ज्योति कुमारी-
यह किताब मेरे लिए बहुत खास है। गर्भावस्था के दौरान जब मैं बहुत परेशान थी अपने medical condition की वजह से तो साहित्य ने मुझे बचा लिया। उसी समय की रचना है यह।
इसमें एक नया प्रयोग भी किया है मैंने। नाटक को नाटक की तय तकनीकों का पालन करते हुए न लिखकर कहानी की मांग के अनुसार दृश्यों में लिखा है इसे। अब यह कहानी या उपन्यास या नाटक या मिक्स वेज की तरह की नई विधा ये तो आलोचक पाठक और वरिष्ठ साहित्यकार ही तय करेंगे।
मैं तो बस एक पंक्ति अपनी तरफ़ से कह कर इसे आप सबके सुपुर्द कर दिया कि हम लड़कियां समाज के दृष्टिकोण में भले ही या तो ब्लैक ,(बुरी) होती हैं या व्हाइट (अच्छी) लेकिन सच में हम अब बदल रही हैं खुल कर सामने आ रही हैं अपनी हर शेड के साथ और स्पष्ट हो रहा है कि हम भी ग्रे हैं हम अब तय खांचा में फिट नहीं बैठ रही हैं इसलिए हमारी कहानियां भी अब खुल कर सामने आ रही हैं ग्रे शेड्स के साथ और तय मानदंडों में फिट नहीं हो रही है।
अब विधाएं टूट रही हैं तकनीकी रूप से और टूटना ही चहिए क्योंकि समाज हमारे साथ सहज नहीं है और हम समाज के फ्रेमों और मानदंडों के साथ सहज नहीं हैं इसलिए हमारी कहानियां नई विधा चाहती हैं।ये जरूरत पूरी होगी तभी हमारी सच्ची कहानियां असली रूप में सामने आएगी तकनीकों के फ्रेम में टूटे फूटे बिना। मैंने विधा को तोड़ा है कहानी की जरूरत के लिए और अब लोकार्पित किया इसे आपसब की राय अपनी रचना पर जानने और इस विधा का नया नाम जानने के लिए। अपनी बात आप सब तक पहुंचाने के लिए।
आप कह सकते हैं कि जब नई विधा की बात कर रही हूं तो नाम भी क्यों नहीं दे दिया। क्योंकि मैं हिन्दी साहित्य की विद्यार्थी नहीं रही हूं बस प्रेम करती हूं हिन्दी से इसलिए करीब हूं तो नाम देना मेरे वश का काम नहीं है। ये तो मेरे वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक ही करें ऐसी मेरी इच्छा है।
Partap Sehgal जी Mahesh Darpan जी Prem Tiwari जी Pankaj Sharma जी और Santosh Patel जी ने इस मौके पर अपना अमूल्य समय और वक्तव्य दिया जिसके लिए उनकी शुक्रगुजार हूं। अन्य सभी वरिष्ठों और साथियों की भी बहुत आभारी हूं जिन्होंने अपना कीमती वक्त इस मौके पर दिया।
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