Connect with us

Hi, what are you looking for?

आयोजन

प्रशासन, नेताओं और धन्नासेठों का दलाल बनने से बचें पत्रकार : आनंद स्वरूप वर्मा

पौड़ी (उत्तराखण्ड) : आज के दौर में लोगों तक सही सूचनाएं नहीं पहुंच रही हैं। पत्रकार पुलिस और प्रशासन के स्टेनो बन गये हैं। जैसी सूचनाएं वह देते हैं, पत्रकार उसी को अपने अखबार/चैनल को भेज देते हैं। अपने स्तर पर सूचनाओं की पुष्टि करने तथा उससे अलग तथ्य खोजने की मेहनत से बचते हैं। यह बात उमेश डोभाल स्मृति रजत जयंती समारोह में आयोजित व्याख्यान ‘बदलते परिवेश में जन प्रतिरोध’ विषय पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ लेखक-पत्रकार और समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कही। 

<p>पौड़ी (उत्तराखण्ड) : आज के दौर में लोगों तक सही सूचनाएं नहीं पहुंच रही हैं। पत्रकार पुलिस और प्रशासन के स्टेनो बन गये हैं। जैसी सूचनाएं वह देते हैं, पत्रकार उसी को अपने अखबार/चैनल को भेज देते हैं। अपने स्तर पर सूचनाओं की पुष्टि करने तथा उससे अलग तथ्य खोजने की मेहनत से बचते हैं। यह बात उमेश डोभाल स्मृति रजत जयंती समारोह में आयोजित व्याख्यान ‘बदलते परिवेश में जन प्रतिरोध’ विषय पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ लेखक-पत्रकार और समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कही। </p>

पौड़ी (उत्तराखण्ड) : आज के दौर में लोगों तक सही सूचनाएं नहीं पहुंच रही हैं। पत्रकार पुलिस और प्रशासन के स्टेनो बन गये हैं। जैसी सूचनाएं वह देते हैं, पत्रकार उसी को अपने अखबार/चैनल को भेज देते हैं। अपने स्तर पर सूचनाओं की पुष्टि करने तथा उससे अलग तथ्य खोजने की मेहनत से बचते हैं। यह बात उमेश डोभाल स्मृति रजत जयंती समारोह में आयोजित व्याख्यान ‘बदलते परिवेश में जन प्रतिरोध’ विषय पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ लेखक-पत्रकार और समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कही। 

उन्होंने कहा कि लोगों में जागरूकता लाने में मीडिया की अहम भूमिका है और सुझाव दिया कि पत्रकारों को प्रशासन, नेताओं और धन्नासेठों का दलाल बनने से बचना चाहिए। बताया कि किस प्रकार से सरकारें, प्रशासन और पूंजीपति जनता को भ्रमित कर रहे है। ऐसे में पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वह जनता तक सही सूचनाएं पहुंचाएं और उसे जागरूक करें। उन्होंने सरकारी दस्तावेजों के हवाले से बताया कि छत्तीसगढ़ में सरकार और निजी क्षेत्र लोगों को उजाड़ रहा है और उत्पीडि़त कर रहा है।   

Advertisement. Scroll to continue reading.

श्री वर्मा ने कहा कि वर्तमान परिवेश में पूंजीवाद हावी हो रहा है। ऐसे में लोगों में जागरूकता लाना जरूरी है। बताया कि 1990 के विश्व बैंक के एक दस्तावेज में कहा गया कि राज्य को कल्याणकारी योजनाएं बंद कर सारे जनकल्याणकारी काम-काज निजी क्षेत्र को सौंप देने चाहिए। उसके इस सूत्र को दुनिया भर की सरकारों ने बाइबिल की तरह अपना लिया। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने पीएम काउंसिल ऑन ट्रेड एंड इंडस्ट्री बनाई जिसके तहत सरकारी योजनाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि का कार्यभार रिलायंस आदि कॉरपोरेट घरानों को सौंप दिए गये। 

उन्होंने वैश्वीकरण को साम्राज्यवाद का बदला हुआ रूप बताया। आज पत्रकारिता और सांस्कृतिक आन्दोलन दयनीय स्थिति में हैं। वर्मा ने कहा कि सरकारें चाहती हैं कि जनता हिंसा करे ताकि वह इस बहाने जनता के अधिकारों में कटौती कर कारपोरेट के लिये रास्ता साफ सके। इसलिये जनता को हिंसक प्रतिरोध से बचना चाहिए। निरंतर जनता को जागरूक करने और उसे गोलबंद करने के प्रयास व्यापक स्तर पर होने चाहिए। बताया कि आम जनता में कोई हथियार तभी उठाता है जब सभी तरह के लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के माध्यमों को सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा अनसुना कर दिया जाता है। कहा कि कोई भी आमजन मामूली बातों में हथियार उठाने की हिम्मत नहीं करता। सामान्यतया तो धन्नासेठों के बिगड़ैल बच्चे हथियार उठाते हैं जो एक पैग शराब न मिलने पर भी गोली चला सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्मा उन पत्रकारों में से एक थे जिन्होंने  उमेश डोभाल के गुम हो जाने के समय दिल्ली में शराब माफिया के खिलाफ लोगों को गोलबंद करने में अहम भूमिका निभा कर दबाब बनाया गया था।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार और नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह ने कहा कि जन प्रतिरोध के लिए सही बातों को सामने लाना जरूरी है। आज पूंजीवाद विभिन्न तरीकों से हमारे सोचने-समझने की क्षमता पर प्रतिकूल असर डाल भ्रमित कर रहा है। लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि हर व्यक्ति को प्रतिरोध के स्वरों को अपने तरीके से व्यक्त करना चाहिए। डा. उमा भट्ट ने कहा कि समाज को महिलाओं के प्रति सोच बदलने की जरूरत है। उन्होंने रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा नहीं मिलने पर दुख व्यक्त किया और आंदोलनकारियों द्वारा इस मामले को विस्मृति के गर्त में डालने पर क्षोभ व्यक्त किया। इस मौके पर खुले सत्र एवं परिचर्चा कार्यक्रम में विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों ने विचार रखे। संचालन योगेश धस्माना ने किया। 

भोजनकाल के बाद तीसरे खुले सत्र में विषय पर व्यापक चर्चा हुई। इसकी अध्यक्षता ओंकार बहुगुणा मामू ने की। इसमें बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कहा कि मात्र पत्रकारिता से व्यवसथा नहीं बदल सकती है। इसके लिये अच्छे लोगों को राजनीति में आना ही होगा, तभी सरकार को जगाया जा सकता है। सरकार चाहती है कि प्रतिरोध ही न हो क्योंकि ऐसा करने से उनको अपनी मनमानी करने की छूट मिल जाती है। उन्होंनें कहा कि उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट ने 25 सालों से आयोजन के जरिये प्रतिरोध की धारा को जिंदा रखा है। इसलिये इसके साथ जुड़ें। जनवादी लेखक त्रेपनसिंह वौहान ने कहा कि जनप्रतिरोध आज दबता जा रहा है। आज श्रमिक यूनियन नहीं बन सकते हंै इसीलिये आज श्रमिकों का जबरदस्त शोषण हो रहा है। रुद्रपुर से आये रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि राज्य में 15 साल हो चुके हैं लेकिन में कोई भी राज्यस्तरीय राजनीतिक ताकत नही उभर सकी है। यहां पर राज कर रहे दल सही मायनों में जनआकाक्षाओं के अनुरूप कार्य ही नहीं कर रहे हैं। राज्य बनने के बाद पहाड़ ही नहीं तराई भी कई प्रकार की समस्या से जूझ रही है। उन्हानें सुझाव दिया कि राज्य के तराई क्षेत्र की समस्याओं को जानने के लिए भी पदयात्रा की जानी चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

देहरादून से आई पत्रकार मीरा रावत ने कहा कि आज प्रतिरोध के स्वरों को कुचला जा रहा है। उन्होंने बताया कि एक समय जिस आईटी पार्क को लेकर यहां पर रोजगार के सपने दिखाये गये थे उस आईटी पार्क की हालत देखकर रोना आता है। इस पार्क की जमीन का एक हिस्सा बिल्डरों को दे दिया गया है जो अपने एक-एक फ्लैट एक से सवा करोड़ में बेच रहे हैं। दिल्ली से आये लीलाधर काला ने कहा कि तकनीकी से आज काफी कुछ बदल गया है। सरकारें और पूंजी की ताकतें इसका अपने हित और जनता के खिलाफ इस्तेमाल कर रही हैं, हम कैसे इसका प्रयोग आम जन के हित में कर सकते हैं इस पर सोचा जाना चाहिए। चकबन्दी नेता गणेश सिंह गरीब ने कहा कि आज गांव खण्डहर हो रहे हैं समय रहते यदि सरकार और हम नहीं चेते तो वह पूरी तरह से खाली हो जायेंगे। यह राज्य एक प्रतिरोध के आन्दोलन बनने से ही बना लेकिन उसके बाद हम यह भूल गये कि हमने वह किसलिये मांगा था। हमारी प्राथमिकतायें क्यों बदल गई? इस पर हमें आत्मालोचना कर समान विचार वालों से संवाद बढ़ाना चाहिए। 

दिल्ली से आये वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया एक्टीविष्ट भूपेनसिंह ने मीडिया और जनप्रतिरोध के सच को समाने रखा। उन्होंने बताया कि आज की पत्रकारिता कारपोरेट के हाथों में ही है। जिनकी प्राथमिकता केवल पूंजीपतियों के मुनाफे को बढ़ाने की है। हम आम जन के हित में कैसे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, इसका रास्ता हम आपसी संवाद से निकाल सकते हैं। प्रखर पत्रकार और भाकपा माले नेता इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि मुख्यधारा का मीडिया बड़ी पूंजी से संचालित है, जिसके द्वारा वह अपने उत्पादों का प्रचार करता है, और पूंजीपति घरानों के सुरक्षा कवच का काम करता है। पूंजीवादी व्यवस्था के पक्ष में जनमत का निर्माण करता है। इसके उपभोक्ता और इसमें काम करने वाले प्रयास करें तो इसका इस्तेमाल एक हद तक आम जन के लिए भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही जनपक्षीय लोगों को वैकल्पिक मीडिया खड़ा करने के प्रयास करने चाहिए। मैखुरी ने जनपक्षीय कार्यक्रमों में मुख्य/विशिष्ट अतिथियों के रूप में पूंजीवादी दलों के नेताओं को बुलाने से परहेज करने की सलाह दी। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस दौरान कुछ प्रस्ताव भी सामने रखे गये –

 1- कई बार यह सामने आ रहा है कि किस प्रकार उच्च अधिकारी और नेता अपने हितों के लिये नीतियां साध रहे हैं। राज्य में सत्ताधारी दलों और अधिकारियों का गठजोड़ इस नवोदित राज्य के लिये बेहद खतरनाक है। इसका प्रतिकार हो। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

2- सिडकुल की जमीनें औने-पौने दाम पर बिल्डरों व होटलेयर को देना बन्द हो। जिस प्रयोजन के लिये जमीने दी गई हो उसमें वही कार्य हो। राज्य में लैंड यूज बदलने का गेम बंद हो।

3- राज्य की खनन नीति ऐसी बने कि खनन माफिया न पनप सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

4- केदारनाथ आपदा के बाद से सरकार को इस त्रासदी से सबक लेना चाहिये था। लेकिन सरकार अब भी नहीं चेती है और उसने फिर से विकास का वही पुराना राग अलापना आरम्भ कर दिया है। इससे फिर राज्य को दूसरी त्रासदी झेलनी पड़ सकती है। सरकार इसकी गम्भीरता को समझे।  

5- राज्य में पत्रकारों के वेतन के लिये मजीठिया आयोग लागू हो ताकि पत्रकारों का शोषण बंद हो। इसी प्रकार 60 साल पूरे कर चुके पत्रकारों को दूसरे राज्यों की तरह पेंशन दी जाए।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. shrikantsharma

    April 1, 2015 at 3:14 am

    आनंद स्वरूप जी आपकेे विचार सुनने में तो अच्छे हैं लेकिन व्यवहारिकता सब जानतेे है। जहां चैनल या अखबार के मालिक ही राजनेता या धन्नासेठ हो वहां निष्पक्ष पत्रकारिता सिर्फ भाषण में ही अच्छी लगती है। मुझे बताएं आप की आप इन सैकड़ों पत्रकार जो भूख से मर रहे हैं आत्महत्या कर रहे हैं आपने उनकी दो जून की रोटी या उनका हक दिलवाने के लिए अभी तक क्या किया। भूखे पेट न होय गोपाला। जिस सैद्धांतिक पत्रकारिता की आप बात कर रहे हैं अगर उस रास्ते पर चलें तो आज के दौर में पत्रकारिता की नौकरी मिलना ही असंभव है और मिल भी गई तो सैलरी एक मजदूर से भी कम वो भी मिलने में इतनी देर। आपने कितनी बार लिखा कि पत्रकारिता के ढेरों संस्थान या फैक्टरी जहां सैंक्डों लोग 2 से 3 लाख रूपये देकर अपना जीवन बरर्बाद करने आ रहे हैं उस पर पूरी तरह से अंकुश लगे। क्या सहारा में जो पत्रकार मौत के मुहाने पर खड़ें हैं एक भी समाचार पत्र ने उस खबर को प्रमुखता से उठाया। क्या आपने ही उसे अपने संपादकीय में जगह दी? माफ कीजिएगा इन सैद्धांतिक बातों से आप जैसे लोग अपने आप को महान साबित करने की कोशिश करते हैं लेकिन व्यवाहरिक पटल पर आप पत्रकारों के लिए क्या कदम उठा रहे हैं?

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement