कोटा। भले ही तमाम संगठन, सरकारें दावे और वादे करें कि पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कुछ किया जाएगा या किया जाना चाहिए लेकिन हकीकत यह है कि इन सरकारों के नुमार्इंदे ही पत्रकारों को नहीं बख्श रहे हैं। राजस्थान के कोटा जिले की खबर है। कोटा में राजनीति का जो हाल है वह इस मुहावरे पर सटीक बैठता है कि घोड़े खा रहे घास और गधे खा रहे च्यवनप्राश। ऐसे ही एक माननीय जो नगर निगम के मुखिया बन बैठे हैं और जमकर च्यवनप्राश खाने में लगे हैं, उनका नाम है महेश विजय जो नगर निगम कोटा के महापौर हैं।
ये कोटा में शिक्षा का व्यवसाय भी करते हैं। मां भारती ग्रुप के नाम से इनके स्कूल हैं। ऐसे ही एक स्कूल का निर्माण यह नयागांव इलाके में करवा रहे हैं, वो भी नियमों को ताक पर रखकर। स्कूल का निर्माण हाईटेंशन लाईन के बिल्कुल करीब किया जा रहा है, जबकि ऐसा नियमों के अनुसार नहीं किया जा सकता। सिवायचक जमीन को भी कब्जे में ले लिया है और अवैध रूप से बिजली का कनेक्शन लेकर निर्माण कार्य में उपयोग कर रहे हैं।
इसकी सूचना मिलने पर कोटा से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र के दो पत्रकार वसीम और इमरान कवरेज के लिए गए थे। कवरेज के दौरान वहां के ठेकेदार ने इनके फोटो लेने का कारण पूछा। तो दोनों ने बताया कि वे प्रेस से हैं और कवरेज के लिए आए हैं। इस पर ठेकेदार ने महापौर को फोन लगाकर इसकी जानकारी दी। महापौर ने ठेकेदार को कहा कि पत्रकारों को बाहर मत जाने देना। इसके बाद ठेकेदार और उसके साथ मौजूद एक लेबर ने वसीम के हाथ से कैमरा छीन लिया और दोनों को वहां बंधक बना लिया। वसीम ने मौके से ही शहर के अन्य पत्रकारों और प्रेस क्लब के सदस्यों को जानकारी दी। जानकारी मिलने के बाद सभी पत्रकार पुलिस के सहयोग से मौके पर पहुंचे और दोनों पत्रकारों को मुक्त करवाया।
इसके बाद थाने पहुंचे और वहां ठेकेदार और महापौर के खिलाफ शिकायत दी। पुलिस का रवैया देखिए कि रिपोर्ट लेने के बाद वे सबसे पहले माहपौर को शिकायत पढ़कर सुनाते रहे कि क्या रिपोर्ट दी है। जब सभी पत्रकारों ने विरोध जताया तब कहीं जाकर रिपोर्ट दर्ज की गई। पत्रकारों की तरफ से रिपोर्ट दर्ज करवाने के एक घंटे बाद ही ठेकेदार से भी क्रॉस एफआईआर करवा ली गई जिसमें आरोप लगाया गया कि दोनों पत्रकारों ने ठेकेदार से मारपीट की।
अब सबसे बड़ा सवाल तो यहां यह उठता है कि अगर दोनों पत्रकारों ने मारपीट की थी तो ठेकेदार ने उस समय ही पुलिस को फोन कर मौके पर क्यो नही बुलवाया जबकि दोनों पत्रकारों को एक घंटे तक बंधक बनाकर रखा गया था। जबकि पुलिस को पत्रकारों ने सूचना दी। खैर वह तो महापौर महोदय का दिमाग काम कर रहा है कि समझौते से नही माने तो मुकदमे से मान जाएं। पुलिस जांच कर लेगी। सवाल है कि आखिर पत्रकार सुरक्षित कब रहेंगे। अगर सरकार के मंत्री, विधायक, महापौर, अधिकारी ही पत्रकारों को बधंक बनाने लगे तो फिर पत्रकार डुगडुगी ही बजाएगा क्या। इस मामलें को पत्रकारों ने स्थानीय पत्रकार संघ, प्रेस क्लब, जार और नेशनल जर्नलिस्ट एसोसिएशन के समक्ष भी उठाया है।
anjan
September 16, 2015 at 1:37 am
yah patrkar nahin blackmelar hain. shahar men yese kai log patrkar bankar kahin bhi kisi bhi jagah pahuch jaate hain jahan moti kamaai ki ummid ho.