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न्यायमूर्ति मजीठिया ने पत्रकारों की सेवानिवृत्ति उम्र 58 से बढ़ाकर 65 कर दी थी!

Om Thanvi : दाद देनी चाहिए शरद यादव की कि संसद में पत्रकारों के हक़ में बोले, मजीठिया वेतन आयोग की बात की, मीडिया मालिकों को हड़काया। यह साहस – और सरोकार – अब कौन रखता और ज़ाहिर करता है? उनका पूरा भाषण ‘वायर‘ पर मिल गया, जो साझा करता हूँ। प्रसंगवश, बता दूँ कि मालिकों और सरकार का भी अजब साथ रहता है जो पत्रकारों के ख़िलाफ़ काम करता है। देश में ज़्यादातर पत्रकार आज अनुबंध पर हैं, जो कभी भी ख़त्म हो/किया जा सकता है। ऐसे में मजीठिया-सिफ़ारिशें मुट्ठी भर पत्रकारों के काम की ही रह जाती हैं। क़लम और उसकी ताक़त मालिकों और शासन की मिलीभगत में तेल लेने चले गए हैं। क़ानून ठेकेदारी प्रथा के हक़ में खड़ा है। 

<p>Om Thanvi : दाद देनी चाहिए शरद यादव की कि संसद में पत्रकारों के हक़ में बोले, मजीठिया वेतन आयोग की बात की, मीडिया मालिकों को हड़काया। यह साहस - और सरोकार - अब कौन रखता और ज़ाहिर करता है? उनका पूरा भाषण '<a href="http://thewirehindi.com/4456/sharad-yadav-comments-on-the-current-status-of-journalism-in-india/" target="_blank">वायर</a>' पर मिल गया, जो <a href="http://thewirehindi.com/4456/sharad-yadav-comments-on-the-current-status-of-journalism-in-india/" target="_blank">साझा</a> करता हूँ। प्रसंगवश, बता दूँ कि मालिकों और सरकार का भी अजब साथ रहता है जो पत्रकारों के ख़िलाफ़ काम करता है। देश में ज़्यादातर पत्रकार आज अनुबंध पर हैं, जो कभी भी ख़त्म हो/किया जा सकता है। ऐसे में मजीठिया-सिफ़ारिशें मुट्ठी भर पत्रकारों के काम की ही रह जाती हैं। क़लम और उसकी ताक़त मालिकों और शासन की मिलीभगत में तेल लेने चले गए हैं। क़ानून ठेकेदारी प्रथा के हक़ में खड़ा है। </p>

Om Thanvi : दाद देनी चाहिए शरद यादव की कि संसद में पत्रकारों के हक़ में बोले, मजीठिया वेतन आयोग की बात की, मीडिया मालिकों को हड़काया। यह साहस – और सरोकार – अब कौन रखता और ज़ाहिर करता है? उनका पूरा भाषण ‘वायर‘ पर मिल गया, जो साझा करता हूँ। प्रसंगवश, बता दूँ कि मालिकों और सरकार का भी अजब साथ रहता है जो पत्रकारों के ख़िलाफ़ काम करता है। देश में ज़्यादातर पत्रकार आज अनुबंध पर हैं, जो कभी भी ख़त्म हो/किया जा सकता है। ऐसे में मजीठिया-सिफ़ारिशें मुट्ठी भर पत्रकारों के काम की ही रह जाती हैं। क़लम और उसकी ताक़त मालिकों और शासन की मिलीभगत में तेल लेने चले गए हैं। क़ानून ठेकेदारी प्रथा के हक़ में खड़ा है। 

राजस्थान पत्रिका और जनसत्ता में अनुबंध प्रथा बहुत देर से आई। मैंने दोनों जगह कभी अनुबंध पर संपादकी नहीं की। वेतन आयोग के नियमों के अनुसार सेवानिवृत्त भी हुआ। आयोग के क़ायदों से एक सुरक्षा मिलती है, जिससे काम करने की आज़ादी रहती है – वह अनुभव भी होती है। एक दिलचस्प तथ्य: न्यायमूर्ति मजीठिया ने अपनी मूल रिपोर्ट में पत्रकार की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 से बढ़ाकर 65 तजवीज़ की थी। इस बिंदु को मालिकों ने शासन की मदद से सचिव स्तर पर ही रिपोर्ट से निकलवा दिया, यह कहते हुए कि आयोग को वेतन तय करना था, काम की अवधि नहीं। क्या न्यायमूर्ति मजीठिया नादान थे?  

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वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. amrinder singh

    March 30, 2017 at 10:52 am

    where has gone majithaia case. no date of hearing in supreme court since long ? we are worried about case

  2. मंगेश विश्वासराव

    April 2, 2017 at 9:32 am

    सब मालिक सारे हरामी निकले….भुगतेंगे

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