ही यह भी प्रस्तावित है कि अपचारी अधिकारी को कोई संवेदनशील पदभार न दिया जाय।’ परंतु जब अंतिम आदेश बना तो ढाक के तीन पात।
सरकार ने डीएफओ को बचाने की पूरी तरह ठान रखी थी। इसके लिए प्रमुख वन संरक्षक की 13 फरवरी 2015 वाली रिपोर्ट के आधार पर वन्य जीव प्रतिपालक एसपी शर्मा की 10 फरवरी 2015 को उपलब्ध करवाई गई जांच में हाथी सुरक्षा दीवार 1515 मीटर की जगह 1519.55 मीटर मतलब 4.55 मीटर ज्यादा लम्बी दीवार बना दी गई थी। परंतु 30 जून 2014 को वन संरक्षक आर के मिश्र के आदेशानुसार 24 जून को स्थलीय जांच में दीवार की लम्बाई सिर्फ 469 मीटर ही पाई गई थी। इसी आदेश में वन संरक्षक ने रेंजर केशव प्रसाद रतूडी को प्रथम दृष्टया वित्तीय अनियमित्ता का दोषी पाया और अग्रिम आदेशों तक रेंजर को अपने कार्यालय में सम्बद्ध कर दिया। कागजों में ये मामला शिकायत से लेकर अंतिम आदेश तक 26 नवम्बर 2013 से 20 अक्टूबर 2015 तक लगभग दो साल चला। इसमें लगभग आधा दर्जन भर अधिकारियों ने जांच की। परंतु सरकार की मंशा ने सभी जांचों पर पानी फिराते हुए अपने मन की कर आरोपी को बाइज्जत बरी कर दिया।

जहां इन मामलों में डीएफओ अपने अधिनस्थ रेंजर पर कानूनी शिकंजा कस रहे थे वहीं उनके उच्च अधिकारी उनको भी इन पूरे मामलों की जांच कर दोषी सिद्ध कर रहे थे। डीएफओ ने जुलाई 2014 में थानाध्यक्ष मुनिकीरेती को बकायदा एक पत्र अपने रेंजर पर सरकारी धन के गबन की एफआईआर लिखने हेतु भेजा। इस पत्र में रेंजर रतूडी को पकडने के लिए उनके घर के पते के साथ फोन नम्बर भी दिया गया। ठीक ऐसे ही सितंबर 2014 में प्रमुख सचिव रणवीर सिंह ने इन मामलों की जांच में तीनों को दोषी पाया। उन्होंने अपने पत्र में डीएफओ पर तुरंत कार्यवाही करने के साथ इनके स्थानांतरण की बात भी लिखी। अपर प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने दिसंबर 2014 में अपनी जांच रिपोर्ट में भी रेंजर के साथ एसडीओ और डीएफओ को दोषी ठहराया। भले ही बाद में डीएफओ को बचाने के लिए सरकार ने प्रमुख वन संरक्षक से जांच करवाकर मामले को रफा दफा करने का सफल प्रयास किया। परंतु बदले गए प्रमख सचिव एम रामास्वामी ने जयराज की जांच रिपोर्ट के आधार पर अपनी मनमर्जी चलाते हुए डीएफओ को क्लीन चिट दे दी।

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इन घटित घटनाक्रम के सम्बंध में जगदीश कुलियाल का कहना है कि सरकार ने इनको बचाकर सिद्ध किया है कि सरकार भ्रष्टाचार के साथ है। एक तरफ तो मोटी वेतन पाने वाले अधिकारी करोडों का घपला कर के भी बच जाते हैं और वहीं कुछ सौ रुपए की मजदूरी करने वाला इन भ्रष्टाचारियों के कुकृत्य से अपनी मजदूरी से भी वंचित रह जाता है। यहां आज भी नकद नारायण व्यवस्था है- जहां आज गैस सब्सिडी से लेकर मनरेगा मजदूरों का भुगतान ऑन लाइन उनके खातों में हो रहा है वहीं वन विभाग में आज इस तकनीकी युग में मुनीम- मजदूर व्यवस्था है। इन सभी भ्रष्टाचार के पीछे वन विभाग की ये नकद व्यवस्था कहीं हद तक जिम्मेवार है। सबसे महत्वपूर्ण वन विभाग में आज भी अपने लाखों करोडों के काम मस्टरोल व्यवस्था पर होते हैं। इसमें मजदूरों को रेंजर और वन अधिकारी अपने हाथों से नकद पैसे देकर उनसे एक रजिस्टर में रसीदी टिकट पर हस्ताक्षर या अंगूठा निशान लगाते हैं। वहीं वन विभाग में शिलान्यास और लोकार्पण जैसी व्यवस्था न होने से काम में पारदर्शिता स्पष्ट नहीं हो पाती। अपने कामों की जानकारी ये मीडिया के माध्यम से भी कम ही देते हैं।

योगेश डिमरी
पूर्व ब्यूरो गढवाल
पर्वत जन
आवास विकास कॉलोनी
ऋशिकेष
उत्तराखंड
फोन नंबर- 9997276070

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0 Comments

  1. कुमार कल्पित

    December 29, 2016 at 4:34 am

    बहुत ही दुख:द है, पर सवाल यह उठता है कि इस तरह की घटनाएं खब तक होंगी। सुना है कि एक समय तत्कालीन परिवहन मंत्री हीरा सिंह बिष्ठ के खिलाफ खबर लिखने वाले दैनिक जागरण रिपोर्टर सुनील द्विवेदी का कानपुर तबादला कर दिया गया था। यही नही इसी आखबार के स्थानीय संपादक (वैसे उस समय तक यह पद घोषित तौर पर था नहीं) अशोक पांडेय से मालिकान इसलिए नाराज रहते थे कि वे कांग्रेस के पक्ष में थे( जो कि दिखता भी था) और मालिक भाजपा कोटे से राज्यसभा में था। पांडेय जी को जागरण से जाना ही पड़ा। पांडेय जी ही क्यों राष्ट्रीय सहारा का कोई बड़ा से बड़ा रिपोर्टर मुलायम सिंह/शिवपाल सिंह के खिलाफ लिख दे तो जानू।

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