के.सत्येन्द्र-
सी एम सिटी की पुलिस सिर्फ शक्ति प्रदर्शन के सामने नतमस्तक होती है, सच्चाई के सामने नही !
गोरखपुर : आम आदमी की रक्षा सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस फ़ोर्स की कल्पना को मूर्त रूप दिया गया था लेकिन कल्पना धरी की धरी रह गयी और पुलिस वर्दी के अहंकार में इस कदर डूबी की न्याय अन्याय सही गलत नीति अनीति के बीच का फर्क भुला बैठी । 5 दिन पहले कच्ची शराब माफियाओं और वर्दी के बीच के गठजोड़ को खबर के माध्यम से सामने लाने वाले पत्रकार को डराने के लिए भ्रष्ट चौकी इंचार्ज ने मुकदमा लिखवा दिया था ।
इस बाबत तमाम हो हल्ला मचने के बाद मामले की सारी सच्चाई जानते हुए भी गोरखपुर पुलिस कान में तेल डाले बैठी रही । वही दूसरी तरफ अधिवक्ताओं के एक मामले में एक अधिवक्ता को महिला थाना पर बुलाकर गलत तरीके से फंसाने के मामले ने जब गोरखपुर में तूल पकड़ा तो बेकसूरों और निरीहों पर अपना रौब ग़ालिब करने वाली गोरखपुर पुलिस बैक फुट पर नजर आने लगी ।
महिला थाना गोरखपुर की थानाध्यक्ष द्वारा अधिवक्ताओं के साथ किये गए दुर्व्यवहार को लेकर अधिवक्ताओं ने आज कचहरी चौराहा मार्ग अवरुद्ध कर दिया और पुलिस के खिलाफ जमकर नारेबाजी की । मौके पर हालात को सामान्य करने पहुँचे पुलिस अधिकारी ने जब महिला थानाध्यक्ष को लाइन हाजिर कर जांच व कार्यवाही का आश्वाशन दिया तब जाकर सड़क पर आवागमन सामान्य हो सका ।
पत्रकार बेचारे निरीह और बगैर सींग के उस जर्सी गाय के समान है जो अनुनय विनय के सिवा कुछ जानते ही नहीं। वास्तविकता में अपने आपको निरीह बनाने वाले और अपनी सींग को स्वयं उखाड़कर कर भ्रष्टों के चरणों मे अर्पण कर देने वाले पत्रकारों की दुर्दशा के जिम्मेदार ये पत्रकार स्वयं हैं । आज गोरखपुर की सड़क पर अधिवक्ताओं के क्रोधाग्नि को शांत करते हुए अनुनय विनय की मुद्रा में खड़ी इस अहंकारी वर्दी का वीडियो देखकर यही सोचता हूँ कि क्या ये वही वर्दी वाले है जो आये दिन जर्सी गाय की मानिंद विचरने वाले पत्रकारों को हलाल करने में तनिक भी संकोच नही करते ?
जितेंदर सिंह
March 24, 2022 at 3:12 pm
आदरणीय भाई साहब
यह कहना की आम आदमी के प्रयोजनार्थ पुलिस बल की परिकल्पना को मूर्त किया गया हो , चर्चा का ही विषय हो सकता है |
पुलिस बल को भारत में ब्रिटिश राज द्वारा अपनी सुविधा हेतु निरीह आमजन के दमन के लिए ही गठित किया गया था और उस समय की दमनकारी, अन्यायपूर्ण मानसिकता ही आज के अधिकांश पुलिस कर्मियों में प्रतिबिंबित होता है |
रविश अहमद
March 24, 2022 at 3:12 pm
पत्रकार अपने पेशे के साथ इंसाफ नहीं कर रहा दूसरी तरफ सामने वाले पत्रकार से खुद को बड़ा समझता है। वकीलों में अदालत में आमने आमने गर्मागरम बहस के बावजूद वो एक दूसरे का सम्मान करते हैं यहां तक कि सीनियर के सामने कोई जूनियर ऊंची आवाज़ में बोलता तक नहीं उधर सीनियर वकील भी जूनियर को बाबू जी ही कहकर बुलाते हैं कुल मिलाकर कहा जाए बात आपस में एकता और अनुशासन की है जबकि पत्रकार जहां अपनी कलम बेचने से गुरेज नहीं करता वहीं अधिकारियों के सामने दूसरे पत्रकारों की बुराई और कमियां गिनाता है। दोनों में जमीन आसमान सा फर्क साफ है इसीलिए आज तक कभी पत्रकार एकता बन ही नहीं पाई।।