Ajay Prakash : छत्तीसगढ़ के अकेले बस्तर क्षेत्र से करीब आधा दर्जन पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया है। इसको लेकर दिल्ली में कहीं कोई प्रदर्शन-धरना चल रहा या होने वाला है क्या? कोई बताये मैं भी शामिल होना चाहता हूँ? कन्हैया के पेशी के दौरान पत्रकारों को एकाध झापड़ लगा तो दिल्ली में पत्रकार सडकों पर उतरकर फ़ोटो खिंचाये थे, ऐसा कोई फ़ोटो शूट छत्तीसगढ़ पत्रकारों की गिरफ़्तारी पर दिल्ली में हो रहा है क्या? मैं भी फ़ोटो खिंचवाना चाहता हूँ और प्रमाण के तौर पर उन्हें रखना चाहता हूँ जिससे कल को जब हमें गिरफ्तार किया जाये तो हम साथी पत्रकारों को बता सकें कि देखो हम तुम्हारे लिए लड़े थे तुम हमारे लिए लड़ो। नहीं तो कौन लड़ेगा हम पत्रकारों के लिए, जब हम चुप्पी को ही पत्रकारिता बना देंगे।
Abhishek Srivastava : छत्तीसगढ़ में तमाम लोगों के प्रयासों से बड़ी मुश्किल से किसी तरह राजकीय दमन का मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश में आया था। एडिटर्स गिल्ड और पीसीआइ समेत तमाम संस्थाओं ने अच्छी पहल की थी। एनएचआरसी सक्रिय था। शायद कुछ पत्रकारों की अगले महीने बेल भी हो जाती। इतने नाजुक मोड़ पर अचानक आज सीआरपीएफ के जवानों को बेमतलब उड़ा दिया गया। दो साल तक जब इस राज्य को पुलिस स्टेट बनाने का काम जारी था, तब तो आप भांग खाकर सो रहे थे। आज जब किसी तरह बस्तर पर चौतरफा बात होना शुरू हुई, लोगों में थोड़ी एकता बनती दिखी, तो आपके तोपखाने का मुंह खुल गया। ये कौन सी राजनीति है भाई! थोड़ा भी राजनीतिक सेंस है या नहीं… नॉनसेंस!
Mukesh Kumar : एडिटर्स गिल़्ड की टीम ने कहा है कि बस्तर में एक भी पत्रकार भय या दबाव के बिना काम नहीं कर रहा है। इससे साबित होता है कि बस्तर में सरकार का जंगल राज है। Not a single journalist working without fear or pressure’: Editors Guild on Bastar
Pankaj Chaturvedi : एक बेहद कायराना व नृशंस घटना में कथित नक्सलियों ने केंद्रीय सुरक्षा बल के सात जवानों को शहीद कर दिया, वे अपने अपने घरों से छुटि्रटयां बिता कर लौट रहे थेा घटना स्थल जिला मुख्यालय दंतेवाडा से कोई 12 किलाेमीटर दूर मुख्य पक्की सडक पर हैा वहां इतना बारूद लगाया गया था कि ट्के के छोटे छोटे टुकडे हो गए व हमारे जाबांज जवानों के शरीर के चथिडे उड गए. घटना की जितनी निंदा की जाए कम है, शहीद जवान भी बेहद औसत, गरीब परिवारों से अपना जीवन यापन करने के लिए उन जंगलों में जीचन काट रहे थे. इस पूरे घटनाक्रम में एक बात विचारणीय है, बीते कुछ दिनों से बस्तर की पुलिस फर्जी कार्यवाही, पत्रकार उत्पीडन व कथत नक्सल विरोधी मुहिम के नाम पर लेखकों, पत्रकारों व समाज के लोगों को सताने के लिए बदनाम हो रही थी, सवाल उठ रहे थे कि यदि बीते छह महीने में बस्तर में एक हजार से अधिक नक्सलिों ने आत्म समर्पण कर दिया और लगभग सौ मारे गए तो क्या वास्तव में जंगल में इतने असली नक्सली हैं भी कि नहीं. पत्रकारों की गिरुफ्तारी की घटनांए भी जोर पकड रही थीं, ऐसे में दिन दहाडे, मुख्य मार्ग पर इतना बारूद लगता है तो जाहिर है कि स्थानीय पुलिस की यात ो लापरवाही है या फिर केंद्रीय बलों के जवानों की कोताही, जो कुछ भी हो, इससे पुलिस की फर्जी कार्यवाहियों पर उठ रहे सवाल कुछ दिन शांत हो जाएंगे. यह जांच का मसला है कि बाहरी बलों को जंगलों में बगैर स्थानीय पुलिस के इस तरह भेजना कहां तक सही था, केंद्रीय बलों के जवनों के साथ स्थानीय बोली समझना, जंगल की फितरत को पहचानना जटिल होता है. शहीद जवान घर से लौटे थे, ना तो उनके पास हथियार थे और ना ही तन पर खाकी वर्दी, इसके बावजूद उनके आगमन की सटीक जानकारी नक्सलियों तक कैसे पहुंची, किसने पहुंचाई.. स्थानीय पुलिस व गश्ती दल कब उस इलाके से गुजरा व उसने इतनी बडी हलचल क्यों नहीं देखी… विचार करे राज्य शासन.. हमारे केंद्रीय बल के जवान बेहद जांबाज, कर्मठ व बहादुर होते हैं , उनका बगैर लडे अपने ही लेागों के हाथों मारा जाना बहेद दुखद है
Rahul Kumar : छत्तीसगढ़ में पत्रकार खतरे में… एडिटर्स गिल्ड का आया बयान…. एडिटर्स गिल्ड ने छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के खिलाफ हो रही कार्रवाई पर चिंता जताई है. `एडिटर्स गिल्ड’ की जांच टीम ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, बस्तर, रायपुर और केन्द्रीय कारागार का दौरा कर पत्रकारों के उत्पीड़न की खबरों को सही पाया. जांच टीम के प्रकाश दुबे और विनोद वर्मा ने 13 से 15 मार्च के बीच इन इलाकों का दौरा किया. पीड़ित पत्रकारों, वरिष्ठ पत्रकारों और संपादकों से बात की. जगदलपुर और रायपुर में कई सरकारी अफसरों से मिले और रायपुर में मुख्यमंत्री रमन सिंह से मुलाकात की. मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान राज्य के कई पदाधिकारी, गिल्ड की कार्यकारिणी के सदस्य रुचिर गर्ग और एक स्थानीय दैनिक के संपादक सुनील कुमार भी मौजूद थे. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया की पक्षधर है. गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रभात सिंह एवं संतोष यादव के मामले को लेकर उन्होंने उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग कमेटी बनाई है. यह कमेटी इन पत्रकारों के मामलों को रिव्यू करेगी. जांच दल की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में मीडिया बेहद दबाव में है. जगदलपुर और दूर-दराज के कई आदिवासी इलाकों में पत्रकारों को समाचार संग्रह करने में दिक्कतें हो रही हैं. प्रशासन, खासकर पुलिस खबरों को लेकर बेहद दबाव बनाती है. पत्रकारों पर माओवादियों का भी दबाव होता है. आम धारणा है कि हर पत्रकार पर सरकार निगाह रखे हुए है. फोन पर कोई बात नहीं करना चाहता, क्योंकि पुलिस हर बात सुनती है. कई पत्रकारों का कहना है कि विवादास्पद संगठन सामाजिक एकता मंच को बस्तर के पुलिस मुख्यालय से फंडिंग मिलती है. पिछले साल पुलिस ने माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में दो लोगों को पकड़ा. इनमें से पत्रकार संतोष यादव को सितंबर में गिरफ्तार किया गया. वे नवभारत और दैनिक छत्तीसगढ़ में स्ट्रींगर थे. उनपर टाडा लगाया गया. अब वे केन्द्रीय कारागार में हैं. संतोष यादव और अन्य एक पत्रकार सोमारु नाग के खिलाफ पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया है. संतोष यादव ने जांच टीम को बताया कि उसे पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रकम दी और माओवादियों के बारे में जानकारी मांगी. उसने नहीं दी, जिसका नतीजा रहा उसका उत्पीड़न. इसी तरह वेबसाइट स्क्रोल.इन की कॉन्ट्रीब्यूटर मालिनी सुब्रमण्यिम जगदलपुर में रह रही थी. इससे पहले वे रेड क्रॉस के साथ काम कर रही थीं. पहले तो उन्हें कुछ लोगों ने धमकियां दीं. फिर, आठ फरवरी 2016 को उनके घर में तोड़फोड़ की गई. सरकारी अधिकारियों का मानना है कि मालिनी की रिपोर्ट्स हमेशा माओवादियों की तरफदारी वाली होती थीं. जगदलपुर के कलेक्टर अमित कटारिया के अनुसार, वे प्रेस कान्फ्रेंस में भी माओवादियों के समर्थन वाले प्रश्न पूछा करती थीं. उनके लेखन को लेकर सामाजिक एकता मंच ने आपत्ति जताई और कलेक्टर से शिकायत की थी. बीबीसी के आलोक पुतुल ने जांच टीम को बताया कि जब वे माओवादियों के आत्मसमर्पण और कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर स्टोरी कर रहे थे, तब बस्तर के आईजी शिवराम प्रसाद कल्लुरी और एसपी नारायण दाश की प्रतिक्रिया जाननी चाही. दोनों ने उन्हें एसएमएस भेजा कि देशहित के कार्यों में वे व्यस्त हैं और एकतरफा रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार के लिए उनके पास समय नहीं है. बाद में आलोक पुतुल को इलाका छोड़ना पड़ा. जांच टीम के अनुसार, वहां के पत्रकारों सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच पिस रहे हैं. कोई पक्ष पत्रकारों पर भरोसा नहीं करता. पत्रकारों की जासूसी के सवाल पर प्रमुख सचिव (गृह) बीवीके सुब्रमण्यिम ने कहा, इसके लिए अनुमति मैं ही देता हूं. जहां तक मैं जानता हूं, सरकार ने किसी पत्रकार के फोन टेप करने के आदेश नहीं दिए हैं.
सौजन्य : फेसबुक
vnp
March 31, 2016 at 7:31 am
sahi kaha. har jagah ho rahi hai thu thu.. raman sarkar jhuthi hai. ye sarkar khud kodhi hai to sabko hi bana rahi hai kodhi