राजस्थान पत्रिका प्रबंधन ने मजीठिया वेजबोर्ड मांग रहे कर्मचारियों का पहले स्थानांतरण किया। वे नए स्थान पर नहीं गए तो उनके खिलाफ घरेलू वकीलों के माध्यम से जांच की खानापूर्ति की और फिर सामंती तरीके से कर्मचारियों के टर्मिनेशन का निर्णय कर लिया। अदालत में मामला फंसा तो अब पत्रिका प्रबंधन कह रहा है कि कर्मचारी चाहें तो वापस नौकरी पर आ सकते हैं।
दरअसल, यह कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी जैन द्वारा रचे गए चक्रव्यूह का परिणाम है। पत्रिका प्रबंधन ने मजीठिया क्रांतिकारी ललित जैन, सोमा शर्मा, विजय शर्मा, अनिल कटारा और कुन्दन गुप्ता के मामलों में धारा 33 (1) के तहत आवेदन कर कहा था कि इन कर्मचारियों को जांच के बाद अमुक-अमुक तारीख से टर्मिनेट करने का निर्णय किया गया है। अदालत स्वीकृति दे तो इन्हें उस तारीख से टर्मिनेट कर दिया जाए।
तीन दिन पूर्व कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी जैन ने अदालत से कहा कि पत्रिका अपने आवेदन में स्वीकृति कहां मांग रहा है, वह तो जानकारी दे रहा है कि अमुक तारीख से टर्मिनेशन का निर्णय किया गया है। अदालत भूतलक्षी प्रभाव से कैसे कह सकती है कि गुजर चुकी अमुक तारीख से कर्मचारी को टर्मिनेट करने की स्वीकृति दी जाती है।
आगे ऋषभ जी ने सुप्रीम कोर्ट की नजीरें पेश करते हुए अदालत को बताया कि ऐसे मामलों में टर्मिनेशन के निर्णय की तारीख से ही कर्मचारी को सस्पेंशन भत्ता दिए जाने का प्रावधान है। ऐसा कोई भत्ता भी नहीं दिया गया, इसलिए पत्रिका के 33 (1) के तहत ये आवेदन ही रद्द किए जाने के योग्य हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ठोस नजीरों का आधार देखकर पत्रिका के वकीलों को लग गया कि ये मामले अब ज्यादा दिन टिकने वाले नहीं हैं। घबराकर पत्रिका प्रबंधन ने कल (सोमवार को) इन पांचों के संबंध में लगाई गई 33 (1) की एप्लीकेशन वापस लेने की अर्जी लगा दी। अब प्रबंधन का कहना है कि कर्मचारी चाहें तो नौकरी ज्वाइन कर सकते हैं।
प्रबंधन की अर्जियों पर कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी ने आपत्ति लगा दी है कि इस स्टेज पर अर्जी वापस कैसे ली जा सकती है? पांचों लोगों ने पिछले ढाई साल में जो परेशानी सही है, कोर्ट में उनका जो खर्चा हुआ है, उसको कौन वहन करेगा? इस पर जज साहब ने ऑर्डर कर दिया कि वो इस मामले पर दोनों वकीलों की बहस सुनेंगे, इसके बाद ही 33 (1) की अर्जी वापस लेने के मामले में ऑर्डर करेंगे। इस मामले में पत्रिका प्रबंधन की हालत छांप छछूंदर की सी हो गई है। न उगलते बन रहा है न निगलते।
Prem mishra
June 29, 2018 at 4:00 am
लगे रहो मजीठिया क्रांतिकारियों. आपकी मेहनत पत्रकारिता जगत में ऐतिहासिक मोड़ होगा. राजस्थान पत्रिका समूह के पापों का घड़ा भर रहा है. अब sirf तकरीबन 700 कर्मचारी ही राजस्थान पत्रिका के दामाद रह गए हैं. बाकी को प्रबंधन ने किसी ना किसी बहाने साइडलाइन कर दिया है. अब देखना है की 700 कर्मचारियों के भरोसे Patrika समूह kab tak chalega.