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मध्य प्रदेश

एमसीएमसी कमेटी में पत्रकार ही क्यों करें बेगार, कीर्ति राणा ने कर दिया इंकार

कीर्ति राणा

इंदौर संसदीय क्षेत्र के चुनाव संपन्न कराने के लिए जिला जनसंपर्क कार्यालय ने मीडिया प्रमाणीकरण एवं अनुवीक्षण समिति के सदस्य के रूप में मुझे भी मनोनीत किया था लेकिन समिति की पहली बैठक से पहले ही जब मैंने जानकारी चाही तो पता चला कि हर दिन होने वाली बैठक में शामिल तो अनिवार्य रूप से होना पड़ेगा लेकिन कोई मानदेय नहीं मिलेगा। बैठक का भी निश्चित समय निर्धारित नहीं किया जा सकता। मुझे यह सारी अनिवार्यता देख-समझकर लगा कि समिति में थैंक्यू सर्विस कर पाना तो संभव नहीं हो सकेगा, निर्वाचन कार्य राष्ट्रीय दायित्व अपनी जगह लेकिन चुनाव संपन्न कराने के लिए जब हर कदम पर खर्च किया जा रहा तो पत्रकार ही क्यों बेगार का शिकार हों, अपन ने तो इंकार करना ही बेहतर समझा।

जिलों के कलेक्टर तो शायद ही सुझाव दे सकें लेकिन सीपीआर कार्यालय को इस दिशा में पहल करना चाहिए, या खुद निर्वाचन आयोग संज्ञान ले क्योंकि चुनाव तो होते ही रहना है।एमसीएमसी कमेटी को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाना है।पत्रकारों की सेवा नहीं लेने का एक ही विकल्प हो सकता है कि चुनाव लड़ने वाले दलों के प्रतिनिधियों को ही सदस्य मनोनीत कर दिया जाए, दिक्कत यही रहेगी कि तब समिति की निष्पक्षता और पारदर्शिता संदिग्ध हो जाएगी।

वैसे भी अब क्रिकेट और चुनाव पूरे साल ही चलने वाला उत्सव हो गया है।चुनाव को राष्ट्रीय दायित्व मान कर हर इकाई अपने स्तर पर सहयोग करती है। प्रशासन के लिए यह अनिवार्य ड्यूटी है तो कर्मचारियों को इलेक्शन ड्यूटी से रियायत नहीं मिल पाती। चुनाव संपन्न होने के बाद निर्वाचन कार्य में लगे सभी कर्मचारी सम्मान/प्रशंसा के हकदार भी होते हैं।इसके विपरीत निर्वाचन से पूर्व लगने वाली आदर्श आचार संहिता वाले दिन से ही जिलों से लेकर राज्य तक मीडिया प्रमाणीकरण एवं अनुवीक्षण समिति (एमसीएमसी) सक्रिय हो जाती है। समिति में जिला निर्वाचन कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी को सहयोग करने के लिए स्थानीय स्तर पर वरिष्ठ पत्रकारों में से चयन कर उन्हें समिति का सदस्य मनोनीत किया जाता है।जब से चुनाव में पेड न्यूज/पैकेज का सिलसिला चला है, ऐसी खबरों पर निगाह रखने के लिए एमसीएमसी प्रभावी तरीके से कार्य कर रही है।

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इस समिति में पत्रकारिता का दीर्घ अनुभव रखने वाले पत्रकारों को तवज्जो इसलिए दी जाती है कि वे आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन वाली खबरों पर अपनी बेबाक राय बिना दबाव-प्रभाव के दे सकते हैं। चुनाव चाहे नगर निगम का हो या विधानसभा, लोकसभा का यह समिति अपना कार्य तो मुस्तैदी से करती है लेकिन समिति में शामिल किए जाने वाले पत्रकार फिर चाहे वो जिला स्तरीय समिति में हो या राज्यस्तरीय में उन्हें ना तो मानदेय मिलता है न ही उनके कार्य की सराहना होती है। चूंकि खबरों की निष्पक्षता इस समिति का मुख्य पैमाना होती है इसलिए समिति के सदस्य पत्रकारों की राय को ही शासकीय सदस्य पदाधिकारी अंतिम निर्णय मानते हैं। समिति के सदस्य पत्रकार एक तरफ जहां पेड न्यूज प्रिंट करने वाले अखबार से बुराई लेते हैं वहीं संबंधित प्रत्याशी भी खुन्नस पाल लेता है। समिति के निर्णय को यदि कोई प्रत्याशी या अखबार मालिक चुनौती दे तो कोर्ट की तारीख पर भी समिति के सदस्य पत्रकार को तारीखों पर पेश होना पड़ता है।इतनी सब मशक्कत करने वाले सदस्य पत्रकार को सारा काम थैंक्यू सर्विस में ही करना पड़ता है।

अब यदि चुनाव संपन्न कराने में होने वाले खर्च की बात करें तो 2019 में हो रहे इस लोकसभा चुनाव में करीब 50,000 हजार करोड़ रु खर्च होने से यह अब तक का सबसे महंगा चुनाव होगा। पिछले लोकसभा चुनाव (2014) के मुकाबले इस बार 40 प्रतिशत राशि अधिक खर्च होगी।महंगे होते जा रहे चुनाव में निर्वाचन आयोग अखबारों को भी समय समय पर विज्ञापन जारी करता है लेकिन एमसीएमसी कमेटी में सहयोग करने वाले सदस्य पत्रकारों के सहयोग को अनदेखा ही किया जाता रहा है। निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने में समिति का सहयोग महत्वपूर्ण तो माना जाता है, सदस्य पत्रकारों को चुनाव संपन्न होने तक हर दिन होने वाली बैठक में दो घंटे का समय तो देना ही पड़ता है लेकिन बदले में मानदेय का प्रावधान नहीं है।

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निर्वाचन आयोग से लेकर राज्य निर्वाचन कार्यालय ने भी इस दिशा में आज तक नहीं सोचा। जिला जनसंपर्क कार्यालय से लेकर आयुक्त जनसंपर्क तक ने भी अपने स्तर पर कलेक्टरों को सुझाव पत्र नहीं भेजा कि सदस्य पत्रकारों के लिए मानदेय की व्यवस्था के संबंध में निर्वाचन कार्यालय को लिखें।

समिति में सेवा देने से मेरे इस इंकार से कोई भूचाल नहीं आना है। मेरी जगह कोई अन्य पत्रकार मित्र इस दायित्व को पूरा करेगा ही लेकिन यह एक पत्थर तो तबीयत से उछालने जैसा ही है। आज नहीं तो कल एमसीएमसी कमेटी के सदस्य पत्रकार के भी कार्य का मूल्यांकन समझा जाने पर खुद निर्वाचन आयोग मानदेय की अनिवार्यता को भी समझे, समिति के लिए अपन भले ही ब्लेक लिस्टेड हो जाएं लेकिन यह पहल अपन ने की इसका संतोष तो रहेगा ही।

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इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

https://www.youtube.com/watch?v=uLygDrXpTUs
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2 Comments

2 Comments

  1. rajendra tiwari jabalpur

    March 18, 2019 at 5:58 pm

    कीर्ति राणा जी ने एकदम सही कदम उठाया है,मैं ऐसा ही अन्य पत्रकारों से भी करने के लिए कहता हूं। यदि इस मामले में पत्रकार फुट्टफेर रहे तो, पत्रकारों को ऐसे ही हल्का समझा जाता रहेगा। राणा जी ने कायदे की बात कही है ,कि जब चुनाव आयोग चुनाव कराने में खर्च कर ही रहा है,तो पत्रकारों से फोकट में कराने की अपेक्षा क्यों की जा रही है।

  2. धनंजय कार्तिकी

    March 20, 2019 at 10:05 pm

    आपने सही प्रश्न उठाया है । मैं भी मेरे जिले के कमेटी का पत्रकार मेंबर हूँ । मुझे भी मानदेय काम करना होगा, ये मुझे मालूम है । फिरभी मानदेय देने के लिए चुनाव आयोग के पास अपना ये प्रश्न पहुँचाना होगा ।

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