Nadim S. Akhter : एबीपी न्यूज वाले पत्रकार अभिसार शर्मा ने शानदार-जानदार लिखा है. सच सामने लाना एक खांटी पत्रकार का अंतिम ध्येय होता है और अभिसार ने वही किया है. सारी मुश्किलों और चुनौतियों के बावजूद (Read between the lines- नौकरी पे खतरे के बावजूद !!) क्या आज हमें ये कहने में कोई हिचक होनी चाहिए कि देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है. जो दक्षिणपंथ और उसके सारे कुकर्मों-बचकाना हरकतों के साथ है (देश को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर भी), वह -राष्ट्रप्रेमी- घोषित किए जा रहे हैं और जो मोदी सरकार को एक्सपोज कर रहे हैं, उनकी गलतियों और खामियों की ओर इशारा कर रहे हैं, उन्हें -राष्ट्रद्रोही- होने का तमगा दिया जा रहा है.
तो क्या ऐसे माहौल में एक पत्रकार को अपनी नैतिकता और पेशेवर निष्ठा से समझौता कर लेना चाहिए? क्या उसे समर्पण करके घुटने के बल झुकना नहीं चाहिए, बल्कि लेट जाना चाहिए ताकि सत्ता का हनहनाता रथ उसके सीने पर से गुजर के उसे जमींदोज कर दे! या फिर उसे पूरी ताकत लगाकर देश को सच बताना चाहिए और अपना काम करते रहना चाहिए. सारी मुसीबतों और जान पर खतरे के बावजूद!
अभिसार बता रहे हैं कि उनकी पत्नी ने उन्हें सुबह-सबह टहलने से रोक दिया है क्योंकि उन्हें धमकियां मिल रही हैं. ऐसे और कई पत्रकार होंगे, जो इसी खतरे में जी रहे होंगे लेकिन सार्वजनिक मंच पर कुछ नहीं बोल रहे और चुपचाप अपना काम करते जा रहे हैं.
टाइम्स नाऊ वाले अर्नब गोस्वामी कह रहे हैं कि पाक परस्त पत्रकारों का ट्रायल होना चाहिए. तो ये कैसे साबित होता है कि अर्नब गोस्वामी के लहू में सिर्फ देशभक्ति की आरबीसी यानी रेड ब्लड कॉपरसेल्स हैं. और अर्नब ये कैसे साबित करेंगे कि तथाकथित पाक परस्त पत्रकारों के लहू में ये कॉपरसेल्स नहीं हैं? कश्मीर में युवा अगर सेना पर पत्थर फेंक रहे हैं तो क्या आप पैलेट गन का इस्तेमाल करके उनके बदन को जख्मों और छर्रों से छलनी कर देंगे, उन्हें अंधा कर देंगे? अगर सेना और सीआरपीएफ वहां इस तरह की गलतियां कर रही है तो क्या किसी पत्रकार को इसे देश को नहीं बताना चाहिए कि सरकार इस और ध्यान दे और इस गलती को सुधारा जाए? क्या उन गुस्साए नौजवानों पर पानी की बौछार या रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जैसा देश के अन्य हिस्सों में होता है, जिससे भीड़ तितर-बितर हो जाए और किसी को कोई जानलेवा नुकसान भी ना पहुंचे?
बहुत सारी बातें है. क्या-क्या बोलूं. ये भी अभूतपूर्व है कि देश की जानी-मानी पत्रकार बरखा दत्त ने ट्वीट करके अर्नब गोस्वामी की ओर इशारा करते हुए ये कह दिया कि उन्हें शर्म आ रही है, कि जिस पेशे में अर्नब है, वो भी उसी पेशे में हैं. मोदी जी की सरकार बनने के बाद पूरी पत्रकार बिरादरी दो फाड़ हो चुकी है. एक वो पत्रकार हैं जो भक्तों की जमात में शामिल हो के मोदी जी की हर बात पे –मोदी-मोदी-मोदी-मोदी— चिल्ला रहे हैं (Pro Modi ) और एक वो हैं, जो हमेशा की तरह ईमानदारी से अपना पत्रकारीय दायित्वों को निभा रहे हैं (जैसा उन्होंने यूपीए काल में भी निभाया था और तब बीजेपी उनसे बहुत खुश रहा करती थी, Pro Public Journalsits), सारे खतरों को झेलकर.
मेरा मानना है कि सत्ता के दबाव में Pro Modi और Pro Public पत्रकारों के बीच कटुता अभी और बढ़ेगी. एक धड़ा सत्ता के इशारे पे जनता को फिक्स रंग दिखाएगा और दूसरा धड़ा सारे रंग दिखाने की कोशिश करेगा ताकि देश सच्चाई जान सके. और इसका नतीजा आपको अगले लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा, जब पब्लिक सब जानने-समझने के बाद वोट देने बाहर निकलेगी. वैसे एक बात के लिए मैं आश्वस्त हूं कि प्रोपेगेंडा ज्यादा चल नहीं पाता. आखिर में जीत सच यानी सत्य की ही होती है. सो सत्यमेव जयते. जय हो!
पत्रकार और शिक्षक नदीम एस. अख्तर की एफबी वॉल से.
अभिसार शर्मा के लिखे मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें….
Kashinath Matale
July 28, 2016 at 2:08 pm
Desh me Govt chahe kisi bhi party ki ho desh ke har nargik ka kartvya hai ki vah desgh ke prati vaphadar rahe. kashmir me Mr Geelani, Malik jaise algaonwale logone har vakt hinsa ko badav diya hai. Aur bechare nirapradh nagrikonko bahaka rahe hai. Aise me Desh drohionke sath kya karna chahiye?
kkk
July 29, 2016 at 10:51 am
yani jo modi ka virodh kare vo hi patrkar h. sarkar ki achhi bat bataye, ya deshdrohiyo ko expose kare vo patrkar nahi. jo dalali karte ho vo patrkar jo sacchai k raste pr chalkr pak parsto ko expos kare apki nigah m vo modi k chamche vah re secularyo in pak parsoto k hero kanhaya, israt ore akhlak h jinko deshbhatk patrkar expose karte h ore seculariya inko hero batate h