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सुख-दुख

80 प्रतिशत पत्रकारों को सेलरी से मतलब, सरोकार से नहीं

देश को जगाने वाले खुद अंधेरे में, कौन बोले उनके लिए…  जो देश को जगा रहे हैं उनकी भी कोई सुधि लेने वाला है सभी को उनसे बस समाचार चाहिए चोखा। मतलब सही और रोचक। देश की पूरी ईमानदारी पत्रकार से ही चाहिए। जो पत्रकार लिखता पढ़ता है वह सच्चा भी होता है। 80 प्रतिशत ऐसे पत्रकार है देश में। उन्हें बस अपनी सैलरी से ही मतलब है। समाचार वहीं लिखने का प्रयास करते है जिसमें सच्चाई होती है। हर मीडिया कंपनी में ऐसे लोग है तभी आप सच्चाई को समझ और जान पा रहे है।

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देश को जगाने वाले खुद अंधेरे में, कौन बोले उनके लिए…  जो देश को जगा रहे हैं उनकी भी कोई सुधि लेने वाला है सभी को उनसे बस समाचार चाहिए चोखा। मतलब सही और रोचक। देश की पूरी ईमानदारी पत्रकार से ही चाहिए। जो पत्रकार लिखता पढ़ता है वह सच्चा भी होता है। 80 प्रतिशत ऐसे पत्रकार है देश में। उन्हें बस अपनी सैलरी से ही मतलब है। समाचार वहीं लिखने का प्रयास करते है जिसमें सच्चाई होती है। हर मीडिया कंपनी में ऐसे लोग है तभी आप सच्चाई को समझ और जान पा रहे है।

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10 प्रतिशत खबरें सोशल मीडिया से आप को मिल जाती है। बाकि की सही और सटीक खबरें वहीं सच्चे पत्रकार अपनी रिपोर्टिंग से आप तक सामने लाते है। यह सब सही है लेकिन उनकी बात करता कौन है। उन्हें बस खबरों के लिए किया जाता है बाकि के लिए दलालों और लाइजनरों को। देश में 10 प्रतिशत ऐसे पत्रकार है जो दिनभर नेताओं और अधिकारियों की खुशामती में लगे रहते है। समय समय पर वो खुद फोटो फेसबुक, टविटर और अन्य सोशल मीडिया पर खुद अपलोड भी करते रहते है और 90 प्रतिशत ऐसे भी पत्रकार है जिनके पास खुद नेताओं और अधिकारियों के आते है।

वो बेचारे इसी में मस्त रहते है। उन्हें अधिकारी फोन करता है। नेता उन्हें फोन करता है। वो इसी गलतफहमी में पूरा जीवन मुफलिसी में बिता देते है। ऐसे पत्रकार न तो परिवार के हो पाते हैं और न ही समाज के। केवल बस खबरें ही लिखते लिखते सेवानिवृत्त हो जाते हैं। देश में ऐसे बहुसंख्यक पत्रकार है जिनके पास अपना घर नहीं है। हां एक बात हमने देखी है किसी को जब ​कही से न्याय नहीं मिलता तो उसके लिए मीडिया ही एक अंतिम जरिया बचता है। फिर भी लोगों को सच्चे पत्रकारों की कोई कद्र नहीं है।

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एक चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी भी घर का मालिक है

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जरा ईमानदारी की बात करने वालों से एक सवाल है। जो कह रहे है अखिलेश के राज में कुछ पत्रकारों ने माल कमाया है उनकी शामत आने वाली है। क्या पत्रकार माल कमा सकता है। नहीं। वो 10 प्रतिशत ऐसे लोग है जिनको कभी नहीं लिखना पढ़ना है लेकिन पत्रकार  है। सरकार ऐसे लोगों को मान्यता कार्ड भी दे देती है। जो लिखने पढ़ने वाले है उन्हें कभी नहीं कार्ड जारी होता है। सरकारी वाहन का चालक भी घर बना लेता है लेकिन क्या कोई पत्रकार घर बना पा रहा है नहीं। यह बात कुछ के गले भी न उतरे तो क्या लेकिन उनकी आत्मा को जगाने का काम करेगी।

संतोष कुमार पांडेय
वरिष्ठ रिपोर्टर
पत्रिका, आगरा
[email protected]

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0 Comments

  1. kamal

    March 28, 2017 at 11:57 am

    santosh ji aap sahi kah rahe hai. lekin iska jimmedar hamare hi log kamine sampadak hai. jo khud to maliko ki chakri karke number badwate rahte hai ar niche ke logo ko bewkuf samjhte hai. adhikansh editor maliko ke dalal bankar rah gaye hai. unhe akhabar se koi matlab nahi hai.

  2. kamal

    March 28, 2017 at 11:58 am

    santosh ji aap sahi kah rahe hai. lekin iska jimmedar hamare hi log kamine sampadak hai. jo khud to maliko ki chakri karke number badwate rahte hai ar niche ke logo ko bewkuf samjhte hai. adhikansh editor maliko ke dalal bankar rah gaye hai. unhe akhabar se koi matlab nahi hai.

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